सूरज और हवा नहीं, समंदर के खारे पानी से बनाई बिजली, जापान ने शुरू किया चौंकाने वाला पावर प्लांट

Japan Generates Electricity From Seawater: जापान ने फुकुओका में एशिया का पहला ऑस्मोटिक पावर प्लांट शुरू किया, जो ताजे और नमकीन पानी के प्राकृतिक इंटरैक्शन से लगातार साफ ऊर्जा देता है. यह तकनीक कार्बन उत्सर्जन कम करती है, वाटर प्यूरीफिकेशन से लाभ उठाती है और भविष्य में दुनिया की बिजली मांग का हिस्सा बन सकती है.

By Govind Jee | November 12, 2025 12:59 PM

Japan Generates Electricity From Seawater: जापान ने अगस्त की शुरुआत में रिन्यूएबल एनर्जी के क्षेत्र में एक बड़ा कदम उठाया. जापान के क्यूशू द्वीप के उत्तरी तट पर स्थित फुकुओका शहर में एशिया का पहला ऑस्मोटिक पावर प्लांट खोला गया. फुकुओका जिला जल विभाग के अनुसार, यह प्लांट 5 अगस्त से चालू है और सालाना 8,80,000 किलोवाट-घंटे बिजली पैदा कर सकता है. यह बिजली लगभग 220 जापानी घरों को चलाने या क्षेत्र में जलशोधन प्लांट के लिए पानी सपोर्ट करने के लिए पर्याप्त है.

वैश्विक स्तर पर यह केवल दूसरा प्लांट है जो ऑस्मोटिक पावर का इस्तेमाल करता है. पहला प्लांट 2023 में डेनमार्क की साल्टपावर कंपनी ने शुरू किया था. खास बात यह है कि इसकी ऊर्जा का स्रोत सूरज या हवा नहीं, बल्कि ताजे पानी और नमकीन पानी (समुद्री जल) का नेचुरल इंटरैक्शन है, जिसे ऑस्मोसिस कहा जाता है.

ऑस्मोसिस क्या है और यह प्लांट कैसे काम करता है?

ऑस्मोसिस, जिसे ब्लू एनर्जी या सालिनिटी-ग्रेडिएंट पावर भी कहा जाता है, पानी के अणुओं की प्राकृतिक गति से ऊर्जा बनाता है. आसान भाषा में समझें तो दो कंटेनर हैं, एक में ताजे पानी और दूसरे में नमकीन पानी. इनके बीच एक सेमीपर्मेबल मेम्ब्रेन है. पानी स्वाभाविक रूप से ताजे पानी से नमकीन पानी की ओर जाता है ताकि कंसंट्रेशन संतुलित हो. इस प्रक्रिया से दबाव बनता है, जिसे टरबाइन घुमाने और बिजली बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

फुकुओका के प्लांट में एक तरफ ट्रीटेड वेस्टवाटर और दूसरी तरफ जलशोधन का उप-उत्पाद ब्राइन का इस्तेमाल किया गया है. इससे नमक की कंसंट्रेशन का अंतर बढ़ता है और ऊर्जा उत्पादन ज्यादा होता है. प्लांट का सेटअप साफ और कॉम्पैक्ट है. इसे मौसम या समय की परवाह नहीं, यह लगातार बिजली पैदा कर सकता है.

Japan Generates Electricity From Seawater: क्यों है यह बड़ी उपलब्धि?

ऑस्मोटिक पावर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह दिन-रात लगातार ऊर्जा दे सकता है. सौर और पवन ऊर्जा मौसम पर निर्भर होती हैं, लेकिन ऑस्मोटिक प्लांट तब तक चलते रह सकते हैं जब तक ताजे और नमकीन पानी की उपलब्धता बनी रहती है.

फुकुओका जल विभाग ने इसे “नेक्स्ट-जेनरेशन नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत” कहा है जो कार्बन उत्सर्जन और पारंपरिक ग्रीन तकनीकों की अस्थिरता से बचाता है. इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस टोक्यो के प्रोफेसर एकीहिको तानिओका ने Kyodo News को बताया, “मैं अभिभूत महसूस कर रहा हूं कि हम इसे व्यावहारिक रूप में ला सके. उम्मीद है कि यह जापान ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में फैल सके.”

ऑस्मोटिक पावर का विचार कब आया?

ऑस्मोटिक ऊर्जा सुनने में भविष्य की टेक्नोलॉजी लगती है, लेकिन यह नया नहीं है. 1954 में ब्रिटिश शोधकर्ता RE पैटल ने सुझाव दिया था कि ताजे और नमकीन पानी को मिलाकर ऊर्जा निकाली जा सकती है. 1970 के दशक में प्रोफेसर सिडनी लोब ने प्रेशर-रिटार्डेड ऑस्मोसिस (PRO) का तरीका विकसित किया. उन्होंने जॉर्डन नदी के डेड सी में मिलने वाले जल प्रवाह का अध्ययन किया.

तब से नार्वे, दक्षिण कोरिया, स्पेन, कतर और ऑस्ट्रेलिया में प्रोटोटाइप का परीक्षण हुआ, लेकिन तकनीकी और लागत संबंधी समस्याओं के कारण यह पायलट स्तर से आगे नहीं बढ़ा. असली बदलाव 2023 में आया, जब डेनमार्क की साल्टपावर ने मारीगर में पहला व्यावसायिक प्लांट शुरू किया. इसने जापानी कंपनी Toyobo द्वारा विकसित होलो-फाइबर फॉरवर्ड-ऑस्मोसिस मेम्ब्रेन का इस्तेमाल किया, जिससे सबसे बड़ी बाधा मेम्ब्रेन दक्षता को पार किया गया.

तकनीकी चुनौतियां

ऑस्मोटिक पावर में वादा तो है, लेकिन चुनौतियां भी हैं. सबसे बड़ी समस्या ऊर्जा हानि है. मेलबर्न विश्वविद्यालय की प्रोफेसर सैंड्रा केंटिश ने द गार्जियन को बताया कि जब नमक और ताजे पानी को मिलाया जाता है तो ऊर्जा निकलती है, लेकिन दोनों धाराओं को प्लांट तक पहुंचाने और मेम्ब्रेन के माध्यम से घर्षण के कारण बहुत ऊर्जा खो जाती है. इसका मतलब है कि वास्तविक ऊर्जा कम मिलती है.”

सरल शब्दों में कहें तो ऊर्जा बनाने की कोशिश में ही ऊर्जा खो जाती है. इसके अलावा, बड़े और उच्च-दबाव वाले मेम्ब्रेन का रख-रखाव तकनीकी और वित्तीय चुनौती है. यही कारण है कि ऑस्मोटिक पावर अभी भी सौर और पवन ऊर्जा की तुलना में महंगा है.

फिर भी विशेषज्ञों का कहना है कि सुधार हो रहा है. वाटर प्यूरीफिकेशन से मिलने वाला ब्राइन सामान्य समुद्री जल से ज्यादा खारा होता है, जिससे ग्रेडिएंट बढ़ता है और उत्पादन बेहतर होता है. फुकुओका का प्लांट इस पहलू का बुद्धिमानी से लाभ उठा रहा है.

वैश्विक संभावनाएं क्या है

जापान और डेनमार्क के पास फिलहाल फुल-स्केल सुविधाएं हैं, लेकिन तकनीक अन्य जगहों पर भी शोधाधीन है. सिडनी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अली अल्टाई ने कहा, “जापानी प्लांट डेनमार्क वाले से बड़ा है. यह पैमाने की वास्तविक क्षमता दिखाता है.” अल्टाई मानते हैं कि ऑस्ट्रेलिया के नमक झीलों में भी इसी तरह की प्रणालियां लगाई जा सकती हैं, यदि सार्वजनिक फंडिंग उपलब्ध हो. फ्रांस में Sweetch Energy नामक स्टार्टअप Ionic Nano Osmotic Diffusion (INOD) तकनीक पर काम कर रहा है, जो बायो-सोर्स्ड मेम्ब्रेन से ऊर्जा हानि कम और उत्पादन बढ़ा सकता है.

सरकार का लक्ष्य इसे 2030 तक 36–38 प्रतिशत तक बढ़ाना

फुकुओका परियोजना आकार में छोटा है (केवल 110 kW नेट क्षमता, IFL Science के अनुसार), लेकिन यह संकेत देता है कि एक ऐसा देश जो अभी भी जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है, साफ ऊर्जा की दिशा में कदम बढ़ा रहा है. द इंडिपेंडेंट के अनुसार, 2022 में जापान ने लगभग 73 प्रतिशत बिजली कोयला, गैस और तेल से बनाई, जबकि रिन्यूएबल सोर्स मुख्य रूप से सौर और हाइड्रो केवल 20 प्रतिशत थे. 

सरकार का लक्ष्य इसे 2030 तक 36–38 प्रतिशत तक बढ़ाना है. जापान जैसे सीमित प्राकृतिक संसाधन वाले देश में, उच्च ऊर्जा आयात और फुकुशिमा के बाद विविधता की जरूरत के चलते, ऑस्मोटिक पावर को लंबे समय में साफ ऊर्जा के पहेली का हिस्सा माना जा रहा है.

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