बाइडेन को थी विदेश नीति की समझ, भारत के रूसी तेल खरीद पर एक्सपर्ट ने ट्रंप को सुनाई खरी-खोटी

India Purchase Russian Oil: भारत के रूसी तेल खरीद पर ट्रंप का सख्त रुख, बाइडेन की लचीली नीति से उलट; जानें पॉल पोस्ट के मुताबिक यह भारत-अमेरिका व्यापार और भरोसे को कैसे प्रभावित कर सकता है.

By Govind Jee | September 26, 2025 10:35 AM

India Purchase Russian Oil: भारत और अमेरिका के बीच पिछले कुछ सालों में ऊर्जा और व्यापार को लेकर बढ़ते तनाव ने एक नया मोड़ ले लिया है. शिकागो यूनिवर्सिटी के राजनीतिक विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर पॉल पोस्ट के मुताबिक, ट्रंप प्रशासन की भारत के रूसी तेल खरीद पर सख्त रुख बाइडेन युग की व्यावहारिक सहनशीलता से पूरी तरह अलग है. यह कदम द्विपक्षीय व्यापार वार्ताओं को प्रभावित कर सकता है और न्यू दिल्ली के लिए वाशिंगटन को भरोसेमंद साझेदार मानने के सवाल खड़े कर सकता है.

बाइडेन का “रियलपॉलिटिक” दृष्टिकोण

पोस्ट ने ANI से बातचीत में बताया कि पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन की विदेश नीति भारत को ऊर्जा आयात में लचीलापन देती थी. बाइडेन समझते थे कि भारत की भूमिका क्वाड गठबंधन में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए महत्वपूर्ण है. पोस्ट के अनुसार,

“बाइडेन जानते थे कि भारत अपने हित में जो कर रहा है, वही कर रहा है. और उनके पास विदेश नीति का गहरा अनुभव था. इसलिए उन्होंने इसे सहन किया कि भारत रूस से ऊर्जा खरीदे, क्योंकि हमें क्वाड में भारत की जरूरत है.” बाइडेन की नीति में भारत की स्वतंत्र निर्णय क्षमता का सम्मान था और यह अमेरिका की रणनीतिक जरूरतों के साथ मेल खाती थी.

India Purchase Russian Oil: ट्रंप का सख्त रुख

इसके विपरीत, डोनाल्ड ट्रंप का दृष्टिकोण पूरी तरह अलग है. पोस्ट के मुताबिक, ट्रंप के लिए रूस को रोकना सर्वोपरि है और भारत द्वारा तेल खरीदना सीधे रूस के युद्ध यंत्र को सहारा देना है. “ट्रंप का कहना है, यदि रूस खतरा है, तो उनसे ऊर्जा नहीं खरीदो. भारत या यूरोप कोई भी हो, यह नीति उनके लिए स्वीकार्य नहीं है.” ट्रंप प्रशासन के इस दृष्टिकोण से यह साफ है कि अब भारत के रूसी तेल खरीदने पर अमेरिका की सहनशीलता समाप्त हो गई है.

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व्यापार वार्ता और तेल मुद्दा

पोस्ट का मानना है कि यूएस-इंडिया व्यापार वार्ताओं को रूसी तेल मुद्दे से अलग नहीं देखा जा सकता. ट्रंप प्रशासन ने हमेशा सौदेबाजी में रूपक (optics) को मुख्य रखा है, न कि असली मसलों को.पोस्ट के अनुसार, भारत के साथ संभावित नया व्यापार समझौता “व्यावहारिक रूप से प्रतीकात्मक” होगा. उन्होंने इसे हाल ही में अमेरिका द्वारा वियतनाम, यूके और यूरोपीय यूनियन के साथ किए गए समझौतों से तुलना की. “यह केवल ट्रंप को यह कहने का मौका देगा कि हमने बढ़िया सौदा किया और भारत एक बेहतरीन साझेदार है, लेकिन वास्तविक बदलाव या समाधान बहुत सीमित होंगे.”

पॉल पोस्ट के मुताबिक, बाइडेन की लचीली विदेश नीति और ट्रंप का कठोर रुख भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा और व्यापार रणनीति में नई चुनौतियां खड़ी कर रहा है. भारत अब न सिर्फ ऊर्जा सुरक्षा, बल्कि अमेरिका के भरोसे को लेकर भी रणनीतिक फैसलों पर सोचने को मजबूर है.

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