ब्रह्मोस ने पाकिस्तान को दिया हिला… अब भारत को चाहिए ‘हथौड़ा’ मिसाइल! ऑपरेशन सिंदूर के बाद रणनीति में बड़ा बदलाव

India Needs Mass Produced Cruise Missile: ऑपरेशन सिंदूर में ब्रह्मोस की सफलता, पाकिस्तान की स्वीकारोक्ति, और भारत की भविष्य की मिसाइल जरूरतों पर गहराई से चर्चा करता है। इसमें बताया गया है कि क्यों भारत को ब्रह्मोस जैसे सटीक हथियारों के साथ-साथ सस्ते, बड़ी संख्या में बनने वाले क्रूज़ मिसाइल की भी जरूरत है।

By Govind Jee | November 19, 2025 2:46 PM

India Needs Mass Produced Cruise Missile: ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की सैन्य रणनीति को एक तरह से नया मोड़ दे दिया. ब्रह्मोस मिसाइल ने पाकिस्तान की सैन्य तैयारियों को कुछ ही मिनटों में हिला दिया, लेकिन इसी सफलता ने एक और सवाल खड़ा कर दिया कि क्या भारत एक बेहद ताकतवर लेकिन बहुत महंगे हथियार पर ज्यादा निर्भर हो रहा है? आने वाले युद्ध सिर्फ सटीक हमलों की नहीं, बल्कि “संख्या की लड़ाई” भी होंगे. और यहीं से नई बहस शुरू होती है.

ब्रह्मोस की 20 मिनट की करारी मार- PAF के 11 बेस हुए ठप

भारतीय वायुसेना ने ऑपरेशन सिंदूर में जो किया, वह अब भारतीय सैन्य इतिहास में दर्ज हो चुका है. Su-30 MKI से 15 से 19 ब्रह्मोस मिसाइलें दागी गईं और लगभग हर मिसाइल ने अपने लक्ष्य को सटीकता से हिट किया. पूरा हमला सिर्फ 20 मिनट चला और पाकिस्तान के 10 से 11 एयरबेस या तो ढह गए या बुरी तरह से नुकसान में आ गए. पाकिस्तान की कमान को समझ ही नहीं आया कि इतना तेज और सटीक हमला कैसे हुआ. सबसे दिलचस्प बात यह रही कि ब्रह्मोस का सबसे बड़ा गुणगान भारत में नहीं, बल्कि पाकिस्तान के शीर्ष नेतृत्व ने किया.

PM शाहबाज शरीफ की खुली स्वीकारोक्ति

अजरबैजान में एक शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने कहा कि पाकिस्तान की 10 मई की बड़ी सैन्य कार्रवाई शुरू ही नहीं हो सकी, क्योंकि भारत के ब्रह्मोस हमलों ने रावलपिंडी एयरपोर्ट समेत कई अहम ठिकानों को पहले ही तबाह कर दिया था. पाकिस्तान के वरिष्ठ नेता राणा सनाउल्लाह ने बताया कि PAF को मिसाइलों के आने की चेतावनी केवल 30-45 सेकंड पहले मिली. उन्होंने एक खौफनाक पंक्ति भी कही कि सोचिए, अगर ये हमला न्यूक्लियर होता? यह बयान बताता है कि ब्रह्मोस ने पाकिस्तान की रणनीतिक प्रणाली में कैसी घबराहट पैदा की.

ब्रह्मोस का पहला असली युद्ध टेस्ट और उम्मीद से ज्यादा सफलता

भारत व रूस की संयुक्त परियोजना ब्रह्मोस पहली बार असली युद्ध में उतरी. इसकी Mach 3 यानी ध्वनि की गति से तीन गुना रफ्तार, जल्दी टारगेट पकड़ने की क्षमता और सटीक वार ने इसे ऑपरेशन सिंदूर में “गेमचेंजर” बना दिया. लेकिन इसकी सफलता ने भारत के सामने एक और सवाल रख दिया कि क्या इतने महंगे हथियार को बड़े युद्धों में लंबे समय तक इस्तेमाल किया जा सकता है? दिक्कत यह है कि ब्रह्मोस ताकतवर है, लेकिन बहुत महंगा और सीमित संख्या में बनता है यहीं से रणनीतिक चिंता शुरू होती है. एक ब्रह्मोस की कीमत 2.7 मिलियन से 4 मिलियन डॉलर तक जाती है. ये अमेरिका के टॉमहॉक और रूस के कालिब्र से लगभग दो गुना महंगा है. भारत हर साल 50-100 ब्रह्मोस ही बना पाता है. नई यूपी फैक्ट्री आने के बाद भी यह संख्या में वृद्धि होने की उम्मीद है.

यूक्रेन का ‘फ्लेमिंगो’- धीमा, बड़ा, पर भारी संख्या में

यूक्रेन का नया फ्लेमिंगो मिसाइल तकनीकी रूप से बहुत साधारण माना जा रहा है क्योंकि यह न यह तेज है, न छोटा, और न ही ब्रह्मोस जितना घातक. फिर भी इसकी सबसे बड़ी ताकत इसकी 3000 किलोमीटर की रेंज और दैनिक उत्पादन क्षमता है. यूक्रेन इसे दिन में करीब 7 मिसाइल बनाने की रफ्तार से तैयार कर रहा है. यही भारी संख्या किसी भी दुश्मन की एयर डिफेंस को थका देती है और अंततः तोड़ देती है.

भारत को ‘सर्जिकल औजार’ भी चाहिए और ‘हथौड़ा’ भी

भारतीय सैन्य विशेषज्ञों का कहना है कि भविष्य के युद्धों को देखते हुए भारत को दो तरह की मिसाइलों की जरूरत है एक बेहद सटीक, तेज और दूसरी सस्ती, लंबी रेंज वाली तथा भारी संख्या में बनने वाली. ब्रह्मोस को विशेषज्ञ Scalpel यानी सर्जिकल हथियार की तरह देखते हैं. तेज, अत्यंत सटीक, महंगा और हाई-वैल्यू टारगेट के लिए सबसे प्रभावी. ऑपरेशन सिंदूर ने दिखा दिया कि ब्रह्मोस भरोसेमंद और बेहद सटीक स्ट्राइक क्षमता वाला हथियार है. विशेषज्ञों के अनुसार भारत को एक ऐसी मिसाइल भी चाहिए जो Hammer (‘हथौड़ा’) की तरह काम करे यानि संख्या के बल पर दुश्मन की एयर डिफेंस को मात दे सके. लंबी रेंज, बड़े पैमाने पर उत्पादन, कम लागत और दुश्मन की रक्षा प्रणाली को थकाने वाली क्षमता.

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