चीन ने बनाया कमाल का फाइटर प्लेन! रडार से ही खुद लेगा पावर, 6G से उड़ान होगी और तेज
China Fighter Jet: चीनी वैज्ञानिकों ने एक ऐसी टेक्नोलॉजी डेवलप की है जो फाइटर जेट्स को सीधे रडार तरंगों से एनर्जी लेने देगी. यह रिसर्च 6G, स्टील्थ सिस्टम और वायरलेस पावर को जोड़ती है. रिपोर्ट्स के अनुसार, यह बड़ी सफलता भविष्य की लड़ाई और इंटरनेट टेक्नोलॉजी को बदल सकती है.
China Fighter Jet: जंग के मैदान में अब तक जीत उसी की होती थी, जो दुश्मन के रडार से छिप जाए. लेकिन चीन के वैज्ञानिक अब इस सोच को ही पलटने में जुटे हैं. उनका कहना है कि रडार से भागने की जरूरत नहीं, बल्कि उसी रडार को अपना हथियार और ताकत बना लिया जाए. रिपोर्ट के मुताबिक, चीन में ऐसी तकनीक विकसित की गई है, जिससे फाइटर जेट, स्टील्थ सिस्टम और आने वाली 6G तकनीक की तस्वीर ही बदल सकती है.
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के अनुसार, इस रिसर्च की अगुवाई चीन की शिदियन यूनिवर्सिटी (Xidian University) के वैज्ञानिक कर रहे हैं. उन्होंने इस सोच को नाम दिया है इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कोऑपरेटिव स्टील्थ. आसान भाषा में कहें तो अब विमान रडार से छिपेगा नहीं, बल्कि रडार के साथ मिलकर काम करेगा. यानी जो तरंगें अब तक पकड़ने के लिए थीं, वही तरंगें आगे चलकर काम की चीज बन सकती हैं.
China Fighter Jet in Hindi: जब रडार बनेगा बिजली का स्रोत
रिसर्च का सबसे बड़ा दावा यही है कि रडार और कम्युनिकेशन से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों को ऊर्जा में बदला जा सकता है. इसका मतलब यह हुआ कि फाइटर जेट हवा में उड़ते हुए रडार की तरंगों से खुद को पावर दे सकेगा. सैद्धांतिक रूप से ऐसे विमान संभव हैं, जिन्हें उड़ान के दौरान जमीन से ईंधन या चार्ज लेने की जरूरत ही न पड़े.
शिदियन यूनिवर्सिटी की टीम ने एक ऐसा सिस्टम तैयार किया है, जो एक साथ कम्युनिकेशन, रडार और ऊर्जा जुटाने का काम कर सकता है. यानी अलग-अलग मशीनें लगाने की जरूरत नहीं होगी. इससे जगह बचेगी, खर्च कम होगा और सिस्टम पहले से ज्यादा सुरक्षित और मजबूत बनेगा.
6G क्यों है इस पूरी कहानी का केंद्र
वैज्ञानिकों का मानना है कि 6G सिर्फ तेज इंटरनेट तक सीमित नहीं रहेगा. 6G में एक अहम तकनीक पर काम हो रहा है, जिसे रीकॉन्फिगरेबल इंटेलिजेंट सरफेस (RIS) कहा जाता है. ये ऐसी खास सतहें होती हैं, जो सिग्नल को मोड़ सकती हैं, रोक सकती हैं और सही दिशा में भेज सकती हैं. साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, RIS की मदद से ड्रोन, फाइटर जेट और दूसरे सैन्य सिस्टम बेहतर तरीके से काम कर सकते हैं.
इससे सिग्नल जैमिंग से बचाव होगा, जासूसी मुश्किल होगी और जरूरत पड़ने पर जानबूझकर ऐसे इलाके बनाए जा सकेंगे, जहां सिग्नल न पहुंचे. यही तकनीक सैटेलाइट से जमीन तक सिग्नल पहुंचाने में भी मदद कर सकती है. (China Fighter Jet Radar Powered 6g in Hindi)
डार और सेंसिंग के साथ जोड़ना जरूरी है
रिसर्च टीम का कहना है कि 6G के दौर में RIS को सिर्फ सिग्नल उछालने तक सीमित नहीं रखा जा सकता. इसे रडार और सेंसिंग के साथ जोड़ना जरूरी है. इसी सोच के तहत वैज्ञानिकों ने एक ऐसी सतह तैयार की है, जो सिग्नल भेज भी सकती है और वापस आने वाली तरंगों को कंट्रोल भी कर सकती है. इस सिस्टम की एक और खास बात यह है कि यह हवा में मौजूद वायरलेस एनर्जी को जमा कर सकता है. यानी यह खुद को चलाने के साथ-साथ दूसरे छोटे उपकरणों को भी पावर दे सकता है.
इसे भविष्य के खुद से चलने वाले सेंसर और छोटे बेस स्टेशन की नींव माना जा रहा है. वैज्ञानिकों के मुताबिक यह तकनीक खुले इलाकों के साथ-साथ उन जगहों पर भी काम करेगी, जहां इमारतें या पहाड़ सिग्नल रोकते हैं. आने वाले समय में इसका इस्तेमाल स्मार्ट बेस स्टेशन, रिले नेटवर्क और अपने आप चलने वाले सेंसिंग सिस्टम में किया जा सकता है.
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