24.7 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

एडिनबरा के भूमिगत भूत

विविधता का अतिरेक है यह शहर. एक ओर डॉली भेड़ को क्लोन की तरह पेश कर चुके इस शहर के जीव- वैज्ञानिक, दूसरी ओर स्वामिभक्त कुत्ते बॉबी ग्रेफेयर की आत्मा में यकीन रखते उसकी बरसी मनाते एडिनबर्गी जन.

स्कॉटलैंड एक रहस्यमयी और सपनीला टुकड़ा है इंग्लैंड का. मैं तो स्कॉटलैंड को अलग देश मानने से भी गुरेज न करूं. ठीक वैसे ही जैसे कि चीन और तिब्बत. उस पर एडिनबरा दुनिया के सुंदर शहरों में से एक, यही वजह है कि यह शहर लेखकों, दार्शनिकों, चित्रकारों, वैज्ञानिकों का शहर करार दिया जा चुका है. इस शहर की सुंदरता से एक अजब रहस्यमयता भी लिपटी है, क्योंकि यह शहर अनेक युद्धों, दुरभिसंधियों, क्रांतियों, षड्यंत्रों, महामारियों, आततायियों का गवाह भी रहा है. एडिनबरा में प्रवेश करते ही आपको एक मध्ययुगीन शहर में, किसी यूरोपियन इतिहास के गलियारे में चलने-फिरने की सी अनुभूति होती है. प्राचीन और मध्यकालीन अट्टालिकाओं वाले किसी चौक पर रंगीन कांच वाली चर्च में गूंजते घंटे, सुरीली प्रेयर. दूर कहीं से सुनाई देती मनमोहक बैगपाइप की धुन और कॉट्सवूल के चैक की स्कॉटिश नेशनल ड्रेस ‘किल्ट’ पहने गोरेचट्ट बैगपाइपर्स.

एक ओर मछुआरों का रिहायशी समुद्री इलाका, तो दूसरी ओर मनमोहक हरे-भरे हाईलैंड्स की ओर बुलाता स्कॉटिश संगीत. विविधता का अतिरेक है यह शहर. एक ओर डॉली भेड़ को क्लोन की तरह पेश कर चुके इस शहर के जीव- वैज्ञानिक, दूसरी ओर स्वामिभक्त कुत्ते बॉबी ग्रेफेयर की आत्मा में यकीन रखते उसकी बरसी मनाते एडिनबर्गी जन.

यूं ही तो नहीं एडिनबरा पहुंचते ही मुझे अपने बचपन के शहर चित्तौड़गढ़ की बेतहाशा याद आई थी. वहां की तरह यहां भी तो एक किला पूरे शहर पर निगाह सी रखे रहता है, एक बुजुर्ग संरक्षक की तरह. वहां की भी हवाओं में यहां की तरह बहुत भुतहा कहानियां डोला करती थीं. मुझे जो पसंद थी वह थी मम्मी के कलीग, चिरकुमार शक्तावत माट्साब की एक जौहर से भाग निकली दुल्हन के भूत से रूमानी मुठभेड़ की कथा. वो कहानी फिर कभी…

Also Read: यात्रा वृत्तांत : पहाड़ों के बीच गुमशुदा है गुरेज वैली

जब हम ऑक्सफोर्ड से ट्यूब-ट्रेन में स्कॉटलैंड जाने के लिए बैठे थे, तो मेरे मन में एक यूरोपियन पहाड़ी शहर की सुंदरता का सपना बसा था. हम सात घंटे ट्रेन में इंग्लैंड-स्कॉटलैंड की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेते हुए शाम चार बजे एडिनबरा पहुंच गये थे. थोड़ा आराम करके, होटल के कमरे में पड़े रहने का मन न हुआ तो पैदल ही हम दोनों शहर की नब्ज टटोलने निकल पड़े थे. पहली ही नजर में शहर ने मोह लिया था. वह शाम भीगी-भीगी सी थी. शहर क्या था एक कैलाइडोस्कोप ही था, हर दस कदम पर दृश्य बदल जाता था. कासल, क्लॉक-टॉवर्स, बगीचे, महल, पुराने टैवर्न, जो पबों में बदल दिये गये थे, मध्ययुगीन पथरीली गलियां, म्यूजियम, लाइब्रेरियां. पूरे शहर के आलीशान मार्गों को जहां-तहां जोड़ती काटती धूसर गलियां भी थीं, तो नहरें भी.

किसी से पूछ कर रॉयल माईल के लिए हमने एक शॉर्ट कट लिया, जो एक बड़े कब्रगाह से ग्रेफेयर किर्क से होकर जाता था. एक गली से चढ़ कर किर्क पहुंचे, तो वहां एक विशाल उपवन के बीच ढेर सारी कब्रें थीं. जिनपर खूबसूरत नक्काशियों वाले समाधि पत्थर लगे थे, कोई कब्र तो छोटे-मोटे भवन जैसी थी, जिसके द्वार पर कहीं बेहद सुंदर देवदूत बने हुए थे. कुछ कब्रों पर युवा परियां मुस्कुराती हुईं. कुछ कब्रों पर शैतानी चेहरे, खोपड़ी भी बने थे. समाधि लेख कोई सादा, कोई कवितामय, कोई बाइबिल की पंक्ति में संबोधित, कोई रूह से निकली आह-सा, सोलहवीं, सत्रहवीं, अठारहवीं सदी में दिवंगत हुए अजनबी लोगों के नामों को संबोधित. वैसे मैं महाडरपोकचीं हूं. किसी फिल्म का कोई हॉरर सीन देख लूं, तो रात में अकेले किचन में पानी तक न लेने जा सकूं. उस रोज जाने कैसे बेखौफ उन कब्रों के बीच घूम रही थी. यकीनन, एक अजीब-सा ठंडापन जरूर वहां था.

पुरानी कब्रों के एक समूह के पास से गुजरते हुए अचानक आखिरी कब्र के पास से मुझे गुलाबों की महक आने लगी. मुझे लगा कोई लोबान जलता होगा, मगर उस पर तो कई लेयर्स में सूखे पत्ते पड़े थे. यह एक भूली-बिसरी कब्र थी. समाधिलेख पर काई जमी थी मगर नाम और तारीख मैंने कोशिश करके पढ़ ही लिये, बारबरा वॉकर (24 अगस्त 1821 – 12 जुलाई 1849) किसी युवती की कब्र थी, मन दरक गया. घना जंगली चेरी का वृक्ष उसे घेरे था. समाधि पत्थर में दरार थी, कब्र के बीच का पत्थर भी बीच में धंस गया था. सिरहाने एक छोटा सा पिलर था जिसपर दुधमुंहे दो एंजल्स उड़ रहे थे. क्या युवा मां रही होगी बारबरा? गुलाबों की महक सघन थी, खूब स्पष्ट शायद आस-पास कोई बगीचा खिला हो गुलाबों का, पर ढलान के पार तो बाजार और सड़क थे. कब्र पर घास थी, उस घास में अलबत्ता घास के नन्हें फूल खिले थे, जिन्हें तोड़ कर सूंघा, वे निर्गंधी थे. मैंने फुसफुसा कर पूछा – बारबरा क्या यह तुम्हारा होना है? उसी क्षणांश में साथ चलता सलेटी बादल फुहार बरसाने लगा. वॉशरूम की तलाश में बहुत आगे निकल गये अंशु ने पुकारा – मन्नो बारिश!

Also Read: समाज में अहम है साहित्य की भूमिका

हम उस किर्क यार्ड से निकलने को ही थे कि मुझे वहां एक लेख-पट्ट दिखा जिसपर लिखा था कि यह कब्रगाह अनेकानेक प्रसिद्ध-अप्रसिद्ध लोगों की समाधियों के लिए जाना जाता है. खास तौर पर तीन चीजें यहां उल्लेखनीय हैं. पहली-बॉबी नाम के स्की टैरियर कुत्ते की समाधि. बॉबी अपने पुलिस अधिकारी मालिक की जॉन ग्रे की समाधि पर चौदह साल बैठा रहा, लोग उसे वहीं खाना-पानी दे आते थे. यह सिलसिला तब तक चला जब तक कि उसकी स्वयं की मृत्यु न हो गयी और उसे वहीं मालिक के बगल ही में दफनाया गया. प्रचलित है कि लोगों को बॉबी की आत्मा इस हरे भरे ग्रेवयार्ड में घूमती दिख जाती है.

दूसरी प्रचलित धारणा यह कि रॉयल मिले के आस-पास इसी इलाके में सत्रहवीं सदी में एक आततायी शासक किंग जेम्स षष्ठम ने लगभग पांच सौ स्त्रियों को डायन करार कर जला कर मार डाला था. उसके मन में डायन, जादूगरनियों के खिलाफ पागलपन की हद तक डर और क्रोध भरा हुआ था कि समूचे शहर से टोकने-टोटकों करने वाली, भविष्य बांचने वाली, जड़ीबूटियां रखने वाली या बूढ़ी मानसिक बीमारी से ग्रस्त औरतों को उनके घर से निकाल-निकाल कर आये दिन जिंदा जला दिया जाता था. शहर के लोग कहते हैं उन स्त्रियों की भी खाक इस कब्रगाह में डोलती है. जिंदा जला दी गयी उन औरतों की दबी- दबी चीखें सुनाई देती हैं. आयरनी देखिए न, उनमें से कुछ औरतें तो चिकित्सा-विज्ञान में विश्वास करने, घर में प्रयोगशाला रखने के गुनाह में जला दी गयी थीं और हम उनकी भुतहा चीखों को सच माने बैठे हैं.

तीसरी धारणा, एक मैकेंजी नामक शासक था, जिसने मजलूमों पर अत्याचार किये उसकी कब्र भी यहां है. उसकी भटकती रूह इस कब्रगाह में लोगों को दिखी है. मुझे इस ग्रेवयार्ड से निकलते-निकलते यकीन हो चला था कि विश्व के सबसे अधिक भुतहा शहर की तरह एडिनबरा को क्यों चिन्हित किया गया होगा. एक तो जाहिर सी वजह थी…यहां का खून सना अतीत. दूसरी व्यावसायिक वजह, गेट के दायीं तरफ भूतों पर आधारित पर्यटन यानि ‘घोस्ट टूर’ कराने वाली एजेंसी का साइन बोर्ड लगा था. मुझे हंसी आई कि लोगों की ‘पराभौतिक’ जिज्ञासाओं को उकसा कर पैसे उगाहने का पर्यटन – प्रंपच भी यहां समानांतर चलता रहता है.

Also Read: ‘राग दरबारी:पचपन साल के बाद’ पर प्रभात खबर के फीचर एडिटर विनय भूषण से विशेष बातचीत में क्या बोलीं ममता कालिया?

एडिनबरा यूरोप के अन्य पुराने शहरों वेनिस, फ्लोरेंस की तरह ही इतना छोटा है कि वहां आप तीन दिन रहें, तो पूरा नक्शा जबानी याद हो जाये. ऐसे शहर पैदल घूमने के लिए बने होते हैं, यह मैं और अंशु बखूबी समझते हैं और खूब पैदल चल कर अनूठे अनुभव बटोरते हैं. हम ठहरे तो एडिनबरा के नये वाले इलाके में थे, मगर मुझे मध्यकालीन रूमानियत से रचा-बसा पुराना एडिनबरा अपनी ऐतिहासिक इमारतों और संकरी गलियों से लुभाता रहता था और जब-तब हम टहल कर वहीं पहुंच जाते थे. शहर के हर हिस्से से अपने नूर में गाफिल एडिनबरा कासल और कासल से ठीक सामने की पहाड़ी पर बनी आर्थर्स सीट उस कलात्मक वातावरण को और अधिक सम्मोहक बनाते थे. ऐसे में यह शहर लेखकों का शहर कहलाये जाने योग्य क्यों न बनता? जितना यहां के लेखक इस शहर से प्यार करते आये, उतना ही मान इस शहर ने अपने लेखकों को दिया है. कवि-लेखक वॉल्टर स्कॉट की प्रतिमा और उसका गुंबद तो शहर की सबसे ऊंची इमारत है.

तीन दिन रह कर, खूब पैदल घूम कर हम जान चुके थे कि एडिनबरा का पुराना शहर जितना सतह के ऊपर है, उतना ही अपने अंडरग्राउंड अंधेरी-संकरी गलियों और तहखानों में भी है और बहुत-सी बीती सदियों के अतीत को यह पुराना शहर गलियों, अंडरग्राउंड पासेज में अब भी जीता है. कल्पना की जा सकती है कि शहर के ऊपरी शाही नगर के समानांतर इन निचली गुप्त गलियों के गुंजलों और मजबूत तहखानों को सैकड़ों साल पहले कभी व्यापारियों, लुटेरों, दासों, ठगों, सस्ती वेश्याओं, नौकरानियों, परित्यक्त मजलूम स्त्रियों जैसे चरित्रों ने किस रोचक ढंग से आबाद कर रखा होगा.

इतिहास से परे इन गलियों और इनमें घटी घटनाओं को साहित्य की किताबों और कलाकारों के चित्रों में दर्ज किया गया है. लेकिन, फिर भी इन गलियों के अनगिनत किस्से अभी तक अनकहे हैं. एक कलाकार और लेखक जानता है अट्टालिकाएं, सुरम्य बगीचे इंसान की कहानी का केवल आधा हिस्सा होते हैं, बाकी आधा वे इलाके, जो भद्र समाज द्वारा उपेक्षित छोड़ दिये जाते हैं. मेरे जैसे कई दीवाने टूरिस्ट हैं, जो एडिनबरा की सुरम्य सड़कों के आकर्षण के बरक्स इन रहस्यमय गुप्त गलियों में आमजन से भी निचले स्तर का जीवन बिताने वाले लोगों के गुप्त इतिहास में भी उतनी ही रुचि रखते हैं.

इन गुप्त-गुंजलों को यहां वॉल्ट कहा जाता है. वाल्ट यानी तहखाने. इतिहास गवाह है कि ये कभी एडिनबरा की मूल सड़कें थीं, बाद में बनी संरचनाओं को इनके शीर्ष पर बनाया गया था. कभी जीवंत रही इन गलियों को दफना कर और उन्हें खजानों, सुरंगों, तहखानों, महामारियों से पीड़ित लोगों को निर्वासित रखने के स्थानों में बदल दिया गया था. ये वाल्ट्स मूल रूप से पहले शहर के दक्षिण पुल के नीचे के मेहराब थे, इनका उपयोग व्यापारियों द्वारा किया जाता था. बाद में यह नदी का पुल होने के कारण, बहुत नमी के चलते अनुपयोगी हो गया था. नतीजतन, शहर के सबसे गरीब निवासी इन क्लस्ट्रोफोबिक, अंधेरे और असुरक्षित वाल्टों में चले गये. लेकिन, बाद में यानि 1985 तक ज्यादातर वाल्ट मलबों से भर गये और कुछ ठीक स्थिति वाले भूमिगत हिस्सों को ऐतिहासिक विरासत, भुतहा करार कर पर्यटन स्थलों में बदल दिया गया था.

मुझे भुतहा जगहों का व्यवसायीकरण कतई उत्सुक नहीं करता, सो पैम्फलेटों में छपे ऐसी किसी जगह के ‘घोस्ट टूर’ में तो मेरी दिलचस्पी नहीं थी, मगर मैं एक खिसकैले टूरिस्ट की तरह इन गुप्त गलियों को देखना जरूर चाहती थी. सब कुछ समय पर निर्भर था कि पहले मुख्य – मुख्य पर्यटन स्थल तो देख लिये जाएं. जब हमने पूरा शहर, किला, सारे कासल्स, म्यूजियम, झीलें, कब्रगाह घूम डालें. तब एक शाम प्राचीन सराय (टैवर्न, जिसे पब में बदल दिया था) में बैठ कर मैंने अंशु को मना ही लिया कि अब ब्लेयर स्ट्रीट अंडरग्राउंड वाल्ट्स में घूम कर आया जाये. पहले हम ब्लेयर स्ट्रीट अंडरग्राउंड वाल्ट्स की तरफ गये. हम कुछ सीढ़ियां उतर कर एक छोर से उसमें दाखिल हुए. मेरी हैरानी के लिए आरंभ में तो वे काफी चौड़ी पत्थर जड़ी गलियां थीं. धूसर अंधेरों के बीच उनमें कहीं-कहीं रोशनदान भी नजर आते रहते थे. कई जगह विकट चढ़ाई और सुरंग साथ आ जाते, तो अंधेरे में अपना हांफना ही डरा देता था. इस दौरान कई बार ऐसा हुआ, जब मेरी त्वचा कांपने लगी और मेरा दिल मेरी पसलियों के खिलाफ हो गया. मैं उन सुरंगों में बहती अजीब ठंडी लहर की अनुभूति को व्यक्त नहीं कर सकती. मगर वह रह-रह कर मुझे इतिहास के गुमनाम अंधियारे पक्षों के बारे में सोचने को मजबूर कर रही थी. कैसा होगा यहां जीवन?

ऐसी जगहें भुतहा महत्व की होती हैं. यही वजह थी कि यहां हमारे साथ एक छोटा टूरिस्ट-ग्रुप भी चल रहा था, जो ‘घोस्ट टूर’ वालों का प्रायोजित था. हमारे लिए आसानी हो गयी कि हमारे आगे कुछ लोग मोमबत्तियां लिये चल रहे थे. हम चुपचाप अलग भी मगर इस ग्रुप के पीछे भी साथ-साथ चलते रहे एक अनुभव की तलाश में. यहां से निकल कर सड़क पार कर हम एक दूसरे अंडर पास ‘द रियल मैरी किंग्स क्लोज’ में दाखिल हुए. ‘मैरी किंग क्लोज’ एक अच्छी-खासी चौड़ी भूमिगत सड़क है, जो 17 वीं शताब्दी में वापस साफ करके उपयोग में लाई गयी थी. विश्व-युद्धों के सबसे खराब समय के दौरान, इसे हवाई हमलों से बचने के लिए भी इस्तेमाल किया गया था. क्लोज एक बंद गली के लिए प्रयोग आने वाला स्कॉटिश शब्द है. यह भूमिगत जगह 16 वीं और 19 वीं शताब्दी के बीच के एडिनबरा के वास्तविक जीवन और इतिहास की झलक पेश करती है. कभी यह सड़क, जो मैरी किंग के नाम पर बनी थी, एडिनबरा की व्यवसायिक हलचलों का केंद्र थी. दरअसल, मैरी किंग 17 वीं शताब्दी के एक अमीर वकील की बेटी थी, जिसके पास इस ‘क्लोज’ में कई गूढ़ खजाने थे. जो पता नहीं बाद में लुटपिटा गये. यहां पहले वाली इमारतों का निर्माण एकदम सही तरीके से किया गया था, लेकिन अधिक सम्पन्न लोगों ने इस जीवंत बाजार के ऊपर नया शहर बसा कर इसे एक रहस्यमय भूमिगत भूलभुलैया में बदल दिया था. बाद में यही अपराधिक गतिविधियों का गढ़ बन गया. यहां बमुश्किल रोशनी पहुंचती, पानी के साथ इनमें मलबा भी चला आया. जब चूहों ने इनको आबाद किया, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि प्लेग इस क्षेत्र में बुरी तरह फैल गया. जब ऐसा हुआ, तो यहां के निवासियों सहित एडिनबरा शहर के अनेकों संक्रमित निवासियों को इस भूमिगत इलाके में बंद कर इसके बाहर निकलने वाले रास्तों को सील कर दिया गया और बस बिना इलाज मरने के लिए छोड़ दिया गया.इस भूमिगत भूलभुलैय्या में चलते हुए तीन-चार बार मेरा मन घबराया, मगर अब तो इसके निकास द्वार तक पहुंचने तक हौसला बनाये रखना था.

मैं भूतों में विश्वास करती हूं या नहीं यह मुझे नहीं पता, पर मेरा भी बचपन आगरा की अपने ननिहाल की विशाल कोठी के गलियारों और छतों पर घूमते भूतों की कहानियां सुनते, डरते बीता है. सो चलते-चलते वही बचपन वाला डर रीढ़ पर बर्फ के टुकड़े सा फिर जाता था, तो मैं अंशु का हाथ पकड़ लेती थी. मुझे ठीक-ठीक नहीं पता कि हमारे आगे चल रहे ग्रुप के गाइड ने इस वॉल्ट में मिलने वाले भूतों के बारे में बताया कि नहीं, क्योंकि जब वो लोग एक तहखाने में भीतर घुसे थे, तो हम सीधे आगे निकल आये थे.

इस टेढ़ी-मेढ़ी गली के आगे एक दालान-सा था, जो कभी चौराहा रहा होगा. एक जगह चलते -चलते मुझे अपने बगल से छोटे-छोटे कदमों की पदचाप सुनाई दी. जैसे कोई बच्चा चप्पल घसीट कर चलता हो. मगर मेरे बगल में तो मोटी पत्थर चिनी दीवार थी, अंशु दांयी तरफ चल रहे थे, बड़े- बड़े संतुलित डग भर कर. पहले क्षण में, मैंने इसके बारे में ज्यादा नहीं सोचा. मेरे मस्तिष्क ने स्वत: ही इसे पृष्ठभूमि की कोई गूंज मान छोड़ दिया. फिर भी मेरे पारदर्शी चेहरे पर उलझन आ ही गयी थी, अंशु ने पूछा- क्या हुआ?

‘मुझे किसी के चलने की आवाज सुनाई दी, वो भी किसी बच्चे के चप्पल घसीट कर चलने की…..’ मेरी आवाज ठंडी थी.

‘हेहे, मन्नो ! जरूर किसी भूत का बच्चा होगा बेचारे की चप्पल टूट गयी होगी.’

तभी ‘घोस्ट-टूर ग्रुप’ वाले कही किसी शॉर्ट कट सुरंग से निकल कर हमारे आगे फिर से आ गये. अब गाइड चौक में खड़ा बता रहा था- ‘1645 में, जब एडिनबरा में ब्यूबोनिक प्लेग तीव्रता से फैल गया. शहर का यह हाल था कि हर कोई या तो बीमार था या बीमार की देखभाल कर रहा था. स्थानीय राज्य-परिषद ने गुप्त रूप से इस पूरे इलाके को बंद कर दिया था. जो कोई अंदर था, बीमार या स्वस्थ बस फंसा हुआ था, मानो बस मरने के लिए छोड़ दिया गया हो. कुछ वर्षों के बाद, इसे फिर से खोला गया और साफ किया गया. उसके बाद हमेशा के लिए इस सड़क को ‘दुखों की सड़क’ के रूप में याद रखा गया. तभी उस गाइड ने एक बच्ची भूत एनी का जिक्र किया और मेरा चेहरा फक पड़ गया. कथा यह थी कि ब्यूबोनिक प्लेग के समय अपने माता-पिता द्वारा एनी वहां अपनी गुड़िया संग छोड़ दी गयी थी. वह कब कैसे मरी यह तो कोई नहीं जानता. लेकिन, यह बात फैली गयी कि एनी की आत्मा अपनी खोई हुई गुड़िया की तलाश करती है. वहां से गुजरने वालों के कपड़े हौले-हौले खींचती है.

वहां से हम बाहर निकले और मैंने गहरी-गहरी सांसे लीं. रॉयल माईल पर ही हम एक बार में बियर पीने बैठ गये. अंशु चुपचाप बियर पीते हुए सोच में गुम थे. मैं कॉफी मग से उंगलियां सटाये मन ही मन, पांव घिसट कर चलने और गुड़िया ढूंढने वाली एनी की मुक्ति की प्रार्थना कर रही थी. हमारे भारतीय दर्शन में मुक्ति ही अंतिम शरण है फिर वह मुक्ति भूतयोनि से हो कि भूतकाल से. यह मुक्ति भ्रम से हो कि सत्य से.

(मौजूदा दौर में हिंदी की प्रमुख कथाकार. समय-समय पर काव्य-लेखन भी. इंटरनेट की पहली हिंदी वेब पत्रिका ‘हिंदीनेस्ट’ का एक दशक से अधिक समय से संपादन.)

संपर्क : हाउस नंबर 10, 18वीं लेन, 19वीं स्ट्रीट, सेंट्रल पार्क नॉर्थ ऐवेन्यू बी, वाटिका इन्फोटेक सिटी, जयपुर- 302026, राजस्थान, मो. : ‪9911252907, manishakuls@gmail.com

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें