आदिवासियों के बारे में नहीं जानते होंगे ये 7 बातें, जानकर दांतों तले दबा लेंगे उंगलियां
World Tribal Day 2025: आदिवासी समुदाय सदियों से प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षक रहे हैं. बावजूद इसके उन्हें उनकी ही जमीन पर जाने से रोका जाता है. इंटरनेशनल डे ऑफ द वर्ल्ड्स इंडीजिनस पीपुल्स पर सर्वाइवल इंटरनेशनल ने 7 ऐसे तथ्यों का खुलासा किया है, जिसके बारे में लोग नहीं जानते. अगर जान लेंगे, तो दांतों तले उंगलियां दबा लेंगे. पेश हैं, वही अनकहे फैक्ट्स.
World Tribal Day 2025: पूरे विश्व में 9 अगस्त को इंटरनेशनल डे ऑफ द वर्ल्ड्स इंडीजिनस पीपुल्स मनाया जाता है. इसे हिंदी में विश्व आदिवासी दिवस कहते हैं. आदिवासियों के बारे में बातें बहुत ज्यादा होतीं हैं, लेकिन उनके बारे में गहराई से जानकारी कुछ लोगों के पास ही है. इस विश्व आदिवासी दिवस पर ‘सर्वाइवल इंटरनेशनल’ ने ऐसे 7 तथ्य सामने रखे हैं, जिसके बारे में आपको भी जानना चाहिए. सर्वाइवल इंटरनेशनल के मुताबिक, आदिवासियों को जातिवाद, जमीन हड़पने, जबरन विकास के नाम पर आज भी जनजातीय समुदाय के लोगों को हिंसा झेलनी पड़ती है.
ब्राजील में रहतीं हैं 100 से अधिक जनजातियां
अक्टूबर में होने वाले ब्राजील के राष्ट्रपति चुनाव के प्रमुख उम्मीदवार जायर बोलसोनारो ने कहा था कि अगर वह सत्ता में आते हैं, तो आदिवासियों के लिए एक सेंटीमीटर जमीन नहीं बचेगी. उन्होंने कहा कि ब्राजील में 100 से अधिक जनजातियां हैं, जहां तक लोगों की पहुंच नहीं है. वे आज तक आम लोगों से अछूते हैं. पूरी दुनिया में ब्रीजील ही ऐसी धरती है, जहां इतनी जनजातियां अपनी अलग दुनिया में रहती है. अगर उनकी जमीन की रक्षा नहीं की जाती, तो उन्हें तबाही का सामना करना पड़ता है.
कांगो और कैमरून में बाका जनजाति को जंगलों में जाने से रोका जाता है
तथाकथित ‘संरक्षण’ के नाम पर, कांगो गणराज्य और कैमरून में बाका जनजाति को उनके पैतृक जंगलों में प्रवेश करने से रोका जाता है. उस जंगल में जाने से आदिवासियों को रोका जा रहा है, जिनका उन्होंने पोषण किया है. पीढ़ियों से ये लोग उन जंगलों पर निर्भर हैं. यदि वे जंगल में जाने की हिम्मत करते हैं, तो डब्ल्यूडब्ल्यूएफ द्वारा वित्त पोषित अवैध शिकार विरोधी दस्ते के सदस्य उन्हें आतंकित करते हैं. फिर भी आदिवासी प्रकृति के सर्वश्रेष्ठ संरक्षणवादी और संरक्षक हैं. धरती पर मौजूद 80 प्रतिशत जैव विविधता आदिवासी क्षेत्रों में पायी जाती है और वे उसका संरक्षण करते हैं.
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गुआरानी-कैओवा जनजाति में आत्महत्या दर सबसे अधिक
गुआरानी-कैओवा जनजाति की आत्महत्या दर दुनिया में सबसे अधिक है. आत्महत्या करने वालों में 85 प्रतिशत लोग 30 वर्ष से कम आयु के हैं. सिर्फ 9 साल की उम्र में एक बच्चे ने आत्महत्या कर ली. एक गुआरानी महिला ने कहा, ‘गुआरानी आत्महत्या कर रहे हैं, क्योंकि हमारे पास कोई जमीन नहीं है.’ पशुपालकों ने गुआरानी की भूमि पर कब्जा कर लिया है और उनके बंदूकधारी उसके जनजाति समुदायों पर हिंसक हमला कर रहे हैं. जनजातीय भूमि उन्हें भोजन, आवास, दवाएं, कपड़े और पहचान के साथ-साथ अपनेपन की भावना देती है.
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मलेशिया में ‘ओरंग असली’ समुदाय के 5 बच्चों की मौत से जुड़ा मामला है गंभीर
मलेशिया में वर्ष 2015 में ‘ओरंग असली’ समुदाय के 5 बच्चों की उस वक्त मौत हो गयी, जब वे कर्मचारियों की पिटाई से डरकर अपने बोर्डिंग स्कूल से भाग गये. उनकी तलाश करने की बजाय, अधिकारियों ने माता-पिता पर बच्चों को छिपाने का आरोप लगाया और 2 सप्ताह तक उनकी खोज ही शुरू नहीं की. जब उनकी खोज शुरू हुई, तो परिजनों को इससे दूर रखा गया. भयभीत बच्चों की तलाश के लिए सैनिकों को भेज दिया गया. इस त्रासदी के बाद स्कूल ने कहा कि वह बच्चों को स्कूल से भागने से रोकने के लिए एक बेहतर बाड़ बनवायेंगे.
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आदिवासी के अधिकारों की अनदेखी करती हैं सरकारें
आदिवासियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की जो घोषणाएं हैं, सरकारें अक्सर उन्हें नजरअंदाज कर देती हैं, बड़े व्यापारियों के फायदे के लिए. वर्ष 2018 में जर्मन सरकार ने स्वीकार किया था कि अफ्रीका में जनजातीय लोगों के साथ ‘बड़े पैमाने पर भेदभाव किया जाता है’. साथ ही कहा कि उनके अधिकारों के कार्यान्वयन के लिए ‘सार्वजनिक मांग’ से संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है.
ऑस्ट्रेलिया में सामान्य वर्ग के लोगों से 10 साल कम जीते हैं आदिवासी समाज के लोग
दुनिया के किसी भी देश की तुलना में ऑस्ट्रेलिया में लोग सबसे अधिक जीवित रहते हैं. 82.5 वर्ष. दूसरी तरफ, आदिवासियों की जीवन प्रत्याशा गैर-आदिवासियों की तुलना में 10 वर्ष से अधिक कम है. यानी ने 72 साल से भी कम जीते हैं. जो जनजातीय लोग अपनी भूमि पर नियंत्रण रखते हैं, वे अपनी भूमि से बेदखल कर दी गयी जनजातियों की तुलना में अधिक स्वस्थ हैं.
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जारवा जनजाति को ‘ह्यूमन सफारी’ के रूप में पेश करते हैं टूर ऑपरेटर्स
भारत के अंडमान द्वीप समूह के टूर ऑपरेटर संरक्षित जारवा जनजाति को ‘ह्यूमन सफारी’ के रूप में बेच रहे हैं. पर्यटक जारवा के जंगल से होते हुए सड़क मार्ग से जाते हैं और एक सफारी पार्क में जानवरों की तरह जनजाति के सदस्यों को ‘पहचानने’ की कोशिश करते हैं. वर्ष 2002 में सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने जारवा की भूमि से होकर जाने वाली सड़क को बंद करने का आदेश दिया था.
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