World Tribal Day 2025: जनजातीय भाषाओं का डिजिटल डॉक्यूमेंटेशन कर रहे डॉ गणेश मुर्मू

World Tribal Day 2025: डॉ गणेश मुर्मू इंडियन कन्फेडरेशन ऑफ इंडीजीनस एंड ट्राइबल पीपुल (आइसीआइटीपी) के आमंत्रण पर 2008 से पहले नेशनल ज्योग्राफिक चैनल की टीम आयी थी. इसी दौरान जनजातीय भाषाओं पर काम करने की चर्चा हुई. वर्ष 2008 से प्रोजेक्ट शुरू हुआ था. नेशनल ज्योग्राफिक चैनल में अभी तक भारत की जनजातीय भाषाओं पर 10 एपिसोड प्रसारित हो चुके हैं.

By Mithilesh Jha | August 7, 2025 10:31 PM

World Tribal Day 2025|रांची, प्रवीण मुंडा : डॉ गणेश मुर्मू नेशनल ज्योग्राफिक चैनल के लिए भाषा और संस्कृति पर काम कर रहे हैं. इंड्यूरिंग वॉयस के तहत जारी प्रोजेक्ट के तहत भारत के आदिवासी समुदायों की लुप्त हो रही भाषाओं का डिजिटल डॉक्यूमेंशन हो रहा है. अभी तक अरुणाचल प्रदेश, उत्तर-पूर्व के अन्य राज्य, ओडिशा और मध्यप्रदेश की जनजातीय भाषाओं के डिजिटल डॉक्यूमेंटेशन का काम किया गया है. झारखंड की भाषाओं पर अभी काम सर्वे के स्तर पर है. इसका उद्देश्य लुप्त होती भाषाओं का संरक्षण और उन्हें खत्म होने से बचाने में मदद करना है.

दो अमेरिकी और एक भारतीय भाषाविद कर रहे हैं काम

इस प्रोजेक्ट में तीन भाषाविद काम कर रहे हैं. इनमें लिविंगटंग इंस्टीट्यूट ऑफ लैंग्वेजेज ओरेगन (अमेरिका) से डॉ ग्रेगरी एंडरसन, अमेरिका से ही डेविडसन हैरीसन और भारत से डॉ गणेश मुर्मू शामिल हैं. डॉ गणेश मुर्मू पहले जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग (टीआरएल डिपार्टमेंट) रांची में रिसर्च कर रहे थे. वह अभी विनोबा भावे विवि, हजारीबाग में जनजातीय क्षेत्रीय भाषा में कार्यरत हैं. उनकी मुख्य भूमिका शोध कार्यों में है.

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2008 में शुरू हुआ था जनजातीय भाषा पर काम

डॉ गणेश मुर्मू ने बताया कि इंडियन कन्फेडरेशन ऑफ इंडीजीनस एंड ट्राइबल पीपुल (आइसीआइटीपी) के आमंत्रण पर 2008 से पहले नेशनल ज्योग्राफिक चैनल की टीम आयी थी. जिसके बाद भाषाओं को लेकर काम करने के लिए उनसे बातचीत हुई. 2008 से प्रोजेक्ट शुरू हुआ था. नेशनल ज्योग्राफिक चैनल में अभी तक भारत की भाषाओं को लेकर 10 एपिसोड प्रसारित किये जा चुके हैं.

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अरुणाचल के जंगलों में 55 किमी पैदल चले

उन्होंने कहा कि भाषाओं के डॉक्यूमेंशन के दौरान सबसे बड़ी चुनौती अरुणाचल प्रदेश में आयी थी. कोरो आका जनजाति से मिलने के लिए अरुणाचल के तवांग में मुख्य सड़क से जंगल के अंदर 55 किमी पैदल जाना पड़ा था. जंगलों में इस दौरान स्लीपिंग बैग में रात गुजारी. ओडिशा के कोरापुट में मुंडा ग्रुप की भाषा रेमो बोंडा पर काम हुआ. झारखंड में बिरहोर, असुर, माल पहाड़िया, सौरिया पहाड़िया, मुंडा और संताल आदि पर भी भाषाई सर्वे किया गया है. डॉ मुर्मू ने बताया कि जिन भाषाओं पर काम जारी है, उनकी किताबें भी प्रकाशित की जा रही हैं. अब तक मुंडारी और संताली सहित अन्य भाषाओं पर किताबें प्रकाशित की गयी हैं.

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