Mahatma Gandhi Jayanti: झारखंड और आदिवासियों से बहुत प्रभावित थे महात्मा गांधी

Mahatma Gandhi Jayanti: झारखंड ने गांधीजी को ताकत दी थी. 1925 में गांधीजी चाईबासा गये थे, जहां हो समुदाय के लोगों से मिले थे. उनसे आदिवासियों की वीरता की कहानी सुनी थी. वहां से रांची लौटने के दौरान खूंटी में ठहरे थे, जहां मुंडा जनजाति के लोगों से मिले थे. रांची में टाना भगतों ने उनसे दरभंगा हाउस में मुलाकात की थी और उसके बाद वे गांधी के इतने भक्त हो गये थे कि गया, कोलकाता और रामगढ़ के कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए पैदल ही चले गये थे.

By Mithilesh Jha | October 1, 2025 4:34 PM

अनुज कुमार सिन्हा

Mahatma Gandhi Jayanti: दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के बाद महात्मा गांधी ने जो पहला बड़ा आंदोलन किया था, वह था चंपारण आंदोलन. इस आंदोलन की सफलता ने पहली बार गांधी जी की ताकत से देश को अवगत कराया था. गांधी जी की ताकत को बढ़ाने में झारखंड का संबंध भी रहा है. चंपारण आंदोलन पर वार्ता के लिए गांधी जी को जून, 1917 में रांची बुलाया गया था. तब सर एडवर्ड गेट लेफ्टिनेंट गवर्नर थे. ऐसी आशंका थी कि रांची में गांधी जी को गिरफ्तार किया जा सकता है, इसलिए गांधीजी ने पत्नी कस्तूरबा गांधी और बेटे को भी रांची बुला लिया था.

रांची, जमशेदपुर,चाईबासा समेत कई जिलों में गये गांधीजी

गांधी जी ब्रजकिशोर प्रसाद के साथ रांची आये. सर गेट के साथ गांधी जी की इतनी अच्छी वार्ता हुई कि गिरफ्तारी की जगह एक कमेटी बना दी गयी. यहीं से गांधी जी का संबंध झारखंड से बना. उसके बाद 1925, 1934 और 1940 में गांधी जी झारखंड आये. अपने झारखंड दौरे में वे रांची के अलावा जमशेदपुर, चाईबासा, रामगढ़, हजारीबाग, गिरिडीह, बेरमो, धनबाद, देवघर, मधुपुर, पलामू, खूंटी, चक्रधरपुर आदि जगहों पर गये. गांधीजी की यात्रा का गहरा असर पड़ा था. वे खुद झारखंड की प्राकृतिक खूबसूरती और यहां के आदिवासियों से प्रभावित थे. इसका उन्होंने जिक्र भी किया था.

Mahatma Gandhi Jayanti: झारखंड ने गांधीजी को दी थी ताकत

झारखंड ने गांधीजी को ताकत दी थी. 1925 में गांधीजी चाईबासा गये थे, जहां हो समुदाय के लोगों से मिले थे. उनसे आदिवासियों की वीरता की कहानी सुनी थी. वहां से रांची लौटने के दौरान खूंटी में ठहरे थे, जहां मुंडा जनजाति के लोगों से मिले थे. रांची में टाना भगतों ने उनसे दरभंगा हाउस में मुलाकात की थी और उसके बाद वे गांधी के इतने भक्त हो गये थे कि गया, कोलकाता और रामगढ़ के कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए पैदल ही चले गये थे. गांधीजी की जय उनका मुख्य नारा था. यह गांधी जी का ही प्रभाव था कि 1942 के आंदोलन में झारखंड के टाना भगतों ने बड़ी भूमिका अदा की थी. गांधी जी ने बेरमो और देवघर में संतालों से मुलाकात की थी और उन्हें राष्ट्रीय आंदोलन में खुल कर भाग लेने को कहा था. 1942 के आंदोलन में संतालों ने अच्छी भागीदारी गांधीजी के कारण ही हो सकी थी.

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योगदा सत्संग विद्यालय भी गये थे बापू

अपनी झारखंड यात्रा के दौरान गांधी जी ने खादी का उपयोग करने, महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने, छात्रों के चरित्र निर्माण, शराब से दूर रहने और समाज सेवा पर ज्यादा जोर दिया था. रांची में गांधी जी योगदा सत्संग स्थित विद्यालय गये थे और वहां छात्रों को दी जा रही शिक्षा से प्रभावित हुए थे. गांधीजी ने योगदा सत्संग के बारे में लिखा-इस संस्था की मैं सर्व प्रकार की उन्नति चाहता हूं. इस संस्था का मेरे मन पर अच्छा असर पड़ा है. चरखे की प्रवृत्ति में मैं ज्यादा ज्ञान और अभ्यास की आशा रखता हूं. हजारीबाग में संत कोलंबा कॉलेज में छात्रों को गांधी ने संबोधित किया था और बताया था कि छात्रों को समाज सेवा करनी चाहिए, उनका चरित्र निर्माण बेहतर होना चाहिए.

हो आदिवासियों पर शोध करने के लिए कहा था छात्रों से

उसी कॉलेज में छात्रों को कहा था कि वे हो आदिवासियों के बारे में शोध कर अधिक से अधिक जानकारी समाज को दें. गांधीजी साफ-साफ बात करने में विश्वास करते थे. संत कोलंबा कॉलेज में उन्होंने कहा था कि सबसे बड़ी बीमारी निठल्लापन है. जब गिरिडीह में गांधी जी की सभा थी और उनसे शिकायत की गयी थी कि नगरपालिका के पास सड़क की मरम्मत के लिए पैसा नहीं है, तो गांधी जी ने वहां के लोगों से साफ-साफ कहा था-पैसा नहीं है, तो लोग खुद श्रमदान से सड़कों की मरम्मत करें. खुद सफाई करें, सफाई करने से कोई छोटा नहीं हो जायेगा. उन्होंने अपना उदाहरण भी दिया था. इस तरह गांधी जी जहां भी गये, लोगों को जागरूक करने और उनकी जिम्मेवारी का अहसास कराते रहे.

1925, 1934 और 1940 में जमशेदपुर गये थे महात्मा गांधी

जमशेदपुर के बारे में सर एडवर्ड गेट ने गांधीजी को 1917 में ही कहा था- जमशेदपुर जाये बगैर मत लौटियेगा. यह बताता है कि जमशेदपुर के बारे में कितनी अच्छी धारणा थी. गांधी जी 1925, 1934 और 1940 में जमशेदपुर गये थे. मजदूरों और टाटा प्रबंधन के बीच बेहतर संबंध बनाने में बड़ी भूमिका अदा की थी. यहां इस बात का उल्लेख करना आवश्यक है कि गांधी जी जब दक्षिण अफ्रीका में आंदोलन कर रहे थे, तब सर रतनजी टाटा (जमशेदजी नौसरवानजी टाटा के पुत्र) ने उन्हें आंदोलन के लिए 25 हजार रुपए की सहायता राशि भेजी थी, जिसका जिक्र गांधीजी ने खुद किया था.

रांची के हरिजन स्कूल में की थी बच्चों के नाखून, कान की सफाई

गांधीजी ने जब-जब झारखंड का दौरा किया और किसी बड़े उद्देश्य के लिए कोष के लिए राशि की मांग की, झारखंड के लोगों ने खुलकर साथ दिया. गिरिडीह में महिलाओं ने सोने-चांदी के जेवर भी दे दिये थे. गिरिडीह और झरिया ऐसे सहयोग में आगे रहा था. गांधीजी जब 1934 में रांची आये थे और हरिजन स्कूल-बस्ती गये थे तो स्कूल में उन्होंने खुद बच्चों के नाखून, कान, आंख की सफाई की जांच की थी. शिक्षकों को बताया था कि वे पढ़ाई का आरंभ ही सफाई से करें. गांधीजी ने खुद कुछ बच्चों के बड़े-बड़े नाखून को काट कर छोटा किया था. वे सिर्फ बोलने में नहीं, करने में विश्वास करते थे. ये बातें उनकी झारखंड यात्रा में भी झलकी थी. (लेखक प्रभात खबर के पूर्व कार्यकारी संपादक और झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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