Independence Day 2025: भारत छोड़ो आंदोलन में गांधी जी के साथ गए थे जेल, आजादी के दीवाने राम प्रसाद ने ठुकरा दी थी पेंशन

Independence Day 2025: 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली थी. आजादी की लड़ाई में अनगिनत देशभक्तों ने अहम भूमिका निभाई थी. 79वें स्वतंत्रता दिवस पर आजादी के दीवाने सीरीज में आज पढ़िए गुमला के वीर सपूत राम प्रसाद की बहादुरी की कहानी. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में वे महात्मा गांधी के साथ जेल गए थे. बिहार भूदान आंदोलन में इनके अहम योगदान के कारण विनोबा भावे हमेशा इनसे प्रसन्न रहते थे. इन्होंने स्वतंत्रता सेनानी पेंशन एवं सुविधाएं ठुकरा दी थीं.

By Guru Swarup Mishra | August 13, 2025 7:32 PM

Independence Day 2025: स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन देश के प्रति उनके समर्पण को लोग आज भी याद करते हैं. प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल करने की उनमें अद्भुत कला थी. अपने साथियों के साथ उन्होंने आजादी की लड़ाई में भाग लिया था. उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के भेदभाव और कानूनों के विरोध में भूदान जैसे कई आंदोलनों में अहम भूमिका निभायी थी. भूदान आंदोलन के प्रणेता विनोबा भावे इनकी सेवा भावना से प्रसन्न रहते थे. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में वे महात्मा गांधी के साथ जेल गए थे. राम प्रसाद ने स्वतंत्रता सेनानी को मिलनेवाली पेंशन एवं सुविधाएं ठुकरा दी थीं.

बिहार भूदान आंदोलन में सराहनीय थी इनकी भूमिका


राम प्रसाद का जन्म गुमला में सात जून 1910 को हुआ था. उनके पिता का नाम वंशी साव एवं माता का नाम राजकलिया देवी था. बचपन से ही उनके रगों में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी. युवा अवस्था में ही वे आजादी की लड़ाई में कूद पड़े. वर्ष 1935 में उन्होंने अंग्रेजों की भेदभाव की नीति के खिलाफ आवाज बुलंद की. इस कारण कई बार उन्हें जेल जाना पड़ा. बिहार भूदान आंदोलन में इनकी भूमिका सराहनीय रही. जिला भूदान किसान पुनर्वास समिति के कार्य में प्रगति लाने के लिए आठ नवंबर 1958 में भूदान किसान पुनर्वास समिति के प्रतिनिधियों की बैठक में इनके विचार सराहनीय थे.

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भारत छोड़ो आंदोलन में गांधी जी के साथ गए थे जेल


1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में राम प्रसाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के संपर्क में आए थे. उनके साथ वे जेल गए थे. बिहार भूदान आंदोलन में निरीक्षक के पद का निर्वहन करते हुए इन्होंने ईमानदारी की मिसाल पेश की. भूदान आंदोलन के प्रणेता विनोबा भावे इनकी सेवा भावना से हमेशा प्रसन्न रहते थे.

देश के बड़े नेताओं को पत्र के जरिए कराते थे अवगत


स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद ने साधन के अभाव में भी अपने विशिष्ट पत्र के माध्यम से देश की समस्याओं से तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद समेत कई बड़े नेता को अवगत कराया. समाज में समानता कायम करने के लिए उन्होंने हरिजन संघ के मंत्री का कार्यभार संभाला.

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देशभक्ति की बयार बहाने में निभायी अहम भूमिका


4 सितंबर 1955 को रांची में हिंदी साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया गया था. साधारण सभा ने स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद को सक्रिय सदस्य बनाया था. इन्होंने अपने मित्र गणपत लाल खंडेलवाल के जरिए डॉ राजेंद्र प्रसाद और विनोबा भावे जैसे राष्ट्रीय नेताओं को निमंत्रण दिलवाया और गुमला में देशभक्ति की बयार बहाने में अहम भूमिका निभायी.

ठुकरा दी थीं स्वतंत्रता सेनानी पेंशन और सुविधाएं


राम प्रसाद ने स्वतंत्रता सेनानी को मिलनेवाली पेंशन एवं सुविधाएं ठुकरा दी थीं. उनका आदर्श वाक्य था कि मां (राष्ट्र) की सेवा के बदले सम्मान पाना उनके लिए पाप के समान है. रामप्रसाद का जीवन सादगीपूर्ण था. उन्होंने मैट्रिकुलेशन के साथ बैंकिंग डेवलपमेंट, एकाउटेंसी एवं ऑडिटिंग की शिक्षा हासिल की थी. इतनी योग्यता के बावजूद उन्हें आराम जीवन पसंद नहीं था.

मरणोपरांत गुमला गौरव से किए गए अलंकृत

स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद 16 जनवरी 1970 को आर्थिक तंगी के कारण रांची के रामकृष्ण मिशन सेनेटोरियम हॉस्पिटल में उनका निधन हो गया. जीवन के अंतिम समय में तत्कालीन सरकार ने इन्हें कोई सहयोग नहीं दिया. मरणोपरांत इन्हें गुमला गौरव से अलंकृत किया गया.