ranchi news : डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान रांची में कविता शिविर

डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान, रांची में शनिवार को शुरू हुए 'कविता शिविर' का माहौल पूरी तरह साहित्यिक और वैचारिक विमर्शों से सराबोर रहा.

By Prabhat Khabar News Desk | June 7, 2025 1:01 AM

रांची. डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान, रांची में शनिवार को शुरू हुए ””कविता शिविर”” का माहौल पूरी तरह साहित्यिक और वैचारिक विमर्शों से सराबोर रहा. प्रगतिशील लेखक संघ, शब्दकार और साहित्य कला फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित शिविर के पहले दिन देशभर के साहित्यप्रेमियों, अध्यापकों, शोधार्थियों और युवाओं की उपस्थिति रही. पहले दिन के दोनों सत्रों में कविता के सौंदर्यशास्त्र, स्त्री चेतना, प्रतीक और बिंब जैसे विषयों पर चर्चा हुई.

पहले सत्र की शुरुआत वरिष्ठ साहित्यकार डॉ माया प्रसाद के वक्तव्य से हुई. उन्होंने महादेवी वर्मा के वाग्वैशिष्ट्य और निराला की गीति योजना पर विस्तार से चर्चा की. उन्होंने कहा : महादेवी की कविता उनके जीवन की पीड़ा और अनुभवों की अमूर्त अभिव्यक्ति है, जो स्त्री चेतना को अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम बनती है. निराला के संदर्भ में कहा कि उन्होंने छायावादी गीति काव्य को एक नयी ऊंचाई दी और हिंदी कविता को आत्मद्रष्टा स्वर प्रदान किया.

शमशेर बहादुर सिंह की कविताओं में बिंब विधान पर चर्चा

वहीं राही डूमरचीर ने शमशेर बहादुर सिंह की कविताओं में बिंब विधान पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि शमशेर बहादुर सिंह जितने कलात्मक हैं, उतने ही सामाजिक रूप से सजग भी. उनकी कविता में बिंबों की निरंतरता और परत-दर-परत चित्रात्मकता उन्हें विशिष्ट बनाती है. डॉ पंकज मित्र ने कविता में प्रतीक और बिंब विधान की व्याख्या करते हुए कहा : कविता की प्रभावशीलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसमें प्रतीक और बिंब कितनी गहराई और सटीकता से प्रयुक्त हुए हैं.

स्त्रीवादी सौंदर्यशास्त्र पर व्याख्यान

दूसरे सत्र में दिल्ली विवि की प्राध्यापिका डॉ सुजाता ने स्त्रीवादी सौंदर्यशास्त्र पर व्याख्यान दिया. उन्होंने कहा : इतिहास की मुख्यधारा में स्त्रियों की अभिव्यक्ति को हमेशा हाशिए पर रखा गया है. साहित्य और कला में भी एक विशेष प्रकार की पुरुष दृष्टि हावी रही है. लोकगीतों में स्त्रियों की पीड़ा, संघर्ष और भावनाएं परंपरा में ही स्त्री विमर्श का मौलिक आधार बनती हैं. डॉ सुधीर सुमन ने भी विचार साझा किये. समकालीन कविता और सामाजिक यथार्थ के बीच के रिश्ते पर प्रकाश डाला.

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