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प्रकृति का नववर्ष है चैत्र : हिंदू नववर्ष, सरहुल, रामनवमी, बैसाखी और पोइला बोइशाख इसी माह

चैत्र मास में हिंदू नववर्ष मनाते हैं. बंगाल के लोग पोइला बोइशाख मनाते हैं. सिख समुदाय 13 अप्रैल को हर वर्ष बैसाखी पर्व मनाता है.

रांची, लता रानी : पतझड़ के बाद प्रकृति का नया शृंगार हो गया है. वन उपवन में कोपल पत्तियां, फूल और मंजर मानव मन को हर्षित कर रहे हैं. क्योंकि यह चैत्र महीना है. इस माह में पेड़ों के पुराने पत्ते झड़ जाते हैं. नये पत्ते आ जाते हैं. इसलिए इस माह को प्रकृति का नववर्ष भी कहा जाता है.

चैत्र में हिंदू नववर्ष मनाया जाता है. बंग समुदाय भी पोइला बोइशाख सेलिब्रेट करता है. सिख समुदाय हर वर्ष 13 अप्रैल को बैसाखी पर्व मनाता है. वहीं आदिवासी प्रकृति पर्व सरहुल भी इस माह में मनाते हैं. मारवाड़ी समुदाय का लोकप्रिय पर्व गणगौर भी इसी महीने मनाया जाता है.

इस महीने की अपनी ही विशेषता है. लगभग हर समुदाय अपने-अपने तरीके से पर्व-त्योहार मनाता है. इसलिए यह माह पर्व-त्योहारों का भी है. जिसमें पूरा देश उल्लास में डूबा रहता है. भले ही लोग चैत्र माह में अपने पर्व अलग-अलग रूप से मनाते हैं, लेकिन सबका मूल यही है कि ये पर्व प्रकृति से जुड़े हैं.

इस माह छठ महापर्व और हनुमान जयंती

आ ज यानी मंगलवार से नवरात्र शुरू हो रहा है. इसी महीने रामनवमी महोत्सव मनाया जाता है. हनुमंत जयंती भी मनायी जाती है. चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा की प्रथम तिथि को हिंदू नववर्ष के रूप में मनाया जाता है.

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वहीं नौ दिनों तक मां दुर्गा की आराधना होती है. नवमी को राम जन्मोत्सव (रामनवमी) होता है. इस वर्ष आठ से 17 अप्रैल तक नवरात्र मनाया जायेगा. चैती छठ महापर्व भी 12 अप्रैल यानी चतुर्थी को नहाय-खाय के साथ शुरू होगा. पंचमी को खरना, षष्ठी को पहला अर्घ और सप्तमी को पारण है. आचार्य बालमुकुंद ने बताया कि चैत्र पूर्णिमा यानी 23 अप्रैल को हनुमान जयंती है.

खुशियों का पैगाम लेकर आता सरहुल

इ स वर्ष 10 अप्रैल से सरहुल पर्व शुरू हो रहा है. सरहुल प्रकृति पर्व है. आदिवासी समुदाय का एक प्रमुख त्योहार है, जो प्रकृति और फूलों को समर्पित होता है. यह पर्व नववर्ष को भी इंगित करता है. सरहुल में पाहन घड़े में रखे पानी को देखकर बारिश की भविष्यवाणी करते हैं.

सरहुल महोत्सव तीन दिनों का होता है. प्रत्येक वर्ष चैत्र द्वितीय शुक्ल पक्ष को उपवास और केकड़ा पकड़ने की परंपरा निभायी जाती है. तृतीय शुक्ल पक्ष को सरहुल पूजा और शोभायात्रा निकाली जाती है. वहीं चतुर्थी को फूलखोंसी कार्यक्रम होता है. इसी दिन से आदिवासी नये फल-फूल का सेवन शुरू कर देता है.

प्राकृतिक-सांस्कृतिक त्योहार है बैसाखी

सिख समुदाय का प्रमुख पर्व है बैसाखी. यह पर्व फसल कटाई की खुशी में मनाया जाता है. सिख समुदाय के लोग सामूहिक रूप से भांगड़ा और गिद्दा करते हैं. इस वर्ष 13 अप्रैल को गुरुनानक स्कूल में विशेष दीवान सजेगा. गुरु ग्रंथ साहेब का सहज पाठ का समापन होगा.

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अमृतसर के श्रीदरबार साहब हजूरी रागी दलबीर सिंह अमृतवाणी का कीर्तन करेंगे. दोपहर 12:30 बजे गुरु लंगर तैयार होगा. सभी मिलकर समरसता के संग प्रसाद ग्रहण करेंगे. गुरुद्वारा श्री गुरुसिंह सभा मेन के पूर्व महासचिव प्रो डॉ एचडी सिंह ने कहा कि बैसाखी एक सांस्कृतिक त्योहार भी है.

बंग समुदाय का पोइला बोइशाख

चैत्र महीने में ही बंग समुदाय का नववर्ष पोइला बोइशाख के रूप में मनाया जाता है. इस वर्ष 13 अप्रैल को चैत्र संक्रांति खत्म हो रही है. 14 अप्रैल को पोइला बोइशाख है. यह दिन व्यापारियों के लिए बेहद खास होता है. व्यापारी नया बही-खाता बनाते हैं. बंग समुदाय के लोग नये वस्त्र में मंदिरों में जाते हैं. विशेष पकवान बनाये जाते हैं. दुर्गाबाड़ी के सचिव गोपाल भट्टाचार्य ने कहा कि पोइला बोइशाख भी प्रकृति से जुड़ा पर्व है.

मारवाड़ी समाज मनाता है गणगौर

मारवाड़ी समाज का लोकप्रिय पर्व गणगौर भी इसी माह 11 अप्रैल को मनाया जायेगा. यह पर्व होलिका दहन के दूसरे दिन शुरू होता है और चैत्र शुक्ल की तृतीया को संपन्न होता है. 16 दिनों तक भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा होती है. कुंआरी लड़कियां और नवविवाहित महिलाएं 16 दिनों तक पूजा करती हैं. घर-घर गणगौर सिंधारा होता है.

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