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चाईबासा मनरेगा घोटाला: मंत्री केएन त्रिपाठी ने की थी डीसी व अन्य को निलंबित और प्राथमिकी दर्ज करने की अनुशंसा

चाईबासा मनरेगा घोटाले के प्रकरण में तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री ने अक्तूबर, 2014 में विभागीय सचिव को संबंधित अफसरों को निलंबित करने के लिए लिखा.

शकील अख्तर, रांची :

झारखंड के तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री केएन त्रिपाठी ने चाईबासा मनरेगा घोटाले में तत्कालीन उपायुक्त सुनील कुमार और अन्य अधिकारियों को निलंबित करने व प्राथमिकी दर्ज करने की अनुशंसा की थी. मंत्री ने घोटाले से जुड़े तथ्यों को मंत्री से ही छिपाने के मामले में सचिव और मनरेगा आयुक्त की भूमिका पर सवाल उठाये थे. पर मंत्री की अनुशंसा के आलोक में अफसरों पर कार्रवाई करने के बदले पर्दा डाल दिया गया था. इडी ने मनरेगा घोटाले में इन अफसरों को जांच के दायरे में शामिल किया है.

चाईबासा मनरेगा घोटाले के प्रकरण में तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री ने अक्तूबर, 2014 में विभागीय सचिव को संबंधित अफसरों को निलंबित करने के लिए लिखा. मंत्री ने सचिव को भेजे गये पत्र में कहा कि तत्कालीन सांसद बागुन सुंब्रुई और दो अन्य सांसदों ने चाईबासा में मनरेगा घोटाले की लिखित शिकायत की थी. मामले की गंभीरता को देखते हुए सचिव या मनरेगा आयुक्त द्वारा इस मामले में जांच की जानी चाहिए थी. लेकिन, मनरेगा आयुक्त ने इसे रूटीन काम के रूप में लिया. शिकायत के सिलसिले में बार-बार रिमांडर भेजे जाने के बावजूद तत्कालीन उपायुक्त का मंतव्य नहीं मिला. ऐसा करने की मंशा, देर करा कर जांच को समाप्त करने की थी.

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तत्कालीन उपायुक्त ने नहीं की कार्रवाई

चक्रधरपुर के कार्यपालक अभियंता द्वारा की गयी जांच रिपोर्ट (3185/09) के आधार पर भी तत्कालीन उपायुक्त सुनील कुमार ने कोई कार्रवाई नहीं की. इस जांच रिपोर्ट में 2.41 करोड़ रुपये की गड़बड़ी का उल्लेख था, लेकिन उपायुक्त ने दोषी लोगों को बचाने के उद्देश्य से रिपोर्ट पर कुंडली मार दी. इसके बाद मुख्यालय स्तर से मई 2014 में डीसी झा (ओएसडी) को शिकायतों की जांच का आदेश दिया गया, लेकिन उन्होंने भी अपनी रिपोर्ट देने में तीन महीने का वक्त लगाया. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में मनरेगा में हुई अनियमितता के लिए तत्कालीन डीसी, डीडीसी, डीआरडीए के निदेशक, कार्यपालक अभियंता और सहायक अभियंता (एनआरइपी) को शामिल बताया, लेकिन इस जांच रिपोर्ट को मंत्री से छिपाया गया. बार-बार रिमाइंड करने के बाद यह फाइल मंत्री को भेजी.

सचिव ने भी अपने स्तर से लिया निर्णय, मंत्री से नहीं ली सहमति

सचिव ने इस अनियमितता के सिलसिले में अपने ही स्तर से निर्णय किया. सचिव ने अपने फैसले पर मंत्री की सहमति भी नहीं ली. मामले की गंभीरता के देखते हुए मंत्री ने जांच रिपोर्ट में दोषी करार दिये गये अफसरों को डीसी झा की जांच रिपोर्ट देने और उनसे स्पष्टीकरण मांगने का निर्देश दिया. दोषी अफसरों द्वारा एक सप्ताह में जवाब नहीं या जवाब संतोषप्रद नहीं होने पर कार्रवाई करने का निर्देश दिया. विभागीय मंत्री ने दोषी अफसरों को निलंबित करने और प्राथमिकी दर्ज करने की अनुशंसा की. साथ ही जांच रिपोर्ट की एक प्रति निगरानी को जांच के लिए देने की अनुशंसा की.

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