24.7 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

झारखंड में दलित राजनीति करने वाली पार्टियां सशक्त नहीं, 24 साल में दिया है एक विधायक

झारखंड में 2004 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने सभी सीटों से चुनाव लड़ा था. इस पार्टी को 2.34 फीसदी मत ही मिल पाया था. पिछले लोकसभा चुनाव में भी बसपा ने सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे.

रांची: रिपब्लिकन पार्टी के साथ-साथ बहुजन समाज पार्टी की राजनीति भी दलित केंद्रित है. उत्तर प्रदेश में जनाधार रखनेवाली बसपा या महाराष्ट्र में संघर्ष कर रही रिपब्लिकन पार्टी का झारखंड की राजनीति में जनाधार नहीं है. 23 साल के झारखंड की राजनीति में केवल एक बार ही बसपा का विधायक बन पाया है. हुसैनाबाद विधानसभा क्षेत्र से कुशवाहा शिवपूजन मेहता एक बार विधायक चुने गये थे. इसके बाद बसपा या आरपीआइ का कोई भी विधायक या सांसद नहीं बना है. पूरे देश के साथ-साथ झारखंड के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल भी अनुसूचित जाति की राजनीति करते हैं. उनके हक की आवाज उठाते रहते हैं. 2004 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने सभी सीटों से चुनाव लड़ा था. इस पार्टी को 2.34 फीसदी मत ही मिल पाया था. पिछले लोकसभा चुनाव में भी बसपा ने सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे. अपनी उपस्थिति दर्ज करायी थी. हालांकि एक भी प्रत्याशी नहीं जीत पाये थे.

आजादी के बाद आंबेडकर सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिविधियों के केंद्र बिंदु थे

बाबा साहेब डॉ भीम राव आंबेडकर आजादी के बाद भारत की सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिविधियों के केंद्र बिंदु थे. उन्होंने समाज के विशेष वर्ग के उत्थान को लेकर जीवनभर काम किया. समाज को आगे ले जाने के लिए कई प्रयास किये. एक सामाजिक संगठन को राजनीतिक रूप देने की कोशिश की. बाबा साहेब ने सबसे पहले 15 अगस्त 1936 को इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी (आइएलपी) की स्थापना की थी. इसने भारत में जाति और पूंजीवादी का विरोध किया. भारतीय श्रमिक वर्ग का समर्थन किया और भारत में जाति को खत्म करने की मांग की. अंबेडकर का विचार था कि जाति केवल ‘श्रम का विभाजन’ नहीं है, बल्कि श्रेणीबद्ध असमानता पर आधारित ‘श्रमिकों का विभाजन’ है. 1937 के प्रांतीय चुनावों में आइएलपी ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इसमें पार्टी 14 सीटों पर जीती थी. इसमें 11 सीटें शामिल थीं, जो पारंपरिक रूप से उत्पीड़ित समुदायों के लिए आरक्षित थी.

Also Read: Ambedkar Birth Anniversary: स्टार्टअप से रामचंद्र राउत खुद बने उद्यमी, बेटा है फैशन डिजाइनर

1942 में एससीएफ की स्थापना की थी

बाबा साहेब ने 1942 में शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन (एससीएफ) की स्थापना की. सम्मेलन में अखिल भारतीय एससीएफ की कार्यकारिणी का चुनाव किया गया. मद्रास के एन शिवराज को अध्यक्ष और मुंबई के पीएन राजभोज को महासचिव चुना गया. यह गैर राजनीतिक संगठन था. 30 सितंबर 1956 को बीआर आंबेडकर ने अनुसूचित जाति महासंघ को बर्खास्त करके रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया की स्थापना की घोषणा की थी. लेकिन पार्टी गठन से पहले ही छह दिसंबर 1956 को उनकी मृत्यु हो गयी थी.

बाबा साहेब ने हक के लिए लड़ना सिखाया

बाबा साहेब ने हम लोगों को अपने हक लिए लड़ना सिखाया. उनके दर्शन नहीं होते, तो एक वर्ग आज भी दलित और वंचित ही रहता. बाबा साहेब के बताये रास्ते पर चलकर ही हम लोग कर्मियों के हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं. आज हम लोगों को कई तरह के संवैधानिक अधिकार मिले हैं. नौकरी में आरक्षण हो या अन्य सुविधाएं, सब उनके कारण ही हुए हैं. आज हम लोग उनके बताये रास्ते पर चल रहे हैं. लोगों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चल रहे हैं. यह स्थिति उनके आवाज उठाने से पहले नहीं थी. उनके कारण हम लोगों को जो अधिकार मिला, इससे देश भी आगे बढ़ रहा है. समाज बदल रहा है.
सुरेश कुमार रवि, उपाध्यक्ष, सिस्टा, सीएमपीडीआइ

बाबा साहेब कल भी प्रासंगिक थे, आगे भी रहेंगे : अमर बाउरी

नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी ने कहा कि डॉ बाबा साहेब आंबेडकर को पूरी दुनिया जानती है. उनका पूरा जीवन संघर्षों से भरा रहा. इसके बावजूद जब देश का संविधान लिखने का मौका मिला, तो उन्होंने किसी भी कटु अनुभव को संविधान निर्माण में शामिल नहीं होने दिया. संविधान में इनके कटु अनुभव की कही भी छाया नहीं दिखती है. बाबा साहेब ने एक ऐसे संविधान की रचना की, जिससे भारत आज विश्व में सबसे बड़े लोकतंत्र रूप में स्थापित हुआ है. उन्होंने सभी को समान अवसर दिलाने की बुनियाद रखी. अगर संविधान निर्माता संसद में जाते, तो उनके अनुभव व ज्ञान से संसद की कार्यवाही और मजबूत होती. बाबा साहेब कल भी प्रासंगिक थे. आज भी हैं और आगे भी रहेंगे.

आंबेडकर दर्शन ने दलितों को राजनीति की मुख्यधारा से जोड़ा

बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर आखिरी सांस तक जातीय भेदभाव पर चोट करते रहे और दलितों के हक की लड़ाई लड़ते रहे. यही कारण है कि वे धीरे-धीरे एक राजनीतिक प्रतीक बन गये. दलित समाज संख्या में अधिक है. इसलिए सभी राजनीतिक पार्टियां दलितों को अपनी तरफ आकर्षित करने में लगी हैं. इसे समझने के लिए बाबा साहेब के नाम पर शुरू हुई उस सियासत को समझना जरूरी है. आंबेडकर के बाद दलितों के हक की लड़ाई ज्यादा जागरूक होकर लड़ी जा रही है. पिछले तीन दशकों से बाबा साहेब के जरिये देश की ज्यादातर राजनीतिक पार्टियों ने अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने की कोशिश की है.

रेणु किशोर, दलित सामाजिक कार्यकर्ता

सामाजिक कार्यों को लेकर प्रतिबद्ध थे बाबा साहेब: डॉ खरे

रांची विवि के पॉलिटिकल साइंस विभाग के सेवानिवृत शिक्षक डॉ जेपी खरे कहते हैं कि आंबेडकर का राजनीतिक दर्शन सामाजिक कार्यों के प्रति प्रतिबद्ध था. वे भारत के परंपरागत समाज में अमूल-चूल परिवर्तन चाहते थे. पहले जो वर्ण व्यवस्था थी, वह श्रम विभाजन पर आधारित थी. बाद में उसे जन्म आधारित बना दिया गया. हालांकि कोई भी व्यवस्था जन्म आधारित बन गयी हो, तो उसमें बदलाव करना मुश्किल है. वहीं कानून के प्रति डॉ भीमराम आंबेडकर की गहरी  आस्था थी. इसलिए उन्होंने इस सामाजिक व्यवस्था में बदलाव करने के बारे में सोचा. उन्हें लगता था कि कानून की मदद से सामाजिक व्यवस्था में बदलाव किया जा सकता है.

बाबा साहेब के विचारों से हर वर्ग में समानता की मिलती है सीख

डॉ आंबेडकर के संघर्षपूर्ण जीवन से युवाओं को प्रेरणा लेनी चाहिए. उनका संदेश लक्ष्य प्राप्ति और उसके बाद भी निरंतर प्रयासरत रहने की सीख देता है.  
 काव्या श्रुति

बाबा साहेब हमेशा से पिछड़े तबकों को न्याय दिलाने के पक्षधर रहे थे. हम सबको उनके सपनों को हर हाल में पूरा करने का प्रयास करना चाहिए.

दिव्यांशु

आज के प्रतिनिधियों को बाबा साहेब से सीख लेने की जरूरत है. आंबेडकर ने समाज के निचले तबके के व्यक्ति को ध्यान में रखकर नीतियां बनायी.

हिमांशु

संविधान निर्माता डॉ भीमराव आंबेडकर के विचार आज भी प्रासंगिक हैं. नीति निर्माताओं को उनका अनुसरण करना चाहिए. इससे समाज को लाभ मिलेगा.

शिवम शाहदेव

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें