2300 साल पुरानी जाति की बहादुरी को सरकार ने अब जाकर पहचाना
undefinedundefined... आरके नीरद झारखंड की 2300 साल पुरानी आदिम जनजाति पहाड़िया की बहादुरी और दिलेरी को सरकार ने अब जाकर पहचाना है. इनके लिएस्पेशल पुलिस बटालियन बना है.आजाद हिंदुस्तान में पहली बार इस जाति के शौर्य को सम्मान मिला है. झारखंड की इस बटालियन को विशिष्ट इंडिया रिजर्व बटालियन नाम दिया गया है. इसमेंमाल पहाड़िया […]
undefinedundefined
आरके नीरद
झारखंड की 2300 साल पुरानी आदिम जनजाति पहाड़िया की बहादुरी और दिलेरी को सरकार ने अब जाकर पहचाना है. इनके लिएस्पेशल पुलिस बटालियन बना है.आजाद हिंदुस्तान में पहली बार इस जाति के शौर्य को सम्मान मिला है. झारखंड की इस बटालियन को विशिष्ट इंडिया रिजर्व बटालियन नाम दिया गया है. इसमेंमाल पहाड़िया और सौरिया पहाड़िया के अलावाबिरहोर, परहिया, साबर, हिल खड़िया, कोरबा, असूर और बिरजिया आदिम जनजाति के युवाओं को बहाल होने का मौका मिला है, मगर इन जातियों की हालत इतनी खराब है कि झारखंड कर्मचारी चयन आयोग को बटालियन के सभी पद भरने के लिए इनके समाज के एक हजार भी युवा नहीं मिले, जबकि महज सातवीं पास को बहाल करने का अभियान चलाया गया.
पहाड़िया जाति का इतिहास ईसा से 300 साल पुराना है.पहाड़िया और झारखंड की दूसरी आदिम जनजातियांलड़ाकू स्वभाव की और बहादुर रही हैं. इनका इतिहास शौर्य गाथाओं से भरा हुआ है.मुगलकाल के बाद पहली बार इन जातियों के शौर्य को यह बड़ा सम्मान मिला है.यह दीगर है कि करीब दाे सौ साल से ये जातियां अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं और इनके बहादुर स्वभाव का लाभ झारखंड में सक्रिय नक्सली संगठन कई इलाकों में उठाते रहे हैं. इन जातियों का सैन्य बटालियन बने, झारखंड सरकार ने एक दशक पहले ही इस पर विचार किया था. अर्जुन मुंडा ने मुख्यमंत्री रहते हुए भारत सरकार को इस आशय का प्रस्ताव भेजा था. भारत सरकार ने सहमति भी दे दी थी.
भारत सरकार ने 2011 में देश में 10 विशिष्ट इंडिया रिजर्व बटालियन यानी एसआइआरबी के गठन के प्रस्ताव को मंजूरी दी. इनमें से दो बटालियन झारखंड के लिए हैं. इस मंजूरी के करीब पांच साल बाद झारखंड की आदिम जनजातियों को विशिष्ट बटालियन में शामिल होने का अवसर मिला है.
दरअसल, झारखंड की आदिम जनजातियां विकास की मुख्यधारा में शामिल नहीं हो सकीं हैं. झारखंड अगल राज्य बनने के बाद भी इनकी दशा सुधरने की बजाय बिगड़ती गयी और आबादी बढ़ने की बजाय घटती गयी. कई आदिम जनजातियां तो विलुप्ति के कगार पर हैं. वह भी तब, जबकि केंद्र और राज्य सरकारें इनके संरक्षण, सुरक्षा और विकास पर फोकस करती रही हैं. इनकी बस्तियों में गरीबी, बेकारी, फटेहाली अौर उपेक्षा पसरी हुई है.
2001 की जनगणना के मुताबिक झारखंड में आदिम जनजातियों की कुल संख्या 2,06,000 थी, जो 2011 में घट कर 1,72,425 हो गयी. माल पहाड़िया,सौरिया पहाड़िया,साबर,असुर, बिरहोर, बिरिजिया, कोरबा और खड़िया, इन सभी आदिम जनजातियों की संख्या घटी है. सौरिया पहाड़िया और सबर तो विलुप्त होने की स्थिति में हैं. जनगणना के आकड़े बताते हैं कि झारखंड बनने के बाद के एक दशक में 14,899 सौरिया पहाड़िया और 261 सबर गायब हो गये. सौरिया पहाड़िया की आबादी में 24.38 फीसदी औरसाबरकी आबादी में 2.69 फीसदी की कमी आयी. सौरिया पहाड़िया की आबादी में ह्रास की यह दर सौ साल पहले, 1911 की जनगणना से भी ज्यादा है. तब ह्रास की यह दर 11.37 फीसदी थी.
दूसरी ओर झारखंड बनने के बाद के एक दशक में केंद्र और राज्य सरकारों ने आदिम जनजातियों की सुरक्षा, उत्थान और उनके संरक्षण पर करीब 470 करोड़ रुपये खर्च किये.
तीसरी बात कि इस एक दशक में झारखंड में सक्रिय नक्सलियों ने सुदूर इलाकों में अपने संगठनात्मक विस्तार के लिए आदिम जनजाति के युवाओं का इस्तेमाल किया. हालांकि आदिम जनजाति के सभी युवा नक्सली संगठन के प्रभाव में हैं, ऐसा नहीं है, मगर यह सच है कि नक्सलियों का शॉफ्ट टारगेट ये रहे हैं और इन्हें बरगलाने में उन्हें कामयाबी मिली. इसकी एक वजह इनका मिलिटेंट स्वभाव भी रहा है.
इतिहासकार डॉ डीएन वर्मा कहते हैं, पहाड़िया आदिम जनजाति की बात की जाये, तो इनका इतिहास लड़ाकों का रहा है. तिलका मांझी इसी समाज के थे, जिन्होंने अंग्रजों के खिलाफ विद्रोह किया था और 1784 में भागलपुर के तत्कालीन कलेक्टर आगस्टस क्लीवलैंड की हत्या की थी. ब्रिटिश हुकूमत भी पहाड़िया की सैन्य क्षमता का कायल था. मुगल शासकों ने पहाड़िया दस्ते को अपनी सेना में शामिल किया था, लेकिन बाद के समय में ये अस्तित्व बचाने के संकट से घिर गये.
दुमका जिला मुख्यालय से महज पांच किलोमीटर दूरी पर बसा है तेलियाचक गांव. इस गांव के दुलाल देहरी कहते हैं, ‘गांव में कोई अपने घरों में ताला नहीं लगाता, क्योंकि उनके पास ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे चोर ले जा सके. इस गांव में 16 परिवार हैं, जिनमें से 12 परिवार रोजी-रोटी के लिए पश्चिम बंगाल पलायन कर चुके हैं. बाकी चार परिवारों के केवल बच्चे और महिलाएं ही गांव में हैं. गांव की हालत ऐसी है कि यहां आने के लिए न तो सड़क है, न ही पीने का पानी. बिजली की बात कोई सोचता भी नहीं. सरकारी लाभ के नाम पर केवल राशन मिलता है.’
आज भी संताल परगना के जंगल-पहाड़ इनके वास-स्थान, झारन-पहाड़ी नाले पानी के स्रोत, कंद-मूल भूख मिटाने के साधन तथा कुपोषण, अशिक्षा, भूख और बीमारी मूल रूप से इनकी पहचान है. यही हाल दूसरी आदिम जनजातियों की है. खड़िया आदिम जनजाति का एक बड़ा तबका अब भी छोटानागपुर इलाके में पहाड़ों पर रहता है. इनकी आबादी तेजी से घटी और अब इनकी आधी जनसंख्या ही बची है.
बहरहाल, झारखंड में एक विशिष्ट इंडिया रिजर्व बटालियन का मुख्यालय दुमका और दूसरे का खूंटी है. फिलवक्त दोनों जिलों के एसपी इसके समादेष्टा बनाये गये हैं. एक बटालियन में सात कंपनियां होंगी. झारखंड कर्मचारी आयाेग ने 1042 पदों के लिए आवेदन मांगा और केवल 1514 लोगों ने अावेदन किया. उनमें से 1406 परीक्षा में शामिल हुए और अंतिम रूप से केवल 956 युवक-युवती ही चुने जा सके. इन सब की अब ट्रेनिंग शुरू हो रही है, मगर यह सवाल अब भी पूरी तल्खी के साथ खड़ा है कि झारखंड बनने के 16 साल बाद भी आदिम जनजातीय समाज में सातवीं पास और शारीरिक रूप से योग्य एक हजार भी युवा नहीं हैं, जो सिपाही बन सकें.
