झारखंड : लोक लेखा समिति ने भी पकड़ा था दुमका ट्रेजरी से निकासी का मामला

रांची : जगदीश शर्मा की अध्यक्षता में बनी लोक लेखा समिति ने दुमका ट्रेजरी की जांच की थी. इसमें ट्रेजरी से जालसाजी कर निकासी का मामला पाया गया था. सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह ने अंजनी कुमार सिंह सहित अन्य के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 319 के तहत नोटिस जारी करने से संबंधित आदेश […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 8, 2018 6:32 AM
रांची : जगदीश शर्मा की अध्यक्षता में बनी लोक लेखा समिति ने दुमका ट्रेजरी की जांच की थी. इसमें ट्रेजरी से जालसाजी कर निकासी का मामला पाया गया था. सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह ने अंजनी कुमार सिंह सहित अन्य के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 319 के तहत नोटिस जारी करने से संबंधित आदेश में इस बात का उल्लेख किया है.
विशेष न्यायाधीश ने अपने आदेश में लिखा है कि देवघर में छह फर्जी आवंटन पत्रों के सहारे 50 लाख रुपये की निकासी का मामला पकड़ में आने के बाद देवघर डीसी ने दुमका डीसी को एक पत्र लिखा था.
दुमका के तत्कालीन डीसी अंजनी कुमार ने इसके आलोक में कोई कार्रवाई नहीं की. इससे दुमका ट्रेजरी से निकासी हुई. डिप्टी कलक्टर ब्रज किशोर पाठक की जांच में पाया गया कि दिसंबर 1995 से जनवरी 1996 तक क्षेत्रीय पशुपालन निदेशक ने 3.76 करोड़ रुपये की निकासी की. अंजनी कुमार सिंह 1992-93 में वित्त विभाग में विशेष सचिव वित्त के रूप में पदस्थापित थे. बाद में वह दुमका डीसी के रूप में पदस्थापित हुए. उन्होंने 17 अगस्त 1993 को एक आदेश पारित किया.
इसमें एक लाख से अधिक के बिल को उनके पास भेजे जाने का निर्देश दिया गया. वीएस दुबे ने अगस्त 1995 में वित्त सचिव का पदभार ग्रहण किया. दिसंबर 1995 से जनवरी 1996 के बीच दुमका ट्रेजरी से निकासी हुई.
इससे यह पता चलता है कि इन अधिकारियों ने अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी नहीं निभायी. मौखिक बयान और दस्तावेज देखने से फर्जी निकासी में प्रथमदृष्टया इन दोनों अधिकारियों पर आपराधिक साजिश में शामिल होने का आरोप बनता है. इसलिए सीबीआइ को यह निर्देश दिया जाता है कि वह इनके खिलाफ अभियोजन स्वीकृति के लिए आवश्यक कदम उठाये.
सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह ने नोटिस जारी करने संबंधी आदेश में किया है उल्लेख
डीपी ओझा व सीबीआइ अधिकारी एके झा को आपराधिक षडयंत्र में शामिल बताया आदेश में डीपी ओझा और सीबीआइ अधिकारी के मामले का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि वह निगरानी में काफी समय तक पदस्थापित रहे हैं.
बीबी द्विवेदी ने अपनी गवाही में यह कहा है कि स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों के आधार पर उसने डीडी विजिलेंस को पशुपालन विभाग में गड़बड़ी से संबंधित पत्र लिखा था. इसके आलोक में निगरानी में एक फाइल खोली गयी थी.
सीबीआइ अधिकारी एके झा ने इसे जब्त किया था. लेकिन सीबीआइ अधिकारी ने इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की. सीबीआइ अधिकारी ने डीपी ओझा को संरक्षण दिया. कोर्ट ने यह पाया कि डीपी ओझा और सीबीआइ अधिकारी एके झा आपराधिक षड़यंत्र में शामिल हैं.
इनके खिलाफ प्रथमदृष्टया आइपीसी की धारा 120बी, 420, 467, 468, 471 और पीसी एक्ट की धारा 13 (2) सहपठित धारा 13(1)(सी) के तहत मामला बनता है.
इसलिए डीजीपी सीबीआइ को यह निर्देश दिया जाता है कि वह एक माह के अंदर एके झा के खिलाफ सक्षम पदाधिकारी से अभियोजन स्वीकृति कर अदालत में पेश करें. डीपी ओझा सेवानिवृत हो चुके हैं इसलिए उनके खिलाफ अभियोजन स्वीकृति की जरूरत नहीं है.
फर्जी आपूर्ति के सहारे दीपेश चांडक ने करोड़ों रुपये हासिल किये
आदेश में सप्लायर दीपेश चांडक के मामले का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि उसने अपनी गवाही में यह कहा है कि उसने पशुपालन विभाग में फर्जी आपूर्ति के सहारे करोड़ों रुपये हासिल किये. इसके बावजूद सीबीआइ ने इस मामले में चांडक को अभियुक्त नहीं बनाया. सीबीआइ ने उसे संरक्षण दिया.
अदालत को इस बात पर आश्चर्य है कि सीबीआइ ने उन लोगों को कैसे संरक्षण दिया, जो जान-बूझ कर पशुपालन घोटाले में शामिल हुए. इसलिए दीपेश चांडक को इस मामले में अदालत में हाजिर होकर ट्रायल फेस करने का आदेश दिया जाता है.
आदेश के बावजूद फूल झा का दस्तावेज जब्त नहीं करना आपराधिक षडयंत्र
लोक लेखा समिति का उल्लेख करते हुए आदेश में कहा गया है कि फूल झा को समिति में सचिव के रूप में पदस्थापित किया गया था. फूल झा ने अपने बयान में कहा है कि लोक लेखा समिति की उप समिति ने जहानाबाद, हजारीबाग, दुमका और हजारीबाग में जांच की.
इसमें बजट से अधिक राशि खर्च करने का मामला पाया गया. समिति ने सचिव फूल झा को पशुपालन विभाग से दस्तावेज जब्त कर उसे पटना समिति के पास भेजने का निर्देश दिया.
अप्रैल मई 1994 में जगदीश शर्मा की अध्यक्षतावाली समिति ने दुमका ट्रेजरी की जांच की. इसमें फर्जी निकासी का मामला मिला. समिति ने सचिव को ट्रेजरी से आवश्यक दस्तावेज जब्त करने का आदेश दिया. दस्तावेज से यह पता चलता है कि फूल झा ने ट्रेजरी से दस्तावेज जब्त नहीं किये.
उसने दस्तावेज पाने का फर्जी प्राप्ति रसीद बना कर पशुुपालन विभाग के क्षेत्रीय निदेशक को दे दिया. इसलिए समिति के सचिव फूल झा के खिलाफ प्रथमदृष्टया आपराधिक षडयंत्र का मामला बनता है.