शिबू सोरेन और 4 का संयोग, जन्म से मृत्यु तक बना रहा 4 का साथ

Shibu Soren And No 4 : शिबू सोरेन ज्योतिष वगैरह को नहीं मानते थे. अंक ज्योतिष में भी उनका कोई विश्वास नहीं था. उनके मरने के बाद पता चला कि उनके जीवन में ‘4’ का कोई न कोई संयोग जरूर था. उनके जन्म से लेकर मृत्यु तक 4 ने साथ दिया. 1944 में उनका जन्म हुआ था. मृत्यु 4 अगस्त को हुई. झामुमो का गठन 4 फरवरी को हुआ.

By Mithilesh Jha | August 7, 2025 4:04 PM

Shibu Soren And No 4| रजरप्पा (रामगढ़), सुरेंद्र कुमार/शंकर पोद्दार : झारखंड आंदोलन के पुरोधा, आदिवासी अस्मिता के प्रतीक और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक दिशोम गुरु शिबू सोरेन के जीवन में एक अंक उनके साथ हमेशा जुड़ा रहा. वह अंक है ‘4’. उनके जीवन की अहम घटनाक्रमों पर गौर करेंगे, तो पायेंगे कि उसमें 4 जरूर शामिल है.

शिबू सोरेन का जन्म और ‘4’

शिबू सोरेन का जन्म रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में वर्ष 1944 में हुआ था. इस वर्ष में 2 बार ‘4’ है. उनका असली नाम शिवलाल सोरेन था. इसमें 4 अक्षर (शि-व-ला-ल) हैं. बाद में जब वे सामाजिक आंदोलनों में सक्रिय हुए, तो यही नाम संक्षिप्त होकर ‘शिबू’ सोरेन बन गया. संघर्ष, संगठन और सेवा के 3 स्तंभों के साथ एक अदृश्य चौथा स्तंभ था ‘4’.

झामुमो की स्थापना : 4 फरवरी 1973

गुरुजी के जीवन का अगला सबसे बड़ा मोड़ आया 4 फरवरी 1973 को. इस दिन उन्होंने बिनोद बिहारी महतो और एके रॉय के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) का गठन किया. हालांकि, आंदोलन की शुरुआत 1972 में हुई थी और उस समय झामुमो के प्रारंभिक गठन की दिशा तय की गयी, लेकिन पार्टी का औपचारिक गठन तथा निर्वाचन आयोग से मान्यता 1973 में मिली. इसी संगठन ने अलग झारखंड राज्य के लिए आंदोलन की शुरुआत की. आदिवासी हितों की आवाज राष्ट्रीय स्तर पर बुलंद की. इसकी तारीख थी 4 फरवरी.

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4 दशक तक झारखंड की राजनीति में रहा दबदबा

झारखंड आंदोलन के नायक और झामुमो के सह-संस्थापक शिबू सोरेन का राजनीतिक सफर सिर्फ पद और पहचान तक सीमित नहीं था. यह एक जनआंदोलन, सामाजिक चेतना और आदिवासी अस्मिता की लड़ाई का प्रतीक बन गया. गुरु जी राजनीति में 4 दशक तक संघर्ष करते रहे. संसद हो या बिहार-झारखंड विधानसभा. हर जगह उनकी आवाज ने झारखंड के हक की बात मजबूती से रखी. पिछले 4 दशकों तक उन्होंने झारखंड की राजनीति पर जो असर डाला, वह अद्वितीय और ऐतिहासिक है.

4 अगस्त 2025 को अलविदा कह गये गुरुजी

गुरुजी के जीवन में 4 नंबर का संयोग उनके निधन तक बना रहा. 4 अगस्त 2025 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा. यह भी एक संयोग ही है कि दिशोम गुरु शिबू सोरेन की 4 संतानें हुईं. एक पुत्री और 3 पुत्र. सबसे बड़े पुत्र दुर्गा सोरेन का वर्ष 2009 में निधन हो गया.

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गुरुजी का अंकों पर नहीं था विश्वास

दिशोम गुरु के करीबी लोग बताते हैं कि उन्हें किस्मत या ज्योतिष पर कभी भरोसा नहीं था. अंक ज्योतिष में कभी उनकी रुचि नहीं रही. वे जमीन से जुड़े नेता थे, जो सीधे जनता से संवाद रखते थे और संघर्ष को ही अपना सबसे बड़ा धर्म मानते थे. बावजूद इसके अंकों पर गौर करेंगे, तो पायेंगे कि उनके जीवन के हर महत्वपूर्ण क्षण में ‘4’ का अंक साये की तरह उनके साथ रहा.

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