भगवान श्रीकृष्ण की महारास लीला व रुक्मिणी विवाह की सुनायी कथा
कथावाचक भागवत किशोर गोस्वामी महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण की सर्वोत्कृष्ट लीला महारास लीला व रुक्मिणी विवाह प्रसंग का मधुर वर्णन किया.
नाला. प्रखंड क्षेत्र के बंदरडीहा पंचायत अंतर्गत सुन्दरपुर मनिहारी गांव के सरस्वती मंदिर प्रांगण में सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा सह प्रवचन जारी रहा. कथावाचक भागवत किशोर गोस्वामी महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण की सर्वोत्कृष्ट लीला महारास लीला व रुक्मिणी विवाह प्रसंग का मधुर वर्णन किया. कहा कि एक बार ब्रज गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए कात्यायनी व्रत किया था. उनके इस व्रत से संतुष्ट होकर व्रज गोपियों को मनोकामना पूर्ण होने का वचन दिया था. अपने वचन को पूरा करने के लिए भगवान ने कार्तिक मास की शरद पूर्णिमा को ब्रज गोपियों की मनोकामना पूर्ण करने के लिए बंशी बजा कर महारास के लिए बुलाया. बंशी की ध्वनि सुनकर जो जिस स्थिति में थी, उसी स्थिति में सांसारिक मोह-माया त्याग कर भगवान की शरण में गहन वन में प्रस्थान किया. महाराज ने महारास को आत्मा से परमात्मा का मिलन बताया. इस महारास में कामना वासना की कोई जगह नहीं थी. इसके बाद भगवान ने रास आरंभ किया. वहीं रुक्मिणी विवाह का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस प्रकार सब राजाओं को जीत लिया और विदर्भ राजकुमारी रुक्मिणी को द्वारका में लाकर उनका विधिपूर्वक पाणिग्रहण किया. उस समय द्वारकापुरी के घर-घर बड़ा ही उत्सव मनाया जाने लगा. जहां-तहां रुक्मिणी हरण की गाथा गायी जाने लगी. उसे सुनकर राजा और राज कन्याएं अत्यन्त विस्मित हो गयी. महाराज भगवती लक्ष्मीजी को रुक्मिणी के रूप में साक्षात लक्ष्मीपति भगवान श्रीकृष्ण के साथ देखकर द्वारकावासी परम आनंदित हो उठे. कथा के साथ-साथ भजन संगीत भी प्रस्तुत किये गये. श्रोता भावविभोर होकर कथा स्थल पर भक्ति से झूम उठे. इस सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के सफल संचालन के लिए आयोजक मंडली के सदस्यों का काफी सराहनीय योगदान रहा. कथा प्रारंभ से पूर्व भगवान की आरती उतारी गयी. कथा के पश्चात श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद वितरण किया गया.
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