सत्ता नहीं, व्यवस्था परिवर्तन के पक्षधर थे बिनोद बिहारी महतो
Binod Bihari Mahto Death Anniversary: चंद्रशेखर महतो ने कहा कि बाबूजी के निधन के बाद झारखंड की राजनीति में बिखराव आया. विशेष कर कोयलांचल में. फिर अलग राज्य के बाद उनके नाम पर बहुत लोग राजनीति कर रहे हैं, उन लोगों में आपसी प्रतिस्पर्धा है कि कौन अधिक बाबूजी के विचारों के निकट है. सच यह है कि कोई भी नेता बिनोद बाबू के विचारों के आसपास भी नहीं हैं.
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Binod Bihari Mahto Death Anniversary| धनबाद, नारायण चंद्र मंडल : झारखंड आंदोलन के भीष्म पितामह झामुमो संस्थापक बिनोद बिहारी महतो की आज 34वीं पुण्यतिथि है. कोयलांचल सहित पूरे झारखंड में लोग आज उन्हें याद कर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. पढ़ो और लड़ो के प्रणेता बिनोद बाबू तीन बार विधायक और एक बार सांसद बने. एक कुशल अधिवक्ता के रूप में पहचान बनायी. बिनोद बाबू के जीवन से जुड़े कुछ तथ्यों को प्रभात खबर के साथ साझा किया उनके पुत्र वरिष्ठ अधिवक्ता चंद्रशेखर महतो ने. उनके अनुसार बिनोद बाबू सत्ता नहीं, व्यवस्था परिवर्तन के पक्षधर थे.
बिनोद बाबू की प्रासंगिकता अभी और बढ़ी है
चंद्रशेखर महतो ने प्रभात खबर (prabhatkhabar,com) से बातचीत में संगठन बनाने के दिनों के बाबूजी (बिनोद बाबू) और आज के बाबूजी की प्रासंगिकता पर भी बातचीत की. कहा कि बाबूजी की प्रासंगकिता अभी और बढ़ी है. आने वाले दिनों में और बढ़ेगी. हमलोग देखते थे कि जो विरोधी शक्तियां झारखंड अलग राज्य नहीं चाहती थीं, और बिनोद बाबू उनकी आंखों की किरकिरी लगते थे, वैसी ताकतें भी आज उन पर श्रद्धा रखती हैं. लगता है कि बाबूजी झारखंड के आंबेडकर थे.
उपेक्षित लोगों को संगठित करना चाहते थे बिनोद बिहारी महतो
कहा कि बाबूजी चाहते थे कि छोटानागपुर और संताल परगना का न केवल राजनीतिक विकास हो, बल्कि शैक्षणिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में भी इसकी एक अलग पहचान बने. जिस माफिया शक्ति और शोषकों की वजह से यहां के लोग शोषित-पीड़ित हो रहे थे, वैसी शक्तियों को परास्त करने के लिए उपेक्षित लोग संगठित हों. आज जब बाबूजी नहीं रहे, तब उनकी अहमियत को हर दल और हर समाज के लोग समझ पा रहे हैं.
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Binod Bihari Mahto Death Anniversary: बिनोद बाबू के निधन के बाद झारखंड की राजनीति में आया बिखराव
चंद्रशेखर महतो ने कहा कि बाबूजी के निधन के बाद झारखंड की राजनीति में बिखराव आया. विशेष कर कोयलांचल में. फिर अलग राज्य के बाद उनके नाम पर बहुत लोग राजनीति कर रहे हैं, उन लोगों में आपसी प्रतिस्पर्धा है कि कौन अधिक बाबूजी के विचारों के निकट है. सच यह है कि कोई भी नेता बिनोद बाबू के विचारों के आसपास भी नहीं हैं. बिनोद बाबू ने कभी सत्ता परिवर्तन की बात नहीं की, व्यवस्था परिवर्तन पर विश्वास किया. सभी जातियों पर समान भाव रखा. वह कहते थे कि एक जाति से न राजनीति हो सकती है, न ही समाज का विकास हो सकता है. उस तरह की विचारधारा से समाज में वैमनस्यता का भाव बढ़ता है.
राजनीति में परिवारवाद को बढ़ावा नहीं दिया
चंद्रशेखर कहते हैं कि जब हमलोग सब भाई बहन पढ़-लिख रहे थे, तो हीरापुर के कार्यालय और घर में रोज दर्जनों लोगों का आना-जाना रहता था. मोबाइल का जमाना नहीं था. बाबूजी ने घर के सभी सदस्यों को बोल दिया था कि कोई भी व्यक्ति हमसे मिलने रात हो या दिन, कभी आये, तो अच्छे से बात करना. हम नहीं रहें, तो नाम पता नोट कर रखना. बड़ी उम्मीद से लोग दूर से शहर आते हैं.
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बिनोद बाबू कहते थे- पढ़ो, खूब पढ़ो…
इस बीच, बाबूजी ने यह कभी नहीं कहा कि तुमलोग समस्या का समाधान कर देना या राजनीतिक पहल करना. वह हम सभी भाई-बहनों से कहते- पढ़ो, खूब पढ़ो. पढ़ने से ही सारी चीजें समझोगे. वह कहते थे तर्कशील बनो, अंधविश्वासी नहीं. मेहनत पर विश्वास करना. उनके भय से हमलोग ध्यान से पढ़ते थे. बाबूजी नहीं चाहते थे कि उन पर परिवारवाद का आरोप लगे. हालांकि, बाबूजी के निधन के बाद बड़े भैया (स्व राजकिशोर महतो) सांसद-विधायक बने. अब क्या हो रहा है, यह बताने की जरूरत नहीं है.
सिद्धांतों से कभी नहीं किया समझौता
बाबूजी वाम विचारों से ओत-प्रोत थे. इसीलिए आजीवन एके राय से दोस्ती रही. मन, वचन और कर्म में एकरूपता रहती थी. एक वकील के रूप में पैसा भी कमाया और उन पैसों से गांव-गांव में स्कूल-कॉलेज भी खोले. कोलियरी क्षेत्र में निजी कंपनी के गुंडों से लेकर गांव के जमींदारों से अनवरत संघर्ष किया. कभी भी खुद को सुरक्षा घेरे में नहीं रखा.
बीबीएमकेयू को देख अच्छा लगता है
अलग राज्य बनने के बाद उनके बनाये दल की सरकार राज्य में है, यह देख बहुत खुशी होती है. धनबाद में बीबीएमकेयू का निर्माण कर पूर्ववर्ती सरकार ने उनके नाम को अमर करने का प्रयास किया है. इसे देख हमारे परिवार के लोगों को काफी अच्छा लगता है.
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