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World Turtle Day : खतरे में कछुओं की लाइफ, पटना में टर्टल पर न होता है कोई शोध, न होती है इनकी देखभाल

कछुआ (टर्टल) पृथ्वी पर रहने वाले बेहद खास जीवों में से एक हैं, लेकिन पिछले कुछ दशकों में इनके शिकार में काफी तेजी आयी है. यही वजह है कि इनके संरक्षण और पारिस्थितिकीय संतुलन के महत्व के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 23 मई को विश्व कछुआ दिवस मनाया जाता है. कछुआ दिवस मनाने की शुरुआत साल 2000 से हुई थी. इनकी प्रजातियों को बचाने के लिए अमेरिका में अमेरिकन टॉर्टवायज रेस्क्यु की स्थापना की गयी, जिसका उद्देश्य विश्व भर के कछुओं का संरक्षण है. बिहार व पटना में इसके संरक्षण पर पेश है खास रिपोर्ट.

  • हाइलाइट्स
  • 23 मई को हर साल मनाया जाता है World Turtle Day, ताकि इसके संरक्षण के प्रति लोग जागरूक हों
  • 80 से 250 साल तक जिंदा रह सकता है कछुआ, 33- 50 किग्रा तक होता है इनका वजन
  • 256 साल तक जिंदा रहकर अलडाबरा टोरटॉयज ने बनाया था रिकॉर्ड
  • 29 प्रजातियां पायी जाती हैं भारत में कछुओं की, जिसमें 28 प्रजातियां प्रतिबंधित हैं
  • कछुए को धर्म से जोड़कर एक्वेरियम में रखना गैरकानूनी है. इसके लिए सजा व जुर्माने का प्रावधान है
  • भागलपुर के सुंदरवन में बिहार व झारखंड का एकमात्र कछुआ रेस्क्यू सेंटर बना हुआ है.
  • कछुओं की तस्करी का जाल बिहार, यूपी, बंगाल, असम आदि राज्यों में फैला है.
  • तस्करी कर कछुओं को बांग्लादेश, मलेशिया, चीन और थाईलैंड भेजा जाता है.

जूही स्मिता,पटना.

कछुआ विलुप्ति के कगार पर पहुंच रहा है. इसे बचाने के लिए विश्व कछुआ दिवस पर हर साल सजगता दिखायी जाती है, लेकिन पूरे बिहार और झारखंड में कछुओं के लिए एकमात्र पुर्नवास केंद्र भागलपुर (कछुआ पुनर्वास केंद्र, भागलपुर) में है, जो कछुओं को संरक्षित कर पर्यावरण को सुरक्षित करने का काम कर रहा है. इस केंद्र के वन विभाग के सुंदरवन में बनाया गया है.

खास बात ये कि तकनीकी प्रारूप वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून द्वारा तैयार की गयी है. यहां आपको कई दुर्लभ प्रजाति के कछुओं के साथ ही डॉल्फिन, ऊदबिलाव के साथ ही पक्षी भी देखने को मिल जायेंगे. यह केंद्र कई मायनों में खास है. साफ और ताजे पानी में कछुओं को स्वतंत्र होकर विचरण करने की आजादी है. बता दें कि भारत की अधिकांश कछुओं की प्रजातियां वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम की विभिन्न अनुसूचियों के तहत संरक्षित हैं, जिसके तहत उनके शरीर के अंगों एवं उत्पाद, के शिकार, व्यापार या किसी अन्य प्रकार के उपयोग पर प्रतिबंध है.

रिसर्च एंड मॉनिटरिंग सिस्टम का दिया गया है प्रस्ताव : प्रभात गुप्ता

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक-सह-मुख्य वन्यप्राणी प्रतिपालक प्रभात कुमार गुप्ता ने बताया कि बिहार में टर्टल को लेकर किसी एजेंसी ने कोई भी शोध कार्य करने को लेकर खास रुचि नहीं दिखायी है. बिहार में ढाई हजार किलोमीटर तक नदियों का नेटवर्क है, इसमें कई प्रजाति के कछुएं हो सकते हैं, जिसपर शोध के साथ इन्हें पहचानने की जरूरत है. टर्टल सर्वाइवल एलायंस फाउंडेशन इंडिया ( टीएसएएफआइ) के साथ 2021 में बैठक की गयी थी जिसमें हम इस एजेंसी के साथ मिलकर काम करना चाहते थे. इसके तहत हमने पूरे राज्य के स्टाफ को उनसे प्रशिक्षित करवाया. 250 पदाधिकारी और स्टाफ को कछुओं से जुड़ा प्रशिक्षण दिया गया.

अभी टर्टल सर्वाइवल एलायंस फाउंडेशन इंडिया की ओर से हमें पांच वर्षीय योजना का एक प्रोजेक्ट का प्रपोजल दिया गया है जिसमें उन्होंने यहां एक रिसर्च एंड मॉनिटरिंग सिस्टम लगाने का प्रस्ताव दिया है. हमने यह प्रस्ताव सरकार के विचार के लिए भेजा है. अगर सरकार इसकी अनुमति देती है तो विभाग की ओर से इनके साथ एमओयू साइन होगा.

इसके बाद एक जगह पर रिसर्च एंड मॉनिटरिंग सिस्टम का स्टेशन स्थापित करेंगे और पांच अलग जगहों पर कछुओं के लिए हैचरी स्थापित करेंगे. साथ ही राज्य में मौजूद जितने भी टर्टल हॉट स्पॉट है उन्हें चिन्हित किया जायेगा. अभी तक टीएएफआइ ने सुपौल में 2021 में स्टडी की थी जिसमें यहां कछुओं की चार प्रजातियां पायी गयी थी. अनुमान यह है कि यहां चार से ज्यादा प्रजाति हो सकती है.

इको सिस्टम के लिए करते हैं कार्य

मीठे जल के कछुए सफाई कर्मी होते हैं. वे किसी भी अपने अधिवास क्षेत्र का कचरा को साफ करते हैं. झीलों और नदियों से मरी हुई मछलियों वे खाते हैं. वह कोई नुकसान नहीं पहुंचाते और नदियों के स्वास्थ्य के सुधार में सहायक साबित होते हैं. मांसाहारी कछुए मांस का सेवन करते हैं जबकि शाकाहारी कछुए नदियों एवं झीलों में अलगी को नियंत्रित करते हैं. इसलिए नदी पारिस्थितिकी तंत्र एवं झीलों के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए यह प्राणी बहुत ही आवश्यक है.

इनका होता है अवैध शिकार

कछुआ दो प्रकार की होती है. एक सॉफ्ट शेल्ड टर्टल (मुलायम कवच बाली कछुआ) और दूसरा हार्ड शेल्ड टर्टल (कड़ी कवच बाली कछुआ). ऐसी आम लोगों में खास कर मछुआरों में धारणा है कि इसके मांस खाने से शक्ति मिलती है. कुछ लोग सॉफ्ट शेल्ड टर्टल (मुलायम कवच बाली) कछुआ का मांस को बहुत चाव से खाते हैं तथा इसके लिए मछुआरों को मुंह मांगा पैसा भी दिया जाता है कुछ मछुआरों का कहना है कि बिहार में कुछ बड़े बड़े राजनीतिज्ञ भी कछुआ के मांस को बहुत चाव से खाते हैं.

दुनिया के कुछ हिस्सों में, समुद्री कछुओं के खाल का उपयोग औपचारिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है. उनके खोल और खाल की उपयोग विभिन्न प्रकार की वस्तुएं जैसे गहने, धूप का चश्मा, पर्यटक ट्रिंकेट, उपकरण और दीवार पर लटकाने के लिए भी किया जाता है लेकिन मीठे जल के कछुए का खाल का उपयोग लगभग न के बराबर होता है.

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बिहार की नदियों में मौजूद है विभिन्न प्रजातियों के कछुए

राष्ट्रीय डॉल्फिन शोध केंद्र पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अंतरिम निदेशक डॉ गोपाल शर्मा बताते हैं कि बिहार के उन सभी नदियों में कछुआ मिलता है जो हिमालय से निकलती हैं जैसे गंगा, घाघरा, गंडक, कोसी, महानंदा और बूढ़ी गंडक नदी आदि है. गंगा में कई तरह के कछुए की प्रजातियां है जिसकी खोज होनी बाकी है.

मूल रूप से अभी तक 4-5 प्रजातियां पायी गयी है जिनमें चित्रा इंडिका,लिसेमिस पंक्टाटा, निल्सोनिया गैंगेटिका (सबसे ज्यादा संख्या में), पंगशुरा टेक्टा और कभी-कभी पंगशुरा स्मिथ प्रजाति का कछुआ मिलता है. पिछले कुछ सालों में कछुओं की संख्या में कमी आयी है क्योंकि इनके अधिवासों में अब इनका भोजन कम मिल रहा है जिसके कारण इनकी संख्या में गिरावट आयी है. इनका अधिवास जहां कछुए अंडे देते हैं वह अधिवास भी मानव द्वारा अतिक्रमित हो गया है जिससे अंडे सुरक्षित नहीं रह पाते हैं. इनका शिकार अंधाधुंध हो रहा है, तथा संरक्षण का राजकीय प्रयास पर्याप्त नहीं है.

कछुआ पालना व तस्करी है अपराध

भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत कछुआ पालना एवं तस्करी को कानूनी अपराध की श्रेणी में रखा गया है.अगर कोई कछुआ पालता है या इसकी तस्करी करते पकड़ा जाता है तो इसके लिए कठोर कारावास के साथ आर्थिक दंड का प्रावधान है. इन सबके बावजूद कछुओं का शिकार किया जाता है.

वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत शेड्यूल-1 में शेर, बाघ की तरह ही कछुए भी इसी श्रेणी में विलुप्त होने वाली प्रजाति के अंतर्गत आते हैं. इन्हें मारने पर सात साल तक की सजा का हो सकती है. कछुओं को रेस्क्यू कर बचाने के लिए पूरे बिहार और झारखंड का मात्र एक कछुआ पुनर्वास केंद्र भागलपुर में है, जहां कछुओं को संरक्षित करने के लिए कई ठोस कदम उठाए जाते हैं. यहीं कारण है कि यहां कई प्रजातियों के कछुए पाये जाते हैं.

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कुछ भ्रांतियां संरक्षितों जीवों के लिए हैं खतरा

बहुत से लोगों का मानना है कि घर में कछुआ रखने से धन यानी लक्ष्मी आती है. इस तरह की भ्रांतियां इन संरक्षितों जीवों की जान पर खतरा साबित हो रही हैं. इसकी जगह अब भारत समेत दुनिया के कई देशों में लोग घरों की खूबसूरती बढ़ाने और वास्तु दोष दूर करने के लिए कांच के बर्तन में असली कछुओं को पालने लगे हैं. इन्हें वास्तु शास्त्रियों की सलाह पर वास्तु दोष दूर करने और सुख समृद्धि के लिए कई लोग इसे घर में रखते हैं, जो एक अपराध है. 

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