Patna: संविधान बदलना चाहती है RSS, होसबोले के बहाने लालू यादव ने संघ पर बोला हमला

Patna: दत्तात्रेय होसबोले द्वारा संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को हटाने की मांग पर लालू यादव ने निशाना साधा है. शुक्रवार को एक्स पर पोस्ट कर उन्होंने आरएसएस को जातिवादी और नफरती संगठन बताया है. इसके साथ ही उन्होंने यह भी दावा किया है कि आरएसएस संविधान बदलना चाहती है.

By Prashant Tiwari | June 27, 2025 4:57 PM

Patna: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले द्वारा संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने की मांग के बाद सियासी गलियारों में बवाल मच गया है. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने संघ पर तीखा हमला बोला है. 

बाबा साहेब के संविधान के प्रति इतनी घृणा क्यों? लालू यादव 

लालू यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स  पर लिखा, “देश के सबसे बड़े जातिवादी और नफरती संगठन RSS ने संविधान बदलने की बात कही है. इनकी इतनी हिम्मत नहीं कि संविधान और आरक्षण की तरफ़ आंख उठाकर देख सके. अन्यायी चरित्र के लोगों के मन व विचार में लोकतंत्र एवं बाबा साहेब के संविधान के प्रति इतनी घृणा क्यों है?”

‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द संविधान की मूल प्रस्तावना में नहीं

बता दें कि आपातकाल के 50 साल पूरा होने के मौके पर दत्तात्रेय होसबोले ने दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा था ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द संविधान की मूल प्रस्तावना में शामिल नहीं थे, बल्कि इन्हें 1976 में आपातकाल के दौरान तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने जोड़ा था. उन्होंने इस कदम को असंवैधानिक बताते हुए इन शब्दों को हटाने की मांग की. ॉ

देश में आपातकाल थोपने के लिए माफी मांगे कांग्रेस: होसबोले

होसबोले ने 25 जून 1975 को लागू किए गए आपातकाल का जिक्र करते हुए कहा कि उस दौर में लोकतंत्र का गला घोंटा गया, हजारों लोगों को जेल में डाला गया और जबरन नसबंदी जैसे अमानवीय कृत्य किए गए. उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा था कि जिन लोगों ने लोकतंत्र को कुचला, वे आज संविधान की प्रति लेकर घूम रहे हैं. उन्होंने आज तक देश से माफी नहीं मांगी है.”

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आमने सामने RSS और विपक्ष 

इस विवाद के बाद राजनीतिक माहौल गरमा गया है। लालू यादव जैसे विपक्षी नेता इसे संघ की संविधान विरोधी मानसिकता का परिचायक बता रहे हैं, जबकि संघ इस मांग को ऐतिहासिक तथ्यों और मूल संविधान की बहाली से जोड़ रहा है. 

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