भगवान के घर में सब बराबर, कोई गरीब-अमीर नहीं होता : विष्णुकांत शास्त्री

नीय प्रखंड के कटराकलां में चल रहे श्री रामचरितमानस नवाह्न पारायण महायज्ञ के समापन पर भागवत कथा का रसपान कराते हुए वृंदावन के सुप्रसिद्ध कथावाचक विष्णुकांत शास्त्री ने कहा कि भगवान दीनों के बंधु है

By Prabhat Khabar News Desk | February 23, 2025 8:46 PM

मोहनिया सदर. स्थानीय प्रखंड के कटराकलां में चल रहे श्री रामचरितमानस नवाह्न पारायण महायज्ञ के समापन पर भागवत कथा का रसपान कराते हुए वृंदावन के सुप्रसिद्ध कथावाचक विष्णुकांत शास्त्री ने कहा कि भगवान दीनों के बंधु है. क्योंकि भगवान के घर में सब बराबर हैं कोई गरीब, अमीर नहीं होता. यह कथा श्री स्वामी जी ने कृष्ण सुदामा प्रकरण को निवेदित करते हुए कहीं. उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति गरीब होता है वस्तुत: वह दरिद्र नहीं होता है, बल्कि जो भगवान ने आपको दे रखा है उसके बाद भी आपकी चाह बढ़ रही तो यही चाह आपको दरिद्र बनाये रखेगी. इसलिए जो प्राप्त है वहीं पर्याप्त हैं. इसी स्लोगन को जीवन में अपनाने और भविष्य की चिंता न करते हुए ज्यादा से ज्यादा वर्तमान में जीने का प्रयास करें. क्योंकि, जब वर्तमान सही ढंग से सुव्यवस्थित होगा, तब भविष्य भी अपने आप संवर जायेगा. जब सुदामा भगवान कृष्ण के दरवाजे पर गये तो सुदामा को द्वारपालों ने रोक दिया, मगर जब यह बात भगवान कृष्ण के कान तक गयी, तो वे दौड़े दौड़े अपने दीनहीन मित्र के पास पहुंच गये और भगवान ने यह सिद्ध किया कि प्रेम को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती. प्रेम अपने आप में पूर्ण होता है. जो कृष्ण द्वारिकाधीश थे, वे एक भिखारी के लिए दौड़े दौड़े आये, इसी तरह प्रेम के लिए परमात्मा सारे नियम को तोड़ देते हैं. जब भगवान ने उनसे पूछा कि हे मित्र भाभी मेरे लिए कुछ नहीं दी है, तो सुदामा अपनी चावल की पोटली को छिपाने की कोशिश करने लगे और बोले कि एक मास दो पक्ष में दो एकादशी होय. कान्हा मेरे घर में नित्य एकादशी होय. होनी थी जो हो गयी अब नहीं ऐसी होय. भाभी तेरे भवन में नित्य द्वादशी होय. और द्वारिकाधीश उसी चावल को जो सुदामा चुरा रहे थे उसको प्रेम से खाने लगे, तत्पश्चात पत्नी ने रोका तो भगवान माने परम प्रेम के पाठे पढ़कर प्रभु को नियम बदलते देखा. अपना मान रहे न रहे पर भक्त का मान न टलते देखा. परमात्मा प्रेम से रीझते हैं जीवन में मनुष्य को अपने कर्मों पर सदैव ध्यान देना चाहिए. क्योंकि स्वयं के कर्मों की गति से ही व्यक्ति सुख और दुख भोगता है. इसीलिए सुदामा जी को श्रीमद् भागवत जी में दरिद्र नहीं अपितु ब्रह्मज्ञानी कहा गया है. अतः जिस व्यक्ति की तृष्णा अनवरत बढ़ती रहती है कामनाएं शांत होने का नाम नहीं लेती, वस्तुत: वहीं दरिद्र है. विश्राम दिवस के दिन यज्ञाचार्य राजाराम उपाध्याय, परमानंद नरहरि बालियां उत्तरप्रदेश, साथ में यजमान राजदेव प्रसाद गुप्ता, मानस व्यास नरेश्वर चौबे, उद्घोषक आशुतोष, भजन गायक अभिषेक चौबे, यज्ञ के संरक्षक कैलाश राम के साथ अन्य लोग मौजूद रहे.

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