bhagalpur newsअंगक्षेत्र में धरोहरों की भरमार, ध्यान देने की दरकार

अंग क्षेत्र में घरोहरों की भरमार.

By KALI KINKER MISHRA | April 17, 2025 11:27 PM

– विश्व विरासत दिवस

– भागलपुर में पूर्व से पश्चिम व उत्तर से दक्षिण तक कई ऐतिहासिक धरोहर बिखरे पड़े

– रखरखाव के अभाव में देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों होते हैं मायूसगौतम वेदपाणि , भागलपुरजिले में पूर्व से पश्चिम व उत्तर से दक्षिण तक कई ऐतिहासिक धरोहर बिखरे पड़े हैं, लेकिन समुचित रखरखाव के अभाव में पर्यटकों को मायूसी होती है. इतिहास के कालक्रम के अनुसार नवगछिया अनुमंडल स्थित गुआरीडीह में तीन हजार वर्ष पुराने सभ्यता के कई अवशेष मिले हैं. जो संरक्षण के अभाव में कोसी नदी में कटकर विलीन हो रहा है. वहीं गुप्तकाल में विकसित सुलतानगंज के अजगैवीनाथ व मुरली पहाड़ी पर हिंदू व बौद्ध धर्म से जुड़ी मूर्तियां क्षीण हो रही हैं. कहलगांव स्थित विक्रमशिला महाविहार के अवशेष को बेहतर तरीके से संरक्षित किया जा रहा है. हालांकि कहलगांव में ही बटेश्वर मंदिर के आसपास बिखरी धरोहरों पर कम ध्यान दिया गया है. वहीं शहर स्थित टिल्हा कोठी, महाशय ड्योढ़ी, जैन सिद्धक्षेत्र समेत कई मकबरा हैं. इन्हें भी विकसित कर पर्यटन के नक्शे पर लाना जरूरी है.

जिले में 300 से अधिक पुरातात्विक स्थल :

बिहार पुरातत्व विभाग की ओर से 2015 में भागलपुर जिले में पुरातात्विक स्थलों व साक्ष्यों का सर्वे कराया गया था. सर्वे में पाया गया कि जिले में 300 से अधिक पुरातात्विक स्थल हैं. इसकी रिपोर्ट बिहार सरकार को सौंपी गयी थी. लेकिन इन स्थलों के विकास को लेकर अबतक कोई योजना नहीं बनी. जबकि हर साल देश व विदेश से कई पर्यटक विक्रमशिला महाविहार समेत भागलपुर के टिल्हा कोठी, जैन सिद्धक्षेत्र व अजगैवीनाथ पहाड़ी देखने आते हैं.

गंदे पानी में डूबी हैं गुप्तकालीन मूर्तियां :

सुलतानगंज स्थित अजगैवीनाथ मंदिर व इसके सामने मुरली पहाड़ी पर दो हजार साल पुरानी अनगिनत मूर्तियां हैं. इनमें से कई मूर्तियों को मंदिर के सामने प्लेटफॉर्म बनाने के लिए कंक्रीट से ढंक दी गयी हैं. वहीं कई मूर्तियां मंदिर परिसर से निकले गंदे पानी में डूबी नजर आती हैं. इधर, मुरली पहाड़ी स्थित मूर्तियाें के आसपास गंगास्नान करने आने वाले श्रद्धालु गंदगी फैलाते हैं.

विक्रमशिला में केंद्रीय विश्वविद्यालय की होगी स्थापना :

ऐतिहासिक विक्रमशिला महाविहार कहलगांव अनुमंडल स्थित अंतीचक में है. यह दुनिया के सबसे पुराने उच्च शिक्षण संस्थानों में शामिल है. इसकी स्थापना आठवीं शताब्दी में पाल वंश के राजा धर्मपाल ने की थी. स्थापना के तुरंत बाद ही यह अंतरराष्ट्रीय महत्व को प्राप्त कर लिया था. यहां बौद्ध धर्म और दर्शन के साथन्याय, तत्वज्ञान, व्याकरण आदि की भी शिक्षा दी जाती थी. वर्तमान में इसका भग्नावशेष बचा है. केंद्र सरकार ने अतीत के गौरव को लौटाने के लिए यहां केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना की निर्णय लिया है. विक्रमशिला महाविहार के पास ही भूमि अर्जन की प्रक्रिया जिला प्रशासन ने शुरू की है.

पूर्वी भारत का सबसे खूबसूरत भवनों में एक है टिल्हा कोठी

कुछ दिन पहले भारत भ्रमण के दौरान यूनाइटेड किंगडम से आये पर्यटकों ने टीएमबीयू परिसर स्थित टिल्हा कोठी (रवींद्र भवन) को देखकर कहा था कि पूर्वी भारत में इतनी खूबसूरत बिल्डिंग नहीं देखी. टिल्हा कोठी भ्रमण करने आये मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इसके विहंगम दृश्यों पर मुग्ध हुए थे. लेकिन पर्यटन परिपथ में टिल्हा कोठी को शामिल नहीं किया गया है. बिहार आने वाले अधिकतर पर्यटकों को टिल्हा कोठी की जानकारी भी नहीं हो पाती. फिलहाल टिल्हा कोठी धीरे-धीरे जर्जर हो रही है. कहा जाता है कि गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर ने यहां गीतांजलि के कुछ हिस्से की रचना की थी.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है