Tulsidas Jayanti 2025: तुलसीदास जयंती आज, यहां पढ़ें उनके प्रेरणादायक दोहे

Tulsidas Jayanti 2025: तुलसीदास जयंती के पावन अवसर पर आज पूरे देश में गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जा रही है. उन्होंने रामचरितमानस जैसे ग्रंथ की रचना कर भक्ति को जन-जन तक पहुंचाया. आइए, पढ़ें उनके कुछ अनमोल और प्रेरणादायक दोहे.

By Shaurya Punj | July 31, 2025 12:46 PM

Tulsidas Jayanti 2025: आज 31 जुलाई 2025 को तुलसीदास जयंती मनाई जा रही है. यह विशेष दिन हर साल श्रावण मास की सप्तमी तिथि पर मनाई जाती है. आपको बता दें गोस्वामी तुलसीदास जयंती केवल एक संत की जयंती नहीं, बल्कि भारतीय भक्ति साहित्य की गौरवपूर्ण विरासत का उत्सव है. तुलसीदास जी ने अपनी कालजयी रचनाओं के माध्यम से भगवान श्रीराम के आदर्शों को जन-जन तक पहुंचाया. उन्होंने भक्ति को सिर्फ एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि जीवन जीने की प्रेरणादायक शैली के रूप में स्थापित किया। उनकी रचनाएं आज भी धर्म, नैतिकता और भक्ति के स्थायी और अमूल्य स्त्रोत हैं. वे भगवान श्रीराम के प्रति अपनी अटल और अनन्य भक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं. आइए, जानते हैं गोस्वामी तुलसीदास जी के कुछ प्रेरणादायक दोहे, जो आज भी जीवन को सही दिशा दिखाते हैं.

‘तुलसी’ काया खेत है, मनसा भयौ किसान।
पाप-पुन्य दोउ बीज हैं, बुवै सो लुनै निदान॥

गोस्वामी जी कहते हैं कि शरीर मानो खेत है, मन मानो किसान है. जिसमें यह किसान पाप और पुण्य रूपी दो प्रकार के बीजों को बोता है. जैसे बीज बोएगा वैसे ही इसे अंत में फल काटने को मिलेंगे. भाव यह है कि यदि मनुष्य शुभ कर्म करेगा तो उसे शुभ फल मिलेंगे और यदि पाप कर्म करेगा तो उसका फल भी बुरा ही मिलेगा.

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‘तुलसी’ सब छल छाँड़िकै, कीजै राम-सनेह।
अंतर पति सों है कहा, जिन देखी सब देह॥

गोस्वामी जी कहते हैं कि सब छल-कपटों को छोड़ कर भगवान् की सच्चे हृदय से भक्ति करो. उस पति से भला क्या भेदभाव है जिसने सारे शरीर को देखा हुआ है. भाव यह कि जैसे पति अपनी पत्नी के सारे शरीर के रहस्यों को जानता है वैसे ही प्रभु सारे जीवों के सब कर्मों को जानता है.

आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह।
‘तुलसी’ तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह॥

जिस घर में जाने पर घर वाले लोग देखते ही प्रसन्न न हों और जिनकी आंखों में प्रेम न हो, उस घर में कभी न जाना चाहिए. उस घर से चाहे कितना ही लाभ क्यों न हो वहाँ कभी नहीं जाना चाहिए.

‘तुलसी’ जस भवितव्यता, तैसी मिलै सहाय।
आपु न आवै ताहि पै, ताहि तहाँ लै जाय॥

गोस्वामी जी कहते हैं कि जैसी होनहार होती है मनुष्य को वैसी ही सहायता प्राप्त हो जाती है. होनहार स्वयं मनुष्य के पास नहीं आती प्रत्युत उसे ही स्वयं खींच कर वहां ले जाती है. भाव यह है कि होनहार या भाग्य के आगे किसी का कुछ वश नहीं चलता.

रघुपति कीरति कामिनी, क्यों कहै तुलसीदासु।
सरद अकास प्रकास ससि, चार चिबुक तिल जासु॥

श्री रघुनाथ जी की कीर्तिरूपी कामिनी का तुलसीदास कैसे बखान कर सकता है? शरत्पूर्णिमा के आकाश में प्रकाशित होने वाला चंद्रमा मानो उस कीर्ति-कामिनी की ठुड्डी का तिल है.

बिनु विश्वास भगति नहीं, तेही बिनु द्रवहिं न राम।
राम-कृपा बिनु सपनेहुँ, जीव न लहि विश्राम॥

भगवान् में सच्चे विश्वास के बिना मनुष्य को भगवद्भक्ति प्राप्त नहीं हो सकती और बिना भक्ति के भगवान् कृपा नहीं कर सकते. जब तक मनुष्य पर भगवान् की कृपा नहीं होती तब तक मनुष्य स्वप्न में भी सुख-शांति नहीं पा सकता. अत: मनुष्य को भगवान् का भजन करते रहना चाहिए ताकि भगवान् के प्रसन्न हो जाने पर भक्त को सब सुख-संपत्ति अपने आप प्राप्त हो जाय.