History of Sarnath : अंग्रेज या बनारस के दीवान जगत सिंह, सारनाथ के ऐतिहासिक स्तूपों को उजागर करने का श्रेय किसे? क्या कहते हैं एक्सपर्ट

History of Sarnath : महात्मा बुद्ध को बिहार के गया में ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और उन्होंने अपना पहला उपदेश उत्तरप्रदेश के सारनाथ में दिया था. इसी वजह से बौद्ध धर्म में लुंबिनी, बोधगया, सारनाथ और कुशीनगर ये चार तीर्थ माने गए हैं. सरकार ने बौद्ध धर्म के केंद्र के रूप में इसके महत्व को समझते हुए यूनेस्को की लिस्ट में इसे स्थायी धरोहर के रूप में नामित किया है. बौद्ध धर्म से जुड़े होने की वजह से सम्राट अशोक ने यहां कई स्तूप और स्तंभ बनवाए थे. मौर्यकाल में भी यहां कई स्तूप और विहार का निर्माण कराया गया था.यहां के कई स्तूप जमींदोज हो चुके थे, इन जमींदोज हो चुके स्तूपों को सबसे पहले किसने उजागर किया, इसपर कुछ नई जानकारी सामने आई है.

By Rajneesh Anand | September 18, 2025 5:25 PM

History of Sarnath : साथनाथ भारतीय इतिहास की वह पावन धरती है, जहां भगवान गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश या ज्ञान दिया था. सम्राट अशोक ने यहां अशोक स्तंभ का निर्माण कराया था, जो भारत का राष्ट्रीय चिह्न है. सारनाथ की चर्चा आज इसलिए क्योंकि सरकार ने इस वर्ष विश्व धरोहर के रूप में इसे नामित किया है और यूनेस्को की टीम यहां जल्दी ही दौरा करने वाली है. अब दूसरी बात पर गौर करें, दूसरी और अहम बात यह है कि किसी भी राष्ट्रीय स्मारक पर उसके इतिहास और उसे उजागर करने वाले का नाम अंकित होता है. सारनाथ के बारे में जानकारी देने वाली पट्टिका में यह अंकित है कि इस स्थान के पुरातात्विक महत्व का पहली बार 1798 में जे डंकन द्वारा ध्यान में लाया गया था. अब एक दावा यह सामने आया है कि इस स्थान की खुदाई और इसके महत्व को उजागर करने का श्रेय बनारस के राजा चेत सिंह के परिवार के सदस्य दीवान जगत सिंह को दिया जाना चाहिए, क्योंकि उनके ही प्रयासों से यह संभव हो पाया है.

क्या है पूरा मामला

सारनाथ को यूनेस्को की विश्व धरोहर की स्थायी सूची में शामिल करने के लिए सरकार ने सारनाथ को नामित किया है. इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से एक सूचना सामने आई है कि यहां जो पट्टिका लगी हुई है, उसमें बदलाव किया जाएगा और सारनाथ के महत्व को पहचानने और यहां खुदाई करने का पहला श्रेय डंकन को देने की बजाय बनारस के राजा के परिजन जगत सिंह को दिया जाएगा. इंडियन एक्सप्रेस ने यह दावा किया है कि भारतीय पुरातत्व विभाग बहुत जल्दी पट्टिका में बदलाव करेगा, संभवत: यूनेस्को के दौरे से पहले.

कौन हैं जगत सिंह और उन्होंने सारनाथ में क्या किया था?

सारनाथ का धमेक स्तूप

जगत सिंह को बनारस के राजा चेत सिंह का दीवान बताया जाता है, जिन्होंने सबसे पहले सारनाथ के इन इलाकों में खुदाई करवाई थी. Archaeological Survey of India के बीआर मणि ने अपनी किताब S A R N A T H Archaeology, Art & Architecture में लिखा है कि सारनाथ ने पिछले दो सौ से भी ज्यादा वर्षों से विद्वानों, पुरातत्वविदों और पुरातात्विक अवशेषों की खोज में लगे उत्साही लोगों का ध्यान आकर्षित किया है. इसका सबसे पहला उल्लेख जोनाथन डंकन ने 1794 में अपने लेख में बाबू जगत सिंह द्वारा ‘सारनाथ नामक एक मंदिर के निकटवर्ती क्षेत्र में’ दो कलशों की खोज का वर्णन किया है. बनारस के राजा चेत सिंह के दीवान जगत सिंह ने 1793-94 में स्तूप टीले की खुदाई शहर में अपने नाम पर एक बाजार बनाने के लिए निर्माण सामग्री, पत्थर और ईंटें, दोनों प्राप्त करने के उद्देश्य से की थी. उसी खुदाई के दौरान यह पता चला था कि यहां बौद्धकालीन अवशेष मौजूद हैं. अंग्रेजों ने अपनी किताबों और उल्लेखों में यह वर्णन किया है कि जगत सिंह ने धर्मराजिका स्तूप को नष्ट कर दिया और उसे संरक्षित करने का कोई प्रयास नहीं किया है.

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सारनाथ की पट्टिका में बदलाव के पीछे क्या है तर्क

सारनाथ की पट्टका में बदलाव के पीछे जगत सिंह का परिवार और शोध संस्थान यह तर्क दे रहा है कि जगत सिंह ने ही सबसे पहले इस जगह की खुदाई करवाई थी और उसमें जब कुछ अवशेष मिले तो पूरे विश्व का ध्यान इस ओर गया कि यहां कुछ ऐतिहासिक चीजें दफन हैं. जगत सिंह ने इस बात को समझा था और लोगों को इस बारे में बताया था, इसलिए सबसे पहले सारनाथ के महत्व को समझने और इसे उजागर करने का श्रेय जगत सिंह को दिया जाना चाहिए. इस संबंध में प्रभात खबर से बात करते हुए BHU के इतिहास विभाग की प्रोफेसर अनुराधा सिंह कहती हैं कि देखिए जगत सिंह ने जिस वक्त वहां खुदाई कराई उनका उद्देश्य वहां के ऐतिहासिक महत्व को समझना और उसे उजागर करना नहीं था. वो तो अपने लिए निर्माण करना चाहते थे और इसी उद्देश्य से उन्होंने यहां खुदाई करवाई थी. अबतक जो बातें ऐतिहासिक साक्ष्यों में दर्ज हैं, उसके अनुसार सारनाथ में उत्खनन और इसके महत्व को समझने का श्रेय अंग्रेजों को ही दिया जाता है, अगर कोई नए साक्ष्य मिले हैं और उनके आधार पर पुरातत्व विभाग कोई परिवर्तन कर रहा है, तो उसे उस साक्ष्य को सार्वजनिक करना चाहिए.

पुरातत्व विभाग किस प्रक्रिया के तहत पट्टिका में बदलाव कर सकता है

झारखंड पुरातत्व विभाग के रिटायर्ड डिप्टी डायरेक्टर डाॅ हरेंद्र सिन्हा बताते हैं कि किसी भी बड़े स्मारक पर शोध चलते रहते हैं, ताकि अगर कोई नई जानकारी हो, तो उसे सामने लाया जाए. मैं यह बताना चाहता हूं 18वीं शताब्दी में पुरातात्विक उत्खनन जैसी कोई चीज देश में नहीं थी. अगर जगत सिंह ने कुछ कराया था और उसके प्रमाण मिल रहे हैं, तो विभाग पहले उसकी जांच करेगा. अगर सबकुछ सही पाया जाता है, तो कल्चरल नोटिस बोर्ड (CNB)में उनका नाम जोड़ा जा सकता है. यह एक तरह से पट्टिका को एडिट करने का काम होगा, ना कि उसे बदलने का काम. इसकी वजह यह है कि पट्टिका में जो जानकारी मौजूद है, वह भी सच है और उसे मिटाया नहीं जा सकता है.

वहीं पुरातत्व विभाग,लखनऊ सर्किल के रिटायर्ड सुपरिटेंडेंट इंदु प्रकाश बताते हैं कि बड़े साइट्‌स पर शोध चलते रहते हैं, कहीं कोई मिसिंग तो नहीं है, कोई प्रमाण छूट तो नहीं गया है. अगर ऐसा होता है, तो उसमें संशोधन किया जाता है और यह रेगुलर प्रोसेस है. जगत सिंह ने सारनाथ में खुदाई तो करवाई थी, लेकिन उसे पुरातात्विक खुदाई नहीं कहा जा सकता है. अब अगर उसके परिजन कोई सबूत दे रहे हैं, तो विभाग उसपर विचार करके पट्टिका में परिवर्तन कर सकता है.

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