झारखंड के नागवंशी शाहदेवों का नया तीर्थ बनेगा गुजरात का कच्छ, जानिए क्यों है ऐसी उम्मीद

नागवंशियों का इतिहास काफी पुराना है. झारखंड समेत कई राज्यों में एक वक्त इनका शासन हुआ करता था. आज फिर एक बार नागवंशी चर्चा में है. कारण, गुजरात के कच्छ में मिला 15 मीटर लंबे सांप का जीवाश्म. इस मामले पर पेश है एक खास रिपोर्ट कि यह झारखंड के नागवंशियों के लिए कितनी बड़ी बात है...

By Aditya kumar | April 27, 2024 6:43 PM

Vasuki : गुजरात के कच्छ में मिले 15 मीटर लंबे जीवाश्म के बारे में आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों का दावा है कि यह वासुकी प्रजाति के नाग का है. इस आधार पर पुरातत्वविद इतिहास के नए स्रोत की तलाश कर रहे हैं. जीव वैज्ञानिकों के लिए यह धरती पर करोड़ों साल से प्राणियों में हुए आनुवांशिक बदलाव पर नई रोशनी की उम्मीद है. वहीं झारखंड के नागवंशी शाहदेवों के लिए यह अपने आदि पूर्वजों में से एक की जैविक काया के निशान मिलने की आशा है. अगर आस्था की कसौटी पर भी वैज्ञानिकों के तथ्य और तर्क साबित हो गए तो वहां झारखंड से श्रद्धा की नई यात्रा शुरू होते देर नहीं लगेगी. ऐसे में वह पुरातात्विक स्थल नागवंशी विश्वासों का नया तीर्थ बन सकता है.

Vasuki fossils

झारखंड में नागवंशी माने जाने वाले शाहदेव लोगों का कहना है कि हम वासुकी की पूजा करते हैं. वे नागों के राजा कहे जाते हैं. वासुकी का जीवाश्म मिलना हमारे लिए बहुत गर्व की बात है और हम चाहते हैं कि यह तीर्थस्थल के रूप में विकसित हो. करीब पांच करोड़ साल पहले गुजरात में पाई जाने वाली सांप की वासुकी प्रजाति दुनिया के सबसे लंबे सांपों में से एक है. साथ ही नागवंशियों का इतिहास भी काफी पुराना है.

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कैसे और कहां मिला है वासुकी (Vasuki) सांप का जीवाश्म

आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर सुनील बाजपेयी और आईआईटी रूड़की के रिसर्च फेलो देबजीत दत्ता ने अपने शोध में बताया है कि कच्छ में मिला जीवाश्म वैज्ञानिक रूप से वासुकी इंडिकस प्रजाति का है. वासुकी नाम शिवजी के गले में लिपटे नागराज से लिया गया है. इंडिकस शब्द का मतलब है भारत का. यह प्रजाति विलुप्त हो चुके मदत्सोइदे सांप परिवार का हिस्सा है, जिनकी अनुमानित लंबाई 11 से 15 मीटर तक बतायी जाती थी. यह जीवाश्म गुजरात के कच्छ में पनांद्रो लिग्नाइट खदान से मिला है, जो मध्य इयोसीन युग का बताया जा रहा है.

कंबोडिया में मंदिर पर नागों की प्रतिमा

जहां मिला वासुकी सांप का जीवाश्म वो बनेगा तीर्थस्थल

क्या आईआईटी रुड़की द्वारा वासुकी सांप के जीवाश्म होने का दावा एक नई मांग को खड़ा कर देगा? नागवंशियों का कहना है कि अगर खदान में मिला जीवाश्म सही में वासुकी का है तो ये हमारे लिए गर्व की बात है. झारखंड आंदोलन के नेता रहे लाल रणविजय नाथ शाहदेव के पोते और सामाजिक कार्यकर्ता ऋतुराज शाहदेव ने कहा कि जांच के दौरान मिला जीवाश्म वासुकी का है तो हम उस जगह को तीर्थ के तौर पर ही देखेंगे. साथ ही उन्होंने कहा कि झारखंड में जिन जगहों पर हमारे पुरखों (पुंडरिक नाग) के होने की बात कही जाती है, वहां हम जाते हैं, ऐसे में अगर कच्छ में वासुकी का जीवाश्म मिला है तो उस जगह को संरक्षित कर तीर्थस्थल के तौर पर विकसित किया जाना चाहिए.

नागवंशियों और वासुकी के बीच क्या है संबंध

नागवंशी चितरंजन शाहदेव ने बताया कि नागपंचमी की पूजा में वे लोग अष्टनाग का चित्र बनाते हैं, इनमें वासुकी नाग और फणि मुकुट राय के बाल्यावस्था का भी चित्र होता है, इनमें वासुकी नाग भी होते हैं और कांटेदार पेड़ होता है. उस तस्वीर के एक कोने में पुंडरीक नाग की भी तस्वीर होती है.

नागवंशी

झारखंड में मदरा मुंडा ने नागवंशी को क्यों सौंपा अपना पूरा साम्राज्य

चितरंजन शाहदेव ने बताया कि फणि मुकुट राय काफी तेजस्वी थे, इसलिए मदरा मुंडा ने पूरा राजकाज अपने बेटे मणि मुकुट राय को ना देते हुए उन्हें दे दिया. कई युद्धों में फणि मुकुट राय ने अपने पराक्रम का परिचय दिया.

आखिर क्या है झारखंड में नागवंशियों का इतिहास?

लेखक बी वीरोत्तम की किताब ‘झारखंड : इतिहास और संस्कृति’ में नागवंशियों के इतिहास के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है. इस किताब के अनुसार, नागवंश के संस्थापक फणि मुकुट राय पुंडरीक नाग और पार्वती नामक ब्राह्मण कन्या के पुत्र थे. द्वापर युग में राजा जनमेजय के नागयज्ञ के दौरान एक पुंडरीक नाग वहां से भाग निकला और मानव रूप लेकर वाराणसी पहुंच गया. वहां उनकी भेंट पार्वती नाम की एक ब्राह्मण कन्या से हुई. वापसी के दौरान दोनों पिठौरिया में एक पेड़ की छाया में विश्राम करने रुके तभी पुंडरीक नाग वास्तविक रूप में आकर तालाब में छलांग लगाकर अदृश्य हो गए. उस वक्त पार्वती ने एक बच्चे को जन्म दिया और खुद सती हो गई. तभी उस रास्ते से गुजरते एक ब्राह्मण ने देखा कि एक बच्चा सांप के फन के नीचे है. उसी ब्राह्मण ने उस बच्चे को मदरा मुंडा को सौंपा, जिन्होंने उनका नाम फणि मुकुट राय रखा और पालन-पोषण किया. उन्हीं से नागवंशियों की वंश परंपरा आज भी चल रही है.

झारखंड – इतिहास व संस्कृति

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