Bihar elections 2025: यह यूनाइटेड बिहार का जनादेश है

Bihar elections 2025 : मोदी और नीतीश ने मिलकर जो एक यूनाइटेड बिहार बनाया है, उसमें सभी वर्ग के लोग सुरक्षित महसूस कर रहे हैं. यहां तक कि मुस्लिम भी. भले ही आर्थिक आंकड़ों में यह यूनाइटेड बिहार किसी शीर्ष राज्य की श्रेणी में नहीं आता है, लेकिन चैन से सोने और मनमाफिक काम करने की आजादी की कोई गणना हो, तो बिहार पहले पांच राज्यों में जरूर आ सकता है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 15, 2025 10:09 PM

-विक्रम उपाध्याय-

Bihar elections 2025:1990 में भारतीय राजनीति में दो बड़ी घटनाएं हुईं. विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने उस साल सत्ताइस प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान के साथ मंडल आयोग की सिफारिशें लागू की और उसी साल तमाम तिकड़मों के साथ लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बन गए. यूं तो मंडल आयोग को लेकर पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुए, लेकिन बिहार में इसके कारण वर्ग संघर्ष शुरू हुआ. अगड़े पिछड़े के बीच कभी न खत्म होने वाली नफरत की खाई खोद दी गई. मुख्यमंत्री के नाते लालू प्रसाद यादव ने इसे खत्म करने के बजाय इसको हवा दी और पूरे दस साल जातीय नरसंहार का सिलसिला चलने दिया. उस दौरान राह चलते लोगों की जातियां पूछकर पिटाई की जाती रही और सत्ता में बैठे लालू इस संघर्ष का राजनीतिक लाभ लेते रहे. चारा घोटाले में नाम आने के बाद लालू प्रसाद यादव को कुर्सी छोड़नी पड़ी और 2005 आते आते बिहार ने लालू परिवार के शासन से जो एक बार तौबा की तो फिर उस तरफ़ नहीं देखा. 2025 के इस चुनाव परिणाम में राजद के सफाए के पीछे प्रारंभिक कारण सिर्फ और सिर्फ लालू राज के अत्याचार से बचे रहने का फैसला ही है.

नीतीश कुमार के प्रति विश्वास जीत का कारण

राजनीतिक विश्लेषक भले ही जीत हार के अलग -अलग कारण गिना रहे हों, लेकिन नीतीश कुमार के प्रति विश्वास से कोई बड़ा कारण नहीं हो सकता है. उस पर से बीजेपी के नेतृत्व का केंद्र की सत्ता में रहना, सोने पर सुहागे की तरह काम कर रहा है.मोदी और नीतीश ने मिलकर जो एक यूनाइटेड बिहार बनाया है, उसमें सभी वर्ग के लोग सुरक्षित महसूस कर रहे हैं. यहां तक कि मुस्लिम भी. भले ही आर्थिक आंकड़ों में यह यूनाइटेड बिहार किसी शीर्ष राज्य की श्रेणी में नहीं आता है, लेकिन चैन से सोने और मनमाफिक काम करने की आजादी की कोई गणना हो, तो बिहार पहले पांच राज्यों में जरूर आ सकता है.

लालू परिवार ने अपने पंद्रह साल के शासन में सिर्फ अराजकता फैलाई

नीतीश कुमार ने बीस वर्षों के अपने कार्यकाल में जो सबसे बड़ी मिसाल कायम की है, वह है, तटस्थता के साथ सरकार का संचालन और बिना राग द्वेष का राजनीतिक व्यवहार. दूसरी तरफ लालू परिवार ने अपने पंद्रह साल के शासन में राज्य को न सिर्फ अशांत क्षेत्र में बदल दिया, बल्कि खुद के लिए भ्रष्टाचार का स्वर्ग स्थापित कर लिया.ना तो उन्होंने सामाजिक मर्यादा का ख्याल रखा और ना किसी कानून की परवाह की. सत्ता के अपने सहयोगियों से भी वसूली करने में नहीं हिचके. कांति सिंह और रघुनाथ झा जैसे वरिष्ठ सहयोगियों से भी सांसद, मंत्री बनाने के एवज में जमीन लिखवा ली.कहा तो यह भी गया कि लालू प्रसाद यादव ने बिहार के समर्थ लोगों के खिलाफ अपहरण और फिरौती के कारोबार को अपनी देख रख में चलवाया.हालात तो यहां तक पहुंच गई थी कि अपराधियों ने लोगों की अवकाश निधि और पेंशन को हड़पने के लिए भी अपहरण का रास्ता अपनाया. क्या उस बिहार की कोई दुबारा कल्पना करना चाहेगा? कभी नहीं. बिहार के लोगों के मन में हमेशा के लिए यह भाव घर कर गया है कि राजद को सत्ता में लाने के लिए वोट करने का मतलब, फिर से 1990 के बाद के काल खंड में बिहार को पहुंचाना है.

बिहार का हुआ विकास

ऐसा नहीं है कि बिहार, नीतीश के शासन काल में कोई आदर्श राज्य बन गया है.ना ही आर्थिक क्षेत्र में कोई बड़ी प्रगति की है.बड़े उद्योग धंधे भी नहीं लगे हैं. स्थाई रोजगार का भी टोटा है,पर नीतीश कुमार ने बिहार को बिखरने नहीं दिया है. समाज के निचले तबके के जीवन में आसानी पैदा करने की लगातार कोशिश की है. एक से दूसरी जातियों के बीच टकराव पैदा कर राजनीतिक फायदे की कोशिश के बजाय नीतीश शासन ने सबके लिए अवसर का सृजन किया है. जिस नौकरी का लालच देकर सत्ता परिवर्तन का सपना तेजस्वी यादव देख रहे थे, उसी नौकरी के विकल्प को सफलता पूर्वक नीतीश सरकार लागू करती रही है. निविदा पर ही सही हजारों लोगों को शिक्षक की नौकरी नीतीश ने 20 साल पहले देनी शुरू कर दी थी. अब तो लोग सेवानिवृत हो रहे हैं .वे निविदा के कर्मचारी नीतीश कुमार के लिए साधुवाद का भाव रखते हैं.

लालू के शासन वाले और नीतीश के शासन वाले बिहार में किसी को अंतर देखना है, तो बिहार की सड़कों पर निकल जाए.लालू की सरकार के दौरान, व्यापारी, अधिकारी, पेशेवर लोग, खास कर के डॉक्टर पलायन के लिए मजबूर किए गए थे.नितीश के शासन ने ये सब लोग बिना किसी डर के अपना कारोबार और पेशा बढ़ा रहे हैं.कोई ऐसा जिला नहीं होगा, जहां मॉल न खुल गया हो. जहां तनिष्क, टाटा और रिलायंस के शो रूम न हों. किसी भी हाईवे से निकल कर देखिए, नए और बड़े निर्माण होते दिखाई पड़ जाएंगे. किसी चौराहे पर खड़े हो जाइए, महिला पुलिस बहुतायत में दिखाई पड़ जाएंगी. अधिकतर थानेदार, आपको उस जाति वर्ग के मिलेंगे, जिनको राजद अपनी बपौती बताती रहती थी. यह विकास के साथ सामाजिक विश्वास का आगाज है.

नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच के प्रगाढ़ संबंध की उम्र अब तीस साल से अधिक हो गई है.बीच के दो छोटे- छोटे समयावधि को निकाल दे तो यह संबंध लगातार मजबूती की ओर ही बढ़ता गया है. स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने जो नीतीश कुमार के साथ सद्भाव और विश्वास का संबंध स्थापित किया था, उसे लगातार प्रधानमंत्री मोदी आगे बढ़ा रहे हैं.सामाजिक न्याय के सभी प्रयोगों से लेकर बिहार के आर्थिक विकास के लिए पीएम मोदी ने नीतीश कुमार और बिहार कर लिए संसाधनों की कमी नहीं होने दी है.आवास, इलाज और भूख की कमी से निबटने के उपायों में स्वयं प्रधानमंत्री मोदी अपनी और से पहल करते रहे हैं.

इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में बिहार आगे बढ़ रहा

इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में बिहार जिस रफ्तार से आगे बढ़ रहा है, उसे देखकर कोई भी अंदाज लगा सकता है, कि अगले दस साल में कनेक्टिविटी के मामले में बिहार किसी भी राज्य को मात दे सकता है.लगभग सभी बिहार के बड़े शहर हवाई मार्ग से जुड़ने जा रहे हैं.एक साथ दस नए एयरपोर्ट का निर्माण हो रहा है.बिहार को गरीब राज्य कह कर चिढ़ाने वाले लोग एक बार यह जानकारी जरूर कर लें कि बिहार में कितनी ऐसी कंपनियां काम कर रही है, जिनका प्रबंधन किसी और राज्य से होता है.

एनडीए को 200 सीटें यदि बिहार की जनता ने दी है, तो उसके पीछे सिर्फ महिलाओं को दी गई दस हजार की आर्थिक मदद नहीं है.राजद ने तो अपने घोषणा पत्र में तीन गुना राशि 14 जनवरी को देने का ऐलान कर दिया था.हर परिवार को एक नौकरी देने का प्रस्ताव रख दिया था.बिहार की जनता पैसे पर बिक कर वोट करने नहीं गई थी.इतना भारी जनमत वह मोदी और नीतीश में विश्वास जताने के लिए देने गई थी.बिहार के इस चुनाव परिणाम का विश्लेषण इस डायलॉग के साथ पूरा होना चाहिए कि यह लालू परिवार के डर के आगे एनडीए पर विश्वास की जीत है.