तारिक की बांग्लादेश वापसी से उम्मीदें
Bangladesh: भारत सकारात्मक मानसिकता के साथ बांग्लादेश से सहयोग करना चाहता है. इसी महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सार्वजनिक रूप से खालिदा जिया के स्वास्थ्य पर चिंता जताते हुए भारत की ओर से समर्थन की पेशकश को बीएनपी के साथ भारत के रिश्ते में एक सकारात्मक बदलाव की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है.
डॉ अमित कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर, स्कूल ऑफ नेशनल सिक्योरिटी, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ गुजरात, वड़ोदरा
डॉ स्मिता तिवारी
फैकल्टी, कमला नेहरू कॉलेज
Bangladesh: लगभग 17 वर्षों के लंबे निर्वासन के बाद बीएनपी (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान की, जो पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान और बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री खालिदा जिया के सबसे बड़े बेटे भी हैं, स्वदेश वापसी केवल एक नेता की घर वापसी नहीं है, यह बांग्लादेश की राजनीति में एक नये युग की आहट भी हो सकती है. तारिक रहमान 2024 में शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग सरकार के पतन के बाद उत्पन्न हुए राजनीतिक शून्य को भरने के लिए आगे आ रहे हैं और उन्हें संभावित प्रधानमंत्री के रूप में देखा जा रहा है. लेकिन सवाल यह है कि उनकी वापसी बांग्लादेश को स्थिरता की ओर ले जायेगी या वह मुल्क एक बार फिर अनिश्चितता और प्रतिशोध की राजनीति में फंस जायेगा.
तारिक रहमान की स्वदेश वापसी तब बहुत महत्वपूर्ण है, जब अवामी लीग को चुनाव लड़ने से रोक दिया गया है, खालिदा जिया स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही है, कट्टर जमात-ए-इस्लामी एक दशक के प्रतिबंध के बाद मुख्यधारा की राजनीति में वापसी के लिए तैयार है, हिंदू और अन्य अल्पसंख्यकों पर अत्याचार थमने का नाम नहीं ले रहा है, और भारत-बांग्लादेश के रिश्ते अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच चुके हैं. ऐसा माना जा रहा है कि तारिक रहमान की वापसी और उनके शुरुआती भाषण से, जिसमें बांग्लादेश में शांति और सभी समुदायों की सुरक्षा व एकता की बात की गयी है, फिलहाल देश की राजनीतिक स्थिति शांत करने और योजना के अनुसार चुनाव कराने की गति मजबूत करने में मदद मिलेगी. माना यह भी जा रहा है कि कानूनी अड़चनों में फंसे तारिक रहमान के लिए यूनुस सरकार पर, जिस पर अभी जमात-ए-इस्लामी हावी है, पर दबाव बनाना आसान नहीं होगा.
तथ्य यह भी है कि तारिक रहमान के बढ़ते असर से जमात-ए-इस्लामी को नुकसान होता दिख रहा है. इसके बावजूद रहमान का चर्चित भाषण बांग्लादेश में सचमुच बदलाव ला पायेगा या चुनावी हथकंडा साबित होगा, यह तो आने वाले दिनों में ही स्पष्ट होगा. अगर चुनाव तय समय पर होता है, तो सरकार बनाने की दो ही संभावनाएं बनती दिख रही हैं. ज्यादा संभावना यही है कि तारिक रहमान के नेतृत्व में बीएनपी कुछ छोटे इस्लामी संगठनों के सहयोग से सरकार बनाये. दूसरी संभावना जमात के नेतृत्व में कुछ अन्य इस्लामी पार्टियों की गठबंधन सरकार बनने की है. वैसी स्थिति में हिंदुओं समेत अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के मामलों में हताशा और बढ़ेगी. जमात की गतिविधियां हमेशा अशांति और हिंसा के इर्द-गिर्द घूमती रही हैं. उसका मुख्य एजेंडा ही अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और देश का इस्लामीकरण करना है.
जमात और उसके छात्र संगठन बांग्लादेश इस्लामी छात्र शिविर पर हिंदू एवं अन्य अल्पसंख्यकों की हत्या, उनके व्यवसायों को नष्ट करने एवं संपत्ति हड़पने के अनेक आरोप हैं. पाकिस्तान सरकार और इसके खुफिया संगठन आइएसआइ के साथ जमात की साठगांठ भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सतत चुनौती बनी रहेगी. जमात का प्रतिगामी आर्थिक दृष्टिकोण, जिसकी झलक जमात समर्थित अंतरिम यूनुस सरकार में भी दिख रही है, न तो भारत-बांग्लादेश रिश्ते के लिए, न ही क्षेत्रीय भू-राजनीतिक परिदृश्य एवं स्थिरता के लिए सकारात्मक वातावरण का निर्माण कर पायेगा. वह स्थिति चीन के लिए अनुकूल होगी. वैसे में, बांग्लादेश के धीरे-धीरे श्रीलंका की तरह चीन के ऋण जाल में फंसने की आशंका रहेगी.
जहां तक भारत-बांग्लादेश के बीच रिश्तों में पुनः स्थायित्व की बात है, तो दोनों संभावनाएं आदर्श नहीं हैं और शेख हसीना के समय वाली स्थिति की आशा करना निरर्थक होगा. लेकिन अगर तारिक रहमान के नेतृत्व में बीएनपी की सरकार बनती है, तो क्या बांग्लादेश के साथ रिश्ते में भारत स्थायित्व या बेहतरी की आशा कर सकता है? इतिहास को देखें, तो इसका जवाब नकारात्मक है. बेशक बांग्लादेश लौटे तारिक रहमान के भाषण का विश्लेषण करें, तो थोड़ी सकारात्मता दिखती है. लेकिन वह जियाउर रहमान और खालिदा जिया की भारत-विरोधी नीति को ही आगे नहीं बढ़ायेंगे, इसकी क्या गारंटी है?
तारिक रहमान सभी समुदायों की सुरक्षा की बात कर रहे है, धार्मिक और क्षेत्रीय मतभेदों से ऊपर उठकर सभी समुदायों के लिए ‘सुरक्षित’ घर की बात कर रहे हैं. स्वदेश वापसी के साथ उन्होंने ‘बांग्लादेश प्रथम’ की विदेश नीति का प्रतिपादन किया है, जिसका मकसद अवामी लीग की तरह भारत और चीन के साथ रिश्ते में संतुलन बनाये रखना है. साथ ही, भारत और पाकिस्तान में से किसी के साथ गठबंधन करने से बचने का संकेत देने का मतलब है, यूनुस सरकार की पाकिस्तान के साथ साठगांठ वाली नीति से बीएनपी किनारा करना चाहती है. यह रुख बीएनपी की पहले की विदेश नीति में भी संभावित बदलाव का संकेत है.
इसके बावजूद बीएनपी को लेकर भारत की कई आशंकाएं अभी कायम हैं. अगर बीएनपी की सरकार बनती है, तो क्या वह भारत-विरोधी ताकतों को पनाह देने से बचेगी? भारत की आतंकवाद के खिलाफ शून्य सहिष्णुता की नीति पर क्या बांग्लादेश अमल कर पायेगा? बीएनपी की पिछली सरकार पर पूर्वोत्तर भारत के उग्रवादी गुटों को बांग्लादेश में पनाह देने के आरोप लग चुके हैं. चीन और पाकिस्तान पर तारिक रहमान अपनी बात रख चुके हैं. हमें इस विश्वास के साथ आगे बढ़ना होगा कि वह चीन और भारत के बीच संतुलन के रुख पर कायम रहेंगे, और क्षेत्रीय संतुलन चीन के पक्ष में झुका हुआ न हो, इसका ध्यान रखेंगे.
एक महत्वपूर्ण मुद्दा बुनियादी ढांचे तथा कनेक्टिविटी का भी है. शेख हसीना सरकार के दौरान भारत ने बांग्लादेश के माध्यम से ट्रांजिट, पोर्ट कनेक्टिविटी की सुविधाएं प्राप्त की थीं, जो भारत के उत्तर-पूर्व के विकास के साथ नेपाल और भूटान के लिए भी महत्वपूर्ण होने जा रहा है. तारिक रहमान अतीत में इन समझौतों की कई बार आलोचना कर चुके हैं. वह इन इंफ्रास्ट्रक्चर और पोर्ट कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स को जारी रखेंगे या ‘संप्रभुता’ को आधार बनाकर ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश करेंगे? पर यह भी सच है कि अगर बीएनपी की सरकार बनती है, तो उसके प्रतिकूल इतिहास और कुछ संशय के बावजूद भारत उसके साथ सहयोग करने में पीछे नहीं हटेगा.
भारत सकारात्मक मानसिकता के साथ बांग्लादेश से सहयोग करना चाहता है. इसी महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सार्वजनिक रूप से खालिदा जिया के स्वास्थ्य पर चिंता जताते हुए भारत की ओर से समर्थन की पेशकश को बीएनपी के साथ भारत के रिश्ते में एक सकारात्मक बदलाव की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है.(ये लेखकद्वय के निजी विचार हैं)
