डाटा आधारित अर्थव्यवस्था बनता भारत

Indian Economy: विश्व के प्रमुख एआइ मंचों के कुल उपयोगकर्ताओं में भारत की हिस्सेदारी सबसे अधिक है. गूगल आधारित एआइ सेवाओं में भारत की भागीदारी करीब तीस फीसदी मानी जा रही है. अन्य एआइ मंचों पर भी भारत सबसे तेजी से बढ़ने वाला उपभोक्ता आधार क्षेत्र बन चुका है. यानी भारत केवल तकनीक का उपभोक्ता नहीं, बल्कि उसके व्यावहारिक प्रयोग के एक बड़े केंद्र के तौर पर विकसित हो रहा है. अनेक देश एआइ को भय और अनिश्चितता की दृष्टि से देख रहे हैं, पर भारत के पास इसे विकास, समावेशन और वैश्विक नेतृत्व के साधन में बदलने का अवसर है.

By प्रभात सिन्हा | December 31, 2025 6:15 AM

Indian Economy: एआइ आज महज तकनीकी नवाचार नहीं रहा, बल्कि आर्थिक शक्ति, सामाजिक परिवर्तन और वैश्विक प्रतिस्पर्धा का निर्णायक आधार बन चुका है. हालांकि विश्व के अनेक देशों में इसे रोजगार संकट, असमानता और अनियंत्रित स्वचालन के खतरे के रूप में देखा जा रहा है. लेकिन हमारे यहां ऐसा नहीं है. हाल ही में देश के सूचना प्रौद्योगिकी सचिव एस कृष्णन ने यह वक्तव्य दिया है कि भारत में कृत्रिम बुद्धिमत्ता से नौकरियां जाने का खतरा पश्चिमी देशों की तुलना में कम है. यह कथन भारत की सामाजिक, आर्थिक और श्रम संरचना पर आधारित यथार्थपरक आकलन है. भारत की श्रम संरचना पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं से मूलतः भिन्न है. यहां कुल कार्यबल का बड़ा हिस्सा कृषि, निर्माण, परिवहन, सेवा और असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत है, जहां मानवीय हस्तक्षेप अनिवार्य है.

सरकार का स्पष्ट मत है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता मानव श्रम का स्थान नहीं लेगी, बल्कि उसकी क्षमता बढ़ायेगी. विश्व के प्रमुख एआइ मंचों के कुल उपयोगकर्ताओं में भारत की हिस्सेदारी सबसे अधिक है. वैश्विक स्तर पर उपयोग होने वाले संवादात्मक एआइ मंचों के कुल उपयोगकर्ताओं में लगभग एक-तिहाई उपयोगकर्ता भारत से आते हैं. गूगल आधारित एआइ सेवाओं में भारत की भागीदारी करीब तीस फीसदी मानी जा रही है. अन्य एआइ मंचों पर भी भारत सबसे तेजी से बढ़ने वाला उपभोक्ता आधार क्षेत्र बन चुका है. वैश्विक स्तर पर प्रयुक्त अनेक संवादात्मक और विश्लेषणात्मक प्रणालियों में सबसे अधिक उपयोगकर्ता भारत से आते हैं.

अनुमानतः कुल वैश्विक उपयोग का लगभग एक-तिहाई हिस्सा भारत का है. यह तथ्य बताता है कि भारत केवल तकनीक का उपभोक्ता नहीं, बल्कि उसके व्यावहारिक प्रयोग के एक बड़े केंद्र के तौर पर विकसित हो रहा है. भारत में सत्तर करोड़ से अधिक इंटरनेट उपभोक्ता हैं. हमारे देश में दुनिया का सबसे सस्ता इंटरनेट उपलब्ध है. डिजिटल भुगतान, ऑनलाइन सेवाएं और मंच आधारित कार्य प्रणाली ने एक ऐसा वातावरण तैयार किया है, जिसमें नयी तकनीकों को अपनाना सहज हो गया है. बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के एआइ बाजार के तीन वर्षों में 5.5 अरब डॉलर से 17 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है. यह 40 प्रतिशत की वार्षिक चक्रवृद्धि विकास दर दर्शाता है.

नीति आयोग की ‘एआइ फॉर विकसित भारत’ रिपोर्ट, जिसे शीर्ष नीति निर्माता और उद्योगपतियों ने तैयार की है, भारत की आठ फीसदी वार्षिक विकास दर लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एआइ की महत्वपूर्ण भूमिका दर्शाती है. रिपोर्ट में प्रस्तावित लक्ष्य प्राप्ति के लिए बहुसूत्री योजना तैयार की गयी है, जिसमें उद्योगों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का व्यापक उपयोग, बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं में ऋण मूल्यांकन, जोखिम विश्लेषण, धोखाधड़ी की पहचान और ग्राहक सेवा को अधिक सटीक व तेज बना सकती है. विनिर्माण क्षेत्र में मशीनों की पूर्वानुमान आधारित मरम्मत, गुणवत्ता नियंत्रण और आपूर्ति शृंखला प्रबंधन से लागत घटेगी और उत्पादकता बढ़ेगी. कृषि क्षेत्र में मौसम पूर्वानुमान, फसल प्रबंधन और संसाधन उपयोग के माध्यम से किसानों की आय बढ़ाने की संभावना है.

एआइ के अनुप्रयोग को उन्नत बनाने के लिए अनुसंधान और नवाचार को प्रभावी बनाना होगा, जिससे दवा की खोज प्रक्रिया में समय और लागत 60-80 फीसदी तक कम होने की संभावना है, जबकि अनुसंधान लागत में 20-30 फीसदी तक कमी का अनुमान है. भारत पहले ही वैश्विक आइटी सेवाओं का केंद्र रहा है. अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता के माध्यम से यह क्षेत्र उच्च मूल्य वाले उत्पाद या सेवायें विकसित कर सकता है. इन सभी संभावनाओं का आधार भारत की मानव पूंजी है. वर्तमान में देश में लाखों ऐसे पेशेवर हैं, जो किसी न किसी रूप में एआइ से जुड़ा कार्य कर रहे हैं. भविष्य में यह संख्या दोगुनी होने की संभावना है.

वैश्विक स्तर पर उपलब्ध एआइ प्रतिभा में भारत की हिस्सेदारी उल्लेखनीय मानी जाती है. नीति आयोग का सुझाव है कि प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में कार्यरत लोगों को चरणबद्ध ढंग से एआइ कौशल में दक्ष बनाया जाये. इसके लिए विश्वविद्यालयों में विशेष पाठ्यक्रम, ऑनलाइन शिक्षा मंच और उद्योग आधारित प्रमाणन व्यवस्था विकसित करने की आवश्यकता है. यदि कंपनियों को प्रशिक्षण पर कर प्रोत्साहन दिया जाये, तो व्यापक स्तर पर कौशल विकास संभव हो सकता है. राष्ट्रीय एआइ मिशन के अंतर्गत बड़े पैमाने पर निवेश की योजना बनायी गयी है. इसके अंतर्गत उन्नत संगणन अवसंरचना, उच्च क्षमता वाले प्रोसेसर और नये डाटा केंद्र स्थापित किये जा रहे हैं. यह आधारभूत ढांचा अनुसंधान, नवाचार और स्टार्टअप पारिस्थितिकी को मजबूती देगा. दीर्घकालिक अनुसंधान के लिए वित्तीय सहायता की व्यवस्था भी की जा रही है.

नीति निर्माताओं का मानना है कि भारत ‘डाटा आधारित अर्थव्यवस्था’ के वैश्विक केंद्र के रूप में उभर सकता है. फिर भी चुनौतियां कम नहीं हैं. छोटे और मध्यम उद्यमों तक तकनीक की पहुंच सीमित है. ग्रामीण और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों में कौशल का अभाव बना हुआ है. डाटा गोपनीयता, पक्षपात और नैतिकता जैसे प्रश्न भी गंभीर हैं. इन सबका समाधान स्पष्ट नियमों, पारदर्शी ढांचे और सामाजिक संवाद के माध्यम से ही संभव है. नीति आयोग की रिपोर्ट एआइ के विकास में बाधाओं का समाधान करने के लिए एक व्यापक रोडमैप प्रदान करती है, जैसे, 25-30 प्राथमिकता क्षेत्रों में कार्य शिफ्ट का विश्लेषण कर पुनः कौशल विकसित करना.

सिंगापुर के स्किल्सफ्यूचर मॉडल के तर्ज पर कर्मचारियों को जीवनभर सीखने में निवेश के लिए क्रेडिट दिये जायें, गिग और प्लेटफॉर्म कार्यकर्ताओं के लिए कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी 2020 को लागू करने की अनुशंसा, जिससे 2.35 करोड़ गिग कार्यकर्ताओं तक लाभ पहुंचने की संभावना है, छोटी कंपनियों को एआइ अपनाने में सक्षम बनाने की योजना. अनेक देश जहां एआइ को भय और अनिश्चितता की दृष्टि से देख रहे हैं, वहीं भारत के पास इसे विकास, समावेशन और वैश्विक नेतृत्व के साधन में बदलने का अवसर है. देश के पास युवा जनसंख्या है, विशाल डाटा संसाधन हैं, मजबूत डिजिटल डांचा है और अब स्पष्ट नीतिगत दिशा भी है. यदि भारत कौशल विकास, अनुसंधान और उत्तरदायी शासन पर समान रूप से ध्यान देता है, तो एआइ केवल तकनीकी परिवर्तन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय परिवर्तन का आधार बनेगा. तब ‘विकसित भारत’ एक संकल्प नहीं, वैश्विक मंच पर स्थापित एक ठोस वास्तविकता होगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)