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महत्वपूर्ण अभियान

जनमन अभियान का लक्ष्य विशेष रूप से असुरक्षित और विलुप्त होने के जोखिम से जूझ रहे आदिवासी समुदायों का कल्याण है.

विशेष रूप से असुरक्षित आदिवासी समुदायों के लिए चलायी जा रही जनमन योजना की पहली किस्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जारी की गयी है. इस 540 करोड़ रुपये की किस्त से प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के एक लाख लाभार्थी लाभान्वित होंगे. जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर 15 नवंबर को प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महा अभियान (जनमन योजना) का प्रारंभ हुआ था. इस महा अभियान का लक्ष्य विशेष रूप से असुरक्षित और विलुप्त होने के जोखिम से जूझ रहे आदिवासी समुदायों का कल्याण है. इस योजना का बजट लगभग 24 हजार करोड़ रुपये है और यह नौ मंत्रालयों द्वारा संचालित हो रही है. ऐसे समूहों के जीवन स्तर तथा सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बेहतर करने के लिए 11 महत्वपूर्ण हस्तक्षेप किये जा रहे हैं, जिनमें सुरक्षित आवास, स्वच्छ पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, बिजली, सड़क, दूरसंचार, जीवनयापन के लिए समुचित अवसर जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करना शामिल है. अभियान के अंतर्गत पहली किस्त जारी करने के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि सरकार का प्रयास है कि उसकी कल्याण योजनाओं के लाभ से कोई भी वंचित न रहे. उल्लेखनीय है कि 22 हजार से अधिक गांवों में अत्यंत पिछड़े 75 आदिवासी समूहों का निवास है.

ये समूह 18 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में रहते हैं. समूह सरकारी योजनाओं के लाभ से लगभग वंचित रहे हैं. निश्चित रूप से जनमन योजना इन समूहों के लिए आशा की किरण बनकर आयी है. यदि ऐसे जनजातीय समुदाय राष्ट्र की मुख्यधारा से नहीं जोड़े जायेंगे, राष्ट्रीय प्रगति में उनकी सहभागिता नहीं होगी और देश के विकास के लाभ से वे वंचित रहेंगे, तो हमारा विकास अधूरा रह जायेगा. प्रधानमंत्री जनमन योजना से आदिवासी जीवन में गुणात्मक परिवर्तन की आशा है. इस योजना की सबसे बड़ी विशेषता है कि इसे विभिन्न सरकारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों के साथ जोड़ा गया है, जिनमें रोग उन्मूलन, पूर्ण टीकाकरण, आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा, कौशल विकास, सुरक्षित मातृत्व, मातृ वंदना, पोषण आदि से जुड़ी योजनाएं शामिल हैं. वन धन विकास केंद्रों की स्थापना भी जनमन योजना में प्रस्तावित है. इन केंद्रों पर लोग वन उत्पादों को बेच सकेंगे. वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार, देश में उस समय विशेष रूप से असुरक्षित आदिवासियों की जनसंख्या लगभग 28 लाख थी. दो दशक बाद यह संख्या निश्चित ही बढ़ी होगी. ताजा आंकड़े नहीं होने से उनकी जरूरतों और विकास का सही आकलन करने में मुश्किलें आती हैं. इस ओर समुचित ध्यान देने की आवश्यकता है.

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