जल जीवन मिशन के तहत देश के दस करोड़ ग्रामीण परिवारों को नल के जरिये पेयजल मुहैया कराया जा चुका है. वर्ष 2019 में जब इस अभियान का प्रारंभ हुआ था, तब हर छह में से एक परिवार के पास यह सुविधा थी. अब 52 प्रतिशत परिवार अपने घर में ही पीने का साफ पानी पा रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिन पहले इस आशय की घोषणा की. लक्ष्य के अनुसार 2024 तक शेष 9.20 करोड़ ग्रामीण परिवारों को पेयजल उपलब्ध कराया जाना है.
निश्चित रूप से अब तक की उपलब्धि बहुत उत्साहजनक है, लेकिन आगे की राह आसान नहीं है. देश के दुर्गम और पर्वतीय क्षेत्रों में संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने में कठिनाई होना स्वाभाविक है. इस अभियान में राज्यों की महत्वपूर्ण भूमिका है. लक्ष्य पूर्ति के लिए आवश्यक है कि वे तेजी से काम करें और समुचित वित्त की व्यवस्था करें. उल्लेखनीय है कि जल जीवन मिशन के लिए केंद्र सरकार ने 3.5 लाख करोड़ रुपये की भारी राशि देने का प्रावधान किया है.
जिन केंद्रशासित प्रदेशों में विधायिका नहीं है, वहां पूरा खर्च केंद्र द्वारा वहन किया जा रहा है. पूर्वोत्तर के राज्यों और विधायिका वाले केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा खर्च में दस प्रतिशत योगदान का प्रावधान है. अन्य राज्यों में खर्च में केंद्र और राज्य सरकारें बराबर की साझीदार हैं. जानकारों का मानना है कि राज्यों के पास अतिरिक्त धन है और उनमें अगर इच्छाशक्ति है, तो वे पानी जैसी बुनियादी जरूरत की पूर्ति के लिए खर्च कर सकते हैं. पंद्रहवें वित्त आयोग के तहत 26,900 करोड़ रुपये का निश्चित कोष उपलब्ध है, जिसे पानी और स्वच्छता संबंधी परियोजनाओं के लिए पंचायतों को दिया जाना है.
राज्य सरकारों को इसका लाभ उठाना चाहिए. पहले भी पेयजल से संबंधित अनेक अभियान चलाये गये थे, जिनमें 1986 का राष्ट्रीय पेयजल मिशन भी शामिल है, लेकिन गांवों में हर घर तक पेयजल पहुंचाने पर विशेष जोर जल जीवन मिशन में दिया गया है. इस अभियान के अंतर्गत 84 प्रतिशत से अधिक सरकारी स्कूलों (8.65 लाख) तथा 80 प्रतिशत आंगनबाड़ी केंद्रों (8.94लाख) तक पानी पहुंचाया जा चुका है. लगभग 40 लाख किलोमीटर लंबी पाइपलाइन बनाने के इस अभियान में लगभग 30 हजार इंजीनियर व अधिकारी तथा कई हजार ठेकेदार एवं श्रमिक जुटे हुए हैं. अब बड़ी संख्या में ग्रामीण महिलाओं और बच्चों को पानी लाने के लिए बाहर या दूर नहीं जाना पड़ रहा है.
दूषित पानी पीने से भी लोगों को मुक्ति मिली है तथा देश को स्वच्छ व स्वस्थ बनाने के संकल्प को साकार किया जा रहा है. संक्रामक रोगों का सबसे बड़ा कारण दूषित पानी है. ऐसे रोगों से बड़ी संख्या में बच्चों की मौत हमारे लिए गंभीर चुनौती रही है. राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र के एक अध्ययन के अनुसार, स्वच्छ पेयजल उपलब्धता वाले क्षेत्रों में 2019 से 2021 के बीच संक्रामक रोगों में 66 प्रतिशत की कमी आयी है. सभी सरकारों को इस अभियान को पूरा करने में जुट जाना चाहिए.