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जलवायु की चिंता

दशकों से पारिस्थितिकी और जैव विविधता को नुकसान पहुंचाया गया है. इस वैश्विक समस्या के स्थानीय समाधान की दिशा में हमें काम करने की आवश्यकता है.

चरम मौसम की घटनाओं की तीव्रता स्वास्थ्य और सुरक्षा के सामने चुनौती पेश कर रही है. खासकर, दक्षिण एशिया, मध्य-अमेरिका, कैरिबियाई और प्रशांत क्षेत्र के विकासशील छोटे द्वीपों के सामने जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का खतरा अधिक मंडरा रहा है. हालांकि, जलवायु परिवर्तन के खिलाफ साझा प्रयास, वित्त, महत्वाकांक्षा, समर्थन की पारदर्शिता जैसे मसलों पर समृद्ध देशों का रुख सहयोगात्मक नहीं रहा है.

वायुमंडल में अधिक कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार होने के बावजूद ये देश अपने दायित्वों को अस्वीकार करते हैं, कुछ तो मानवजनित जलवायु परिवर्तन से भी इनकार करते हैं. तथ्य यह है कि हम गैर-बराबरी और अन्यायपूर्ण दुनिया में रहते हैं. जलवायु परिवर्तन युवाओं के स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक स्थायित्व के लिए बड़ा खतरा है, खासकर विकासशील देशों में, जहां युवाओं की बड़ी आबादी रहती है.

जलवायु परिवर्तन अफ्रीका, एशिया, लातिन अमेरिका में खाद्य सुरक्षा के सभी पहलुओं को प्रभावित करेगा, जहां युवा आबादी एक अरब से अधिक है. उपभोक्ता व्यवहार और जलवायु परिवर्तन के प्रति दृष्टिकोण को मापने वाले एक सर्वे में मात्र 48 प्रतिशत भारतीय जलवायु परिवर्तन को गंभीर पर्यावरणीय समस्या मानते हैं. मिंटेल सस्टेनबिलिटी बैरोमीटर- 2021 सर्वे में 16 देशों- ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, आयरलैंड, इटली, जापान, पोलैंड, स्पेन, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, ब्रिटेन और अमेरिका को शामिल किया गया.

दक्षिण कोरिया के 70 प्रतिशत लोग जलवायु परिवर्तन को गंभीर मुद्दा मानते हैं. वनों की कटाई, जैव विविधता या पर्यावरण ह्रास और हानिकारक रसायनों के इस्तेमाल को लोग मुख्य समस्या के तौर पर देखते हैं. हालांकि, दुनिया के अनेक हिस्सों में जलवायु सक्रियता जागरूकता बढ़ा रही है और जीवाश्म ईंधनों के प्रति लोग जागरूक हो रहे हैं.

नागरिक समाज समूहों, गैर-सरकारी संस्थाओं, अकादमिक स्तर पर विचारों और क्रियान्वयन के प्रति सक्रिय बहस है. लेकिन, वैकल्पिक विचारों को नीतिगत प्रक्रियाओं के साथ कैसे जोड़ा जाये, यह स्पष्ट नहीं है. मौजूदा दौर में इसकी प्रासंगिकता बढ़ी है. दशकों से पारिस्थितिकी तंत्र, वन, जल निकाय और जैव विविधता को नुकसान पहुंचाया गया है. इस वैश्विक समस्या के स्थानीय तौर पर समाधान की दिशा में हमें काम करने की आवश्यकता है.

कई अध्ययनों में चरम घटनाओं के कारण बड़े स्तर पर आर्थिक और पारिस्थितिकीय नुकसान का जिक्र होता रहता है. मौसम की चरम घटनाओं, विशेषकर बढ़ते तापमान का खतरा भारत पर अधिक है. जलवायु संकट से यह स्थिति असहनीय बन सकती है. मौसम की चरम घटनाओं के कारण होनेवाली कुल मौतों में 12 प्रतिशत से अधिक गर्मी के कारण होती हैं. जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर गंभीरता का असर, भारत के विकास के रूप में भी दिखेगा. ऐसे में जरूरी है कि विकास की सभी योजनाओं में जलवायु के प्रति सकारात्मक सोच को अभिन्न अंग के तौर पर शामिल किया जाये.

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