हिंदी का विरोध दुर्भाग्यपूर्ण है

इस वर्ष हिंदी दिवस पर गृह मंत्री अमित शाह के द्वारा अपने ट्वीट में राष्ट्रीय एकता की डोर को मजबूत करने तथा विश्व में भारत की पहचान को स्थापित करने में राजभाषा हिंदी के महत्व को रेखांकित करने पर जिस प्रकार कुछ क्षेत्रीय नेताओं और लोगों ने विवाद खड़ा करने की कोशिश की, वह अत्यंत […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 16, 2019 6:52 AM
इस वर्ष हिंदी दिवस पर गृह मंत्री अमित शाह के द्वारा अपने ट्वीट में राष्ट्रीय एकता की डोर को मजबूत करने तथा विश्व में भारत की पहचान को स्थापित करने में राजभाषा हिंदी के महत्व को रेखांकित करने पर जिस प्रकार कुछ क्षेत्रीय नेताओं और लोगों ने विवाद खड़ा करने की कोशिश की, वह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है.
जब कभी इस देश में एक राष्ट्रभाषा की आवश्यकता पर विमर्श खड़ा करने की कोशिश की गयी, उसका राजनीतिक कारणों से विरोध किया गया. 1965 में दक्षिण भारत में उग्र हिंदी विरोधी आंदोलनों के पीछे भी क्षेत्रीय राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं ही थी.
हमें चीन, जापान, रूस, जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों से सीख लेनी चाहिए, जिन्होंने अपनी-अपनी राष्ट्रीय भाषाओं को सहेजते हुए विकास के नये-नये आयाम गढ़े हैं. अच्छी बात यह है कि तमाम विरोधाभासों के बावजूद कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हिंदी भाषा की स्वीकार्यता दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है.
चंदन कुमार, देवघर

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