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बिना खाये-पीये लगातार 12 घंटे तक उड़कर झारखंड पहुंचते हैं ये परिंदे

हिमालय की तराई और ठंडे देशों के परिंदों को झारखंड के जमशेदपुर और आसपास के मनोहारी दृश्य हमेशा से आकर्षित करते रहे हैं. प्रत्येक वर्ष यहां बड़ी संख्या में परदेसी परिंदे भोजन-पानी की तलाश में हजारों किलोमीटर का सफर तय कर पहुंचते हैं. इनकी खासियत की बात करें तो ये एक बार जिस जगह पर […]

हिमालय की तराई और ठंडे देशों के परिंदों को झारखंड के जमशेदपुर और आसपास के मनोहारी दृश्य हमेशा से आकर्षित करते रहे हैं. प्रत्येक वर्ष यहां बड़ी संख्या में परदेसी परिंदे भोजन-पानी की तलाश में हजारों किलोमीटर का सफर तय कर पहुंचते हैं. इनकी खासियत की बात करें तो ये एक बार जिस जगह पर आते हैं, दोबारा उसी स्थान पर निश्चित समय पर पहुंचते हैं. इस बार भी ये परदेसी मेहमान अपने शहर और आसपास के इलाके में डेरा जमा चुके हैं. आइए जानते हैं कि आखिर ये क्यों छोड़ देते हैं अपना घर और आतें हैं झारखंड में…

बर्फ में चला जाता है भोजन
ये प्रवासी पक्षी जिस समय जमशेदपुर और आसपास के इलाके में आते हैं, उस समय ट्रांस हिमालय एरिया का तापमान शून्य डिग्री से नीचे माइनस में चला जाता है. इस वजह से इन पक्षियों के आहार, जैसे कीड़े-मकोड़े आदि बर्फ के अंदर चले जाते हैं. ऐसे में इन्हें भोजन मिलना मुश्किल हो जाता है. सर्दी में भूख अधिक लगती है और दिन भी छोटा होता है. इस समय वहां भोजन की तलाश नहीं की जा सकती. भोजन की खोज में ही ये दूर की उड़ान भरते हैं.
रातभर भरते हैं उड़ान
प्रवासी जलीय पक्षी काफी मजबूत होते हैं. खासकर छोटे पक्षी. छोटे पक्षी रात में ही उड़ान भरते हैं. इसकी खासियत यह है कि एक बार उड़ाना शुरू करने के बाद ये अगली सुबह ही दम लेते हैं. इस दौरान ये न कहीं रुकते हैं और न ही कहीं भोजन लेते हैं. इस प्रकार बिना खाये-पीये लगातार करीब 12 घंटे तक उड़ान भरते हैं. प्रवास से पहले ये पक्षी हाइपरफैगिया फेज में चले जाते हैं. इसके चलते इनके हार्मोन लेवल में बदलाव आ जाता है. शरीर में फैट जमा होने लगता है और वजन बढ़ जाता है. प्रवास के लिए उड़ान भरते समय इसी फैट से इन्हें ऊर्जा मिलती है.
होता है गोल ओरिएंटेड नेविगेशन
ये पक्षी जहां से चलते हैं उसे ब्रीडिंग साइड और जहां प्रवास करते हैं उसे विंटर साइड कहा जाता है. ब्रीडिंग साइड से विंटर साइड के मूवमेंट को पिरियोडिकली मूवमेंट कहा जाता है. ये ब्रीडिंग साइड से गोल ओरिएंटेड नेविगेशन करते हैं. यानी गंतव्य स्थान तक पहुंचने के दौरान पिछले साल जहां-जहां रुके, इस बार भी वहीं-वहीं रुकते हैं. प्रवास के दौरान ये एक बार जहां आते हैं, अगले साल भी वहां आते हैं. अन्य जगह हरगिज नहीं जाते. लेकिन लोकल माइग्रेशन करने में इन्हें परहेज नहीं है. कहने का मतलब भोजन की खोज में शहर में ही एक तालाब से दूसरे तालाब जाते रहते हैं.
छोटे पक्षी होते हैं मजबूत
उड़ान भरने वाले छोटे-बड़े हर आकार के पक्षी होते हैं. बड़े पक्षी दिन में उड़ान भरते हैं. बड़ा होने के कारण उन्हें रास्ते में किसी शिकारी, जैसे बाज आदि का डर नहीं लगता. कहां भोजन मिलेगा, इन्हें मालूम होता है. इसलिए ये रास्ते में रुक भी जाते हैं. बड़े पक्षी रात में विश्राम करते हैं. अगली सुबह फिर उड़ान भरते हैं. जबकि छोटे पक्षी को बाज आदि का खतरा रहता है. इसलिए ये रात में ही उड़ान भरते हैं. इन छोटे पक्षियों को फिंच कहा जाता है.
तैरते हुए सो सकते हैं
ये प्रवासी दिन में कभी भी दिखायी दे सकते हैं. ऐसे जलाशय में जाना पसंद करते हैं जहां किसी तरह का व्यवधान न हो. किसी तरह के शोरगुल व अन्य खतरे का अंदाजा होने पर ये उस जगह को छोड़ देते हैं. भोजन के बाद प्राय: आसपास के पेड़ों पर ही विश्राम करते हैं. कुछ पक्षी ऐसे भी होते हैं जो दिनभर भोजन के बाद रात में भी पानी में रह जाते हैं. ये पानी में तैरते हुए सो सकते हैं.
मध्य मार्च में लौट जाते हैं
जब तापमान 35 डिग्री सेल्सियस के आसपास होने लगता है तब ये लौटने लगते हैं. यह मध्य मार्च का समय होता है. इस समय तक ट्रांस हिमालय आदि एरिया में बर्फ पिघलने लगती है. यहां का तापमान भी थोड़ा अधिक हो जाता है. इन जलीय पक्षियों के भोजन अब मिलने लगता है. सो वापस नेटिव प्लेस में लौट जाना ही ये मुनासिब समझते हैं.

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