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रांची : सीआइडी अफसरों की मनमानी के कारण जेल में रहे चार निर्दोष

रांची : रांची रेल थाना में दर्ज केस में सीआइडी अफसरों की मनमानी, अदूरदर्शिता और झूठी वाहवाही लूटने के कारण चार निर्दोष व्यक्ति कई माह तक जेल में रहे. इस बात का खुलासा रेल आइजी सुमन गुप्ता की रिपोर्ट से हुआ है. रेल आइजी ने सीआइडी एडीजी और रेल एडीजी के पास रिपोर्ट भेज दी […]

रांची : रांची रेल थाना में दर्ज केस में सीआइडी अफसरों की मनमानी, अदूरदर्शिता और झूठी वाहवाही लूटने के कारण चार निर्दोष व्यक्ति कई माह तक जेल में रहे.
इस बात का खुलासा रेल आइजी सुमन गुप्ता की रिपोर्ट से हुआ है. रेल आइजी ने सीआइडी एडीजी और रेल एडीजी के पास रिपोर्ट भेज दी है. रिपोर्ट के अनुसार सीता स्वांसी की शिकायत पर रांची रेल थाना में 23 जून 2017 को मामला दर्ज किया गया था.
केस में प्राथमिकी अभियुक्त जिलानी लुगुन, लाल सिंह मुंडा, पिंटू भुइयां और नारायण भुइयां को बनाया गया था. सभी पर नाबालिग लड़कियों को काम कराने के नाम पर दिल्ली और तमिलनाडु ले जाने का आरोप था. मानव तस्करी की सूचना पर घटना के दिन सीआइडी के तत्कालीन डीएसपी केके राय के नेतृत्व में तत्कालीन इंस्पेक्टर मो नेहाल, इंस्पेक्टर उमेश ठाकुर ने रांची स्टेशन पर छापेमारी की थी.
तीनों ने रेल थाना पहुंच कर ट्रैफिकिंग के संबंध में रेल थाना प्रभारी और तत्कालीन चुटिया थाना प्रभारी ब्रज किशोर भारती के अलावा आरपीएफ पोस्ट प्रभारी रांची को बुलाया. छापेमारी के बाद रेस्क्यू टीम ने कथित पीड़िता की मेडिकल जांच कराये बिना 12 लड़के-लड़कियों को बालिग बता कर मुक्त कर दिया.
वहीं, पांच लड़कियों को नाबालिग बता कर केस दर्ज कराया गया. जबकि छापेमारी टीम द्वारा किसी अभियुक्त तथा पीड़िता को दिल्ली जाने वाली ट्रेन से नहीं पकड़ा गया था. सभी टिकट काउंटर के सामने हॉल में बैठे थे. उनके पास दिल्ली जाने का टिकट भी नहीं था. 22 जून को छापेमारी के दौरान कोई वर्दी में भी नहीं था. घटना के दौरान मौजूद नहीं रहनेवाली दीया सेवा संस्थान की सीता स्वांसी को अगले दिन बुलाकर केस दर्ज कराया गया.
मानव तस्करी का केस दर्ज कराये जाने के बावजूद सुधार गृह में मेडिकल जांच होने पर पीड़िता को बालिग पाया गया. रेल आइजी ने रिपोर्ट में लिखा है कि समीक्षा में पाया गया कि केस को सुपरविजन करने वाले तत्कालीन रेल डीएसपी क्रिस्टोफर केरकेट्टा और तत्कालीन रेल एसपी जमशेदपुर अंशुमन कुमार द्वारा साक्ष्यों की समीक्षा किये बिना केस को सत्य करार दिया था.
कथित रेस्क्यू करनेवाले पुलिस अफसरों ने केस में वादी न बनकर एनजीओ की सचिव को बुला कर वादी बनवाया. रिपोर्ट के अनुसार केस में सीता स्वांसी को शिकायतकर्ता बनाने पर छापेमारी दल में शामिल पुलिस पदाधिकारियों का उद्देश्य संदिग्ध होने के साथ उनकी मंशा पर भी प्रश्न चिह्न लगता है.
केस के अनुसंधानक ने पीड़िता के घर जाकर उनके परिजनों और आस-पास के लोगों का बयान दर्ज करने के बजाय पीड़िता के परिजनों का बयान फोन पर लिया और थाना में बैठे-बैठे केस डायरी तैयार की. केस के अनुसंधानक तत्कालीन रेल थाना प्रभारी इंस्पेक्टर अनिल कुमार सिंह को निलंबित किया जा चुका है.

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