जब पिछले बजट में चुनावी बांड की योजना घोषित की गयी थी, तो एक अलग ही उत्साह देखने को मिला था. व्यवस्था में काले धन को दूर करने और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के एक अभूतपूर्व कदम के रूप में स्वागत किया गया था.
बहरहाल, वित्त मंत्री का यह दावा है कि यह बांड फंडों के वास्तविक प्रवाह के आलोचनाओं को शांत कर देंगे, लेकिन बांडों में आदाता का नाम नहीं शामिल करने के कारण यह दावा अधूरा दिखता है. यह दर्शाता है कि राजनीतिक दलों का नैतिक, चुनावी प्रथाओं के पालन पर ध्यान दिये बिना, चुनावी फंडिंग के मुद्दे पर आत्महित पर अधिक केंद्रित है.
जब तक राजनीतिक दलों के संचालन को सूचना का अधिकार अधिनियम के दायरे के तहत लाने के लिए कोई राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखाई जाती है, तब तक कॉरपोरेट जगत और पारस्परिक लाभ के लिए काम करने वाले राजनीतिक दलों के बीच के संबंध अस्पष्ट ही रहेंगे और यह धुंध नहीं हटेगी.
दीपक प्रसाद, चाईबासा