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जानिये, आखिर क्यों बढ़ती है वित्त मंत्रालय आैर रिजर्व बैंक के बीच तकरार…?

नयी दिल्लीः वित्त मंत्रालय आैर रिजर्व बैंक के संबंधों में एक बार फिर तकरार बढ़ गया है. इसकी अहम वजह रिजर्व बैंक की आेर से बुधवार को पेश मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो रेट को कम नहीं किया जाना है. इस बीच सवाल यह भी पैदा होता है कि आखिर, रेपो रेट की दरों में […]

नयी दिल्लीः वित्त मंत्रालय आैर रिजर्व बैंक के संबंधों में एक बार फिर तकरार बढ़ गया है. इसकी अहम वजह रिजर्व बैंक की आेर से बुधवार को पेश मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो रेट को कम नहीं किया जाना है. इस बीच सवाल यह भी पैदा होता है कि आखिर, रेपो रेट की दरों में कटौती को लेकर सरकार आैर रिजर्व बैंक के बीच तकरार बढ़ी क्यों? इसकी अहम वजह यह है कि सरकार या वित्त मंत्रालय रेपो रेट में कटौती के जरिये अर्थव्यवस्था के कमजोर क्षेत्रों को आर्थिक तौर पर मजबूत करने आैर उसे बढ़ावा देना चाहती है, लेकिन रिजर्व बैंक अपनी नीतियों आैर अर्थव्यवस्था की वर्तमान आैर वैश्विक स्थिति के मद्देनजर रेपो रेट में कटौती नहीं करने का कठोर फैसला किया है.

इस खबर को भी पढ़ेंः रिजर्व बैंक आैर सरकार में फिर बढ़ी तनातनी, वित्त मंत्रालय के साथ एमपीसी ने नहीं की बैठक

दरअसल, नोटबंदी के बाद से देश की अर्थव्यवस्था में हुए विकास के बावजूद कमजोर बुनियादी ढांचा, विनिर्माण क्षेत्र, आैद्योगिक उत्पादन, सेवा क्षेत्र आैर मुख्य रूप से ऋण बाजार जैसे आर्थिक क्षेत्रों को मजबूत करने आैर उन्हें बढ़ावा देने के लिए रेपो रेट में कटौती करने की उम्मीद कर रही थी. हालांकि, महंगार्इ के मामले में सरकार यह दावा करती रही है कि देश में खुदरा आैर थोक महंगार्इ में कमी है, लेकिन रिजर्व बैंक ने अपनी नीतियों आैर आर्थिक प्रतिबद्घताआें के बीच रेपो रेट में कटौती नहीं करने का फैसला किया है. हालांकि, वित्त मंत्रालय इन्हीं अहम क्षेत्रों पर चर्चा करने के लिए मौद्रिक नीति समीक्षा समिति के साथ बैठक करना चाहता था, जिसे करने से समिति ने इनकार कर दिया.

वहीं, सरकार आैर रिजर्व बैंक के बीच तकरार की एेसी स्थिति पैदा होने का कोर्इ नया मामला नहीं है. इसके पहले भी जब 2008 में पूरी दुनिया आर्थिक महामंदी के दौर से गुजर रहा था आैर भारत की अर्थव्यवस्था पटरी पर सरपट दौड़ रही थी, तब भी यूपीए की सरकार रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव पर रेपो रेट में कटौती करने का दबाव बनाती हुर्इ नजर आ रही थी. उस समय भी रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर डी सुब्बाराव ने सरकार के दबाव के बावजूद रेपो रेट में कटौती नहीं करने का कठोर फैसला किया था. हालांकि, उनके इस फैसले के बाद यूपीए सरकार के कार्यकाल में वित्त मंत्री पी चिदंबरम आैर उनके पहले प्रणब मुखर्जी की नाराजगी का सामना भी करना पड़ा था.

गौरतलब यह भी है कि इस समय देश आैर दुनिया की आर्थिक स्थिति 2008 की तरह नहीं है. बावजूद इसके सरकार रिजर्व बैंक से अर्थव्यवस्था की कमजोर कड़ी को सुदृढ़ करने के लिए रेपो रेट में कटौती की उम्मीद कर रही है. यही वजह है कि हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के छात्र रहे रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने अपने पूर्ववर्ती गवर्नर रघुराम राजन के नक्शेकदम पर चलते हुए रेपो रेट में कटौती नहीं करने का फैसला किया है. इतना ही नहीं, इसके पहले अर्थव्यवस्था की कमजोर कड़ी को मजबूत करने के नाम पर देश की सरकारें पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के कार्यकाल में भी रेपो रेट घटाने का दबाव बनाती रही हैं, लेकिन उन्होंने भी रेपो रेट के मामले में रिजर्व बैंक की नीतियों आैर आर्थिक प्रतिबद्घताआें के अनुरूप फैसले किये.

रिजर्व बैंक की आेर से पेश मौद्रिक समीक्षा नीति के बाद मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियम ने कहा कि वर्तमान आर्थिक स्थिति में रिजर्व बैंक के लिए मौद्रिक नीति में नरमी लाने की बडी गुंजाइश थी. महंगार्इ दर का हवाला देते हुए नीतिगत दर को यथावत रखने के रिजर्व बैंक के फैसले पर उन्होंने कि हम रिजर्व बैंक के विचार एवं फैसले का सम्मान करते हैं, लेकिन मैं मुद्रास्फीति तथा वृद्धि परिदृश्य को लेकर अपना तकनीकी आकलन देना चाहता हूंं.

सुब्रमणियम ने कहा कि बेहतर वैकल्पिक वृहत-आर्थिक आकलन है. इस दृष्टिकोण से न केवल खुदरा महंगार्इ अब तक लक्ष्य से काफी कम है, बल्कि विनिर्माण वस्तुओं की मुद्रास्फीति में भी काफी गिरावट आयी है. इस नजरिये से रिजर्व बैंक का मुद्रास्फीति के अनुमान में व्यापक रूप से चूक रही है और प्रणालीगत तौर पर उसका अनुमान एकतरफा ऊंचा रहा है. परिदृश्य (ब्याज में) नरमी का है और न कि तीव्र वृद्धि का.

सुब्रमणियम ने कहा कि उल्टे इस समय वास्तविक नीतिगत ब्याज दर और कडी हुई है तथा बढी है. उन्होंने कहा कि निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि जो आर्थिक स्थिति और परिदृश्य है, उसमें मौद्रिक नीति में नरमी जरूरी थी.

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