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क्या भारत में देर से मिलता है रेप पीड़िताओं को इंसाफ़?

<figure> <img alt="महिलाएं" src="https://c.files.bbci.co.uk/3B0A/production/_110041151_75d28273-e44b-4ed6-b1e6-6aef539a38b9.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में रेप और हत्या के मामले में अभियुक्त बनाए गए चार युवकों की कथित पुलिस एनकाउंटर में हुई मौत के बाद भारत का न्याय तंत्र एक बार फिर सुर्खियों में है.</p><p>साल 2017 में जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़, भारत में हर रोज़ […]

<figure> <img alt="महिलाएं" src="https://c.files.bbci.co.uk/3B0A/production/_110041151_75d28273-e44b-4ed6-b1e6-6aef539a38b9.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में रेप और हत्या के मामले में अभियुक्त बनाए गए चार युवकों की कथित पुलिस एनकाउंटर में हुई मौत के बाद भारत का न्याय तंत्र एक बार फिर सुर्खियों में है.</p><p>साल 2017 में जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़, भारत में हर रोज़ औसतन 90 से अधिक रेप के मामले दर्ज किए जाते हैं.</p><p>हालांकि इनमें से बहुत ही कम रेप पीड़ित अपने साथ दुष्कर्म करने वाले दोषियों को सज़ा पाते हुए देख पाती हैं. </p><p>इस बीच हर साल रेप की घटनाओं के दर्ज होने का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है.</p><p>हमने इन्हीं आंकड़ों को खंगाला और यह जानने की कोशिश की कि भारत में रेप की घटनाएं बाक़ी देशों के मुक़ाबले कितनी ज़्यादा या कम हैं.</p><figure> <img alt="प्रदर्शन" src="https://c.files.bbci.co.uk/892A/production/_110041153_b4be826e-c2ac-4c85-bfbd-3b3cc138bba8.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>न्याय तंत्र में क्या हो रहा है?</h3><p>भारत की राजधानी दिल्ली में साल 2012 के अंतिम महीने में एक मेडिकल छात्रा के साथ हुए गैंग रेप के बाद भारत में महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न की तरफ सभी का ध्यान जाने लगा.</p><p>सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इस घटना के बाद बहुत अधिक संख्या में पुलिस के पास रेप के मामले दर्ज होने लगे. साल 2012 में जहां रेप के मामले 25 हज़ार से कम रिपोर्ट हुए तो वहीं साल 2016 में इनकी संख्या बढ़कर 38 हज़ार हो गई.</p><img class="idt-cloud-graphic" src="https://ichef.bbci.co.uk/news/amp/idt2/470/c87ff61c-86be-48eb-b46c-af0cd6a4b9fe" alt="भारत में दर्ज होने वाले रेप के मामले. . ."/><p>साल 2017 के प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, उससे पिछले साल कुल 32,559 रेप के मामले पुलिस में दर्ज हुए.</p><p>एक तरफ जहां पुलिस के रजिस्टर में रेप के मामलों के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं वहीं देश की अदालतों में इन सभी मामलों का फ़ैसला करने का काम भी बढ़ रहा है.</p><p>साल 2017 के अंत तक अदालत में 1 लाख 27 हज़ार 800 से अधिक मामले लंबित पड़े थे. उस साल सिर्फ 18 हज़ार 300 मामलों पर ही अदालतें फ़ैसला सुना सकी थीं.</p><p>अगर साल 2012 में देखें तो अदालतों में 20 हज़ार 660 मामलों का निपटारा किया था जबकि उस साल के अंत तक 1 लाख 13 हज़ार मामले लंबित रह गए थे.</p><figure> <img alt="प्रतीकात्मक तस्वीर" src="https://c.files.bbci.co.uk/CC5A/production/_110041325_8064d47d-095c-4b59-9acd-f041ad7b1083.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>कितनी जल्दी मिलता है न्याय?</h3><p>अगर अदालतों में न्याय मिलने की दर देखी जाए तो साल 2002 से 2011 के बीच सभी मामलों में यह लगभग 26 प्रतिशत तक रही थी.</p><p>हालांकि, साल 2012 के बाद अदालतों में फ़ैसले मिलने की दर में कुछ सुधार देखने को ज़रूर मिला लेकिन इसके बाद साल 2016 में यह दर दोबारा गिरकर 25 प्रतिशत पर आ गई. </p><p>साल 2017 में यह दर 32 प्रतिशत से कुछ ऊपर रही.</p><p>जिस तरह से अदालतों में मामले साल-दर-साल आगे बढ़ते जाते हैं उससे कई बार पीड़ित और चश्मदीदों को धमकाने और लालच देकर बयान बदलने की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं.</p><img class="idt-cloud-graphic" src="https://ichef.bbci.co.uk/news/amp/idt2/470/2f1677ee-75cd-41e0-8404-4fa2aeb3f7a3" alt="रेप के मामलों में फ़ैसले आने की दर. . ."/><p>यह बात तब और ज़्यादा हो जाती है जब किसी मामले में उच्च पद पर बैठे शख़्स पर या उनके क़रीबियों पर आरोप लगे हों.</p><p>उदाहरण के लिए स्वघोषित धार्मिक गुरु आसाराम बापू को साल 2018 में अपनी आश्रम की एक युवती के साथ यौन दुर्व्यवहार का दोषी पाया गया था. इससे पहले इस मामले से जुड़े कम से कम नौ चश्मदीदों पर हमले हो चुके थे.</p><p>पिछले साल सरकार ने कहा था कि वह एक हज़ार अतिरिक्त फ़ास्ट ट्रैक अदालतों का गठन करेगी जिससे लंबित पड़े रेप के मामलों को जल्दी निपटाया जा सकेगा.</p><h3>बाक़ी देशों में कैसे निपटाए जाते हैं रेप के मामले?</h3><p>भले ही हमें लगता हो कि भारत में रेप के मामलों पर फ़ैसला आने में बहुत साल लग जाते हैं लेकिन दुनिया के दूसरे विकासशील देशों में यह दर भारत से भी कम है.</p><p>एक रिसर्च के अनुसार साल 2017 में दक्षिण अफ़्रीका की आदलतों में रेप से जुड़े सिर्फ़ आठ मामलों पर ही फ़ैसला सुनाया गया था.</p><p>वहीं एक महिला अधिकार समूह की साल 2018 की स्टडी के मुताबिक़, बांग्लादेश में यह दर बहुत ही कम है.</p><p>जिन देशों की अदालतों में फ़ैसले देने की दर ऊंची है वहां भी यह चिंता जताई जाती है कि वहां बहुत कम मामले अदालतों तक पहुंचते हैं. यही वजह है कि रेप से जुड़े मामले भी कम रिपोर्ट होते हैं.</p><p>ब्रिटेन के कई हिस्सों में पुलिस में दर्ज होने वाले रेप के मामलों और अदालत तक पहुंचने वाले मामलों की संख्या में बहुत अंतर देखने को मिलता है.</p><figure> <img alt="प्रदर्शन" src="https://c.files.bbci.co.uk/E30E/production/_109962185_hi058328078-1.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> </figure><p>इस साल इंग्लैंड और वेल्स में बलात्कार के मामलों के कोर्ट तक पहुंचने का अनुपात पिछले एक दशक में सबसे कम रहा. माना जा रहा है कि इसका कारण यह है कि अभियोजक चाहते हैं कि 60 प्रतिशत के कन्विक्शन रेट यानी दोषसिद्धी की दर को बनाए रखें. </p><p>बलात्कार और यौन हिंसा के मामलों में ख़राब कन्विक्शन रेट के लिए एमनेस्टी इंटरनेशनल ने स्वीडन और उत्तरी यूरोप के अन्य देशों की भी आलोचना की थी. ऐसा तब है जब ये देश लैंगिक समानता के मामले में कई वैश्विक सर्वे में अच्छा प्रदर्शन कर चुके हैं.</p><p>मगर ध्यान देने लायक बात यह भी है कि हर देश में बलात्कार की परिभाषा, पुलिस के तौर-तरीके और न्यायिक प्रक्रिया भी अलग है.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.</strong><strong>)</strong></p>

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