Psychology Tips: रात होते ही क्यों बेकाबू हो जाते हैं आपके इमोशंस? जानें दिमाग का वह सीक्रेट जिसे आपको कोई नहीं बताता!

Psychology Tips: अगर आप रात के समय ज्यादा इमोशनल हो जाते हैं या फिर या फिर अपनी थिंकिंग को कंट्रोल में नहीं रख पाते हैं तो इस आर्टिकल को जरूर पढ़ें. इसे पढ़ने के बाद आपको समझ में आ जाएगा कि आखिर ऐसा होता क्यों है.

By Saurabh Poddar | August 22, 2025 4:49 PM

Psychology Tips: क्या आपने गौर किया है कि जैसे-जैसे रात गहरी होती जाती है, वैसे-वैसे हमारी थिंकिंग और इमोशंस बदलने लगते हैं? दिनभर जिन बातों पर ध्यान भी नहीं जाता, वही बातें रात के समय काफी ज्यादा याद आने लग जाती हो. कभी पुरानी बातें याद आने लगती है तो कभी-कभी बिना वजह उदासी या इमोशन हमारे ऊपर हावी हो जाते हैं. ऐसा क्यों होता है कि रात हमें ज्यादा सेंसिटिव बना देती है? क्या यह सिर्फ रात के सन्नाटे का असर है, या फिर इसके पीछे हमारे ब्रेन और साइकोलॉजी से जुड़े कुछ गहरे सीक्रेट्स भी छुपे हुए हैं? आइए जानते हैं इस मजेदार कारण के बारे में विस्तार से जानते हैं.

दिनभर की थकान का दिमाग पर असर

एक्सपर्ट्स के अनुसार दिनभर हमारा दिमाग बहुत सारी एक्टिविटीज और कामों में उलझा रहता है. जब रात होती है, तो शरीर थका हुआ होता है और दिमाग रिलैक्स मोड में चला जाता है. थके हुए दिमाग में इमोशंस पर कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है, इसलिए लोग रात में ज्यादा सेंसिटिव महसूस करने लगते हैं.

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अकेलापन और रात की शांति

रात का समय दिन की तुलना में ज्यादा शांत और अकेलापन भरा होता है. इस अकेलेपन और शांति में इंसान खुद के साथ ज्यादा समय बिताता है. ऐसे में दिमाग में दबे हुए थॉट्स, पुरानी बातें और इमोशंस बाहर आने लगती हैं. यही वजह है कि रात में हम चीजों को ज्यादा गहराई से सोचते और फील करते हैं.

हार्मोन और नींद का कनेक्शन

एक्सपर्ट्स के अनुसार हमारे शरीर में कुछ हार्मोन होते हैं जो नींद और मूड को अफेक्ट करते हैं. जैसे-जैसे रात गहरी होती जाती है, मेलाटोनिन हार्मोन नींद लाने लगता है और दिमाग की एनर्जी कम होती जाती है. ऐसे समय पर इंसान पॉजिटिविटी से ज्यादा निगेटिव इमोशंस को फील करता है, ऐसा होने की वजह से हमारे ऊपर इमोशंस ज्यादा हावी होने लग जाते हैं.

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सोशल मीडिया या लेट-नाइट स्क्रॉलिंग

आजकल ज्यादातर हम देर रात को सोशल मीडिया पर समय बिताते हैं. इस दौरान हम दूसरों की लाइफ देखकर अपनी लाइफ से कम्पेयर करने लगते हैं. यह कम्पेरिजन अक्सर उदासी, अकेलेपन और इमोशनल फीलिंग्स को बढ़ा देती है.

पुरानी यादों का असर

रात में जब आसपास कोई मूवमेंट नहीं होती तो दिमाग के पास सोचने के लिए ज्यादा स्पेस और समय होता है. इसी समय दिमाग पुरानी चीजों को याद करता है और उन चीजों को दोहराने लगता है जो पूरी नहीं हो सकी. ये मेमोरीज चाहे खुशियों भरी हो या दुख की, दोनों ही हमें इमोशनल बना देती हैं.

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