Chanakya Niti: इन लोगों से उम्मीद रखी तो रोना पक्का है, चाणक्य ने बतायी है बड़ी वजह

Chanakya Niti: चाणक्य नीति बताती है कि गलत लोगों से उम्मीद रखना जीवन की सबसे बड़ी भूल क्यों बन जाती है. जानिए किन लोगों से उम्मीद रखने पर दुख तय है और कैसे इससे बचा जा सकता है.

By Sameer Oraon | December 15, 2025 9:20 PM

Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य ने जीवन, समाज और सत्ता को बहुत नजदीक से देखा था. उनकी नीतियां केवल समस्याओं से सामाधान के लिए ही नहीं रहती थी बल्कि बल्कि लोगों को सतर्क करने के लिए होती थी, जो आज के दौर के लिए सबसे प्रासंगिक हैं. इसलिए इस लेख में हम जानेंगे कि इंसान को अपने दिनचार्या में किन किन लोगों से उम्मीद नहीं रखना चाहिए, ताकि वह भविष्य में होने वाली परेशानी से बच सके. उन्होंने स्पष्ट एक बात बार-बार स्पष्ट रूप से कही गई है कि गलत जगह उम्मीद रखना मनुष्य की सबसे बड़ी भूल बन जाती है. आज के समय में जब रिश्ते, नौकरी और समाज सभी बदलते स्वरूप में हैं, चाणक्य की यह सीख पहले से कहीं ज्यादा जरूरी हो गई है. आइये जानते हैं जिंदगी में हमें किन लोगों से उम्मीद नहीं रखना है तो हमें बड़ा नुकसान होगा.

बिना शर्त अपेक्षा करने वालों से मिलता है ज्यादा दुख

चाणक्य ने अपनी नीति में स्पष्ट रूप से कहा कि जिससे आपने बिना शर्त अपेक्षा कर ली, उन्हीं से सबसे बड़ा दुख मिलता है. उनका मानता था कि उम्मीद तब तक ठीक है, जब तक वह आत्मनिर्भरता को कमजोर न करे. लेकिन जब व्यक्ति अपनी खुशी, सम्मान और भविष्य दूसरों के व्यवहार पर छोड़ देता है, वहीं से पतन शुरू हो जाता है.

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स्वार्थी लोगों से उम्मीद रखना आत्मघाती

चाणक्य के अनुसार जो लोग आपके काम आने पर ही आपके साथ रहते हैं, उनसे स्थायी सहारे की उम्मीद करना आत्मघाती है. चाणक्य स्पष्ट कहते हैं- स्वार्थ समाप्त होते ही संबंध भी समाप्त हो जाते हैं.

सत्ता और पद पर बैठे लोगों से

नौकरी, राजनीति या प्रशासन में काम करने वालों के लिए चाणक्य की यह चेतावनी खास है. यह पद और कुर्सी व्यक्ति की नहीं, समय की होती है. ऐसे में किसी पदधारी से स्थायी न्याय या उपकार की उम्मीद रखना मूर्खता है.

हर समय सहानुभूति दिखाने वालों से

चाणक्य ने सहानभूति जतलाने वालों से उम्मीद न रखने को कहा है. उन्होंने कहा था कि जो व्यक्ति हर वक्त आपकी पीड़ा पर सहानुभूति जताते हैं, जरूरी नहीं कि वे आपके संकट में साथ भी दें. उनका साफ कहना था कि उनके शब्द सस्ते होते हैं और साथ महंगा. दरअसल आचार्य चाणक्य रिश्तों के विरोधी नहीं थे, लेकिन वे भावुक अंधविश्वास के खिलाफ थे. मां-बाप, गुरु और जीवनसाथी को छोड़कर बाकी रिश्तों में विवेक जरूरी है.

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