Chhath 2025: सिंदूर नहीं, श्रद्धा जरूरी; Akshara Singh ने क्यों किया अविवाहित रहते छठ व्रत? बताया- मां ने कलछुल से पीटा था जब..

Chhath 2025: भोजपुरी स्टार अक्षरा सिंह (Akshra Singh) ने छठ के पारंपरिक नियम को चुनौती दी. उन्होंने कहा कि माथे पर सिंदूर ही आस्था का पैमाना नहीं है. एक्ट्रेस ने बताया कि कैसे व्रत के दौरान उन्हें जरा भी थकान महसूस नहीं हुई. पूरी खबर पढ़े.

By हिमांशु देव | October 25, 2025 12:46 PM

Chhath 2025: भोजपुरी अभिनेत्री अक्षरा सिंह जब पहली बार छठ का व्रत रखना कई मायनों में पारंपरिक सोच को चुनौती देने वाला था. क्योंकि, छठ केवल शादीशुदा महिलाएं कर सकती हैं. प्रभात खबर से अपना अनुभव साझा करते हुए अक्षरा ने कहा कि छठ सिर्फ त्योहार नहीं है, बल्कि रोम-रोम में बसने वाला एक गहरा भावनात्मक संबंध है. उन्होंने स्पष्ट किया कि हम सिंदूर नहीं लगाएंगे, हम शादीशुदा नहीं हैं पर मेरे मन का जो भाव है छठ मां के प्रति वो तो हम रख सकते हैं. माथे पर सिंदूर भरना ही आस्था का पैमाना नहीं है. शुद्ध मन और श्रद्धा ही सबसे बड़ा महत्व रखती है.

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बचपन में छठ गीत पर हंसने पर मां ने कलछुल से पीटा

अक्षरा बताती हैं कि उनके घर में दादी और बुआ छठ करती थीं, जिसे देखकर वह बड़ी हुईं. खुद व्रत शुरू करने के विचार पर कहा अगर लड़के छठ कर सकते हैं, तो कुंवारी लड़कियां क्यों नहीं? हालांकि, छठ शुरू करने को लेकर मन में डर था. यह डर छठ पूजा की शुचिता और विधिवत पालन से जुड़ा था. उन्होंने एक बचपन की घटना साझा की. वह कहती हैं कि लगभग पांच साल की उम्र में उन्होंने शारदा सिन्हा के छठ गीत पर मजाक किया था. जिसके बोल ‘चुगला करे चुगली बिलिया करे मियांउ..’ थे. जिसके बाद उनकी मां ने उन्हें बहुत डांटा और कलछुल से पीटा था. यह पूजा उनके लिए कितनी महत्वपूर्ण है और इसमें गलती से भी गलती नहीं होनी चाहिए.

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बिहार की बेटी बनके दीघा घाट पर विधिवत अर्घ दी

लोगों ने उन्हें सलाह दी थी कि एक सेलिब्रिटी होने के नाते वे पटना के घाट पर जाने के बजाय घर की छत पर या टब में छठ कर लें, लेकिन अक्षरा ने इसे ‘नया-नया बनाया हुआ ढकोसला’ कहकर नकार दिया. उन्होंने जोर दिया कि वह वही रीत निभाना चाहती हैं जो उनकी दादी और परदादी के जमाने से चली आ रही है. उन्होंने कहा, हम कोई सेलिब्रिटी बनके नहीं, हम बिहार की बेटी बनके ही छठ पूजा करना चाहते हैं. इसी भावना के साथ उन्होंने दीघा घाट पर जाकर अर्घ दिया और प्रॉपर तरीके से पूजा की.

व्रत के दौरान लगा कि खुद छठ मैया आकर काम करा रही

अक्षरा के लिए यह अनुभव चमत्कारी था. जहां तीन दिन तक पानी न पीकर रहना असंभव सा लगता है, वहीं व्रत के दौरान उन्हें जरा भी थकान महसूस नहीं हुई. उन्हें लगा, छठ मां घर आ चुकी हैं और वही करा रही हैं. अपनी पूजा की तैयारी भी बहन से पूछकर खुद से की. ठेकुआ और खरना का प्रसाद भी विधि विधान से तैयार की. अक्षरा सिंह ने यह व्रत कम से कम तीन साल तक करने का संकल्प लिया है. वह कहती हैं कि छठ पूजा हमारी पहचान है. भाग-दौड़ की जिंदगी में युवा अपनी जड़ों और सभ्यता को न खोएं और अपनी श्रद्धा को खुलकर निभाएं.