50 Days Bisaahee in Cinema: बेगुसराय के अभिनव ठाकुर की फिल्म 50 दिन पार, अब भी सिनेमाघरों में धमाकेदार रन

Film Bisaahee: बेगुसराय के निर्देशक अभिनव ठाकुर की फिल्म बिसाही ने 50 दिन से ज्यादा सिनेमाघरों में पूरे किए. डायन-बिसाही जैसी कुप्रथा पर आधारित यह फिल्म अब भी अपने 9वें सप्ताह में चुनिंदा सिनेमाघरों में सफलतापूर्वक चल रही है.

By हिमांशु देव | December 1, 2025 12:12 PM


Film Bisaahee:
बेगुसराय जिले के फिल्म निर्देशक अभिनव ठाकुर इन दिनों अपनी फिल्म बिसाही को लेकर चर्चा में हैं. बिना बड़े स्टार, बिना भारी बजट और बिना किसी प्रमोशन के भी यह फिल्म दर्शकों के दिलों में अपनी जगह बनायी है. बता दें कि, बिसाही ने 50 दिन से अधिक सिनेमाघरों में पूरे कर लिए हैं और अब भी अपने 9वें सप्ताह में चुनिंदा थिएटर्स में मजबूती से चल रही है. यह फिल्म डायन-बिसाही जैसी अमानवीय कुप्रथा पर बनी है, जो आज भी देश के कई इलाकों में महिलाओं की जिंदगी तबाह कर रही है. सच्ची घटनाओं से प्रेरित यह कहानी दर्शकों के दिलों को गहरी चोट देती है. फिल्म को बिहार, झारखंड, यूपी, मुंबई से लेकर देश के कई राज्यों में अद्भुत प्यार मिल रहा है. अभिनव बताते हैं कि एनजीओ, विश्वविद्यालय और महिला सुरक्षा संगठन इसे जागरूकता अभियान का हिस्सा बना रहे हैं.

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ऐसे होती है फिल्म में कहानी की शुरुआत

बिसाही (bisaahee) की कहानी स्तुति नाम की निडर व्लॉगर के इर्द-गिर्द घूमती है. यह किरदार पूजा अग्रवाल ने निभाया है. स्तुति एक नए वीडियो की तलाश में एक दूर-दराज गांव पहुंचती है. लेकिन, वहां उसे अंधविश्वास की आड़ में चल रहा एक डरावना सच दिखता है. यहां महिलाओं को डायन-बिसाही घोषित कर बेरहमी से प्रताड़ित किया जाता है. स्तुति की कैमरा यात्रा धीरे-धीरे एक संघर्ष में बदल जाती है. फिल्म में रवि साह, इंदु प्रसाद और रामसुजन सिंह की एक्टिंग कहानी को और मजबूत बनाती है. यह फिल्म दस्तावेज से आगे बढ़कर एक घाव बन जाती है, जो समाज की सच्चाई को सामने रखती है.

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दर्शकों से मिल रहा शानदार रिस्पॉन्स

अभिनेत्री इंदु बताती हैं कि फिल्म को बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, दिल्ली और महाराष्ट्र से शानदार प्रतिक्रिया मिली है. दर्शकों ने ‘बिसाही’ (bisaahee) को सिर्फ देखा नहीं, बल्कि महसूस किया है. कई एनजीओ, विश्वविद्यालय और महिला सुरक्षा समूह इसे जागरूकता अभियान में शामिल कर चुके हैं. बिहार, एमपी और झारखंड के सामाजिक न्याय एवं महिला कल्याण विभागों ने भी फिल्म की खुले तौर पर सराहना की है. फिल्म को एक रियलिटी चेक और सामाजिक जागरूकता की मजबूत आवाज बताया जा रहा है. दर्शकों के मजबूत समर्थन ने ‘बिसाही’ को एक मूवमेंट में बदल दिया है.

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दो साल रिसर्च के बाद कहानी को परदे पर उतारा

बिसाही के लेखक और निर्देशक बेगुसराय निवासी अभिनव ठाकुर (Abhinav Thakur) कहते हैं कि यह फिल्म उन आवाजों की पुकार है, जिन्हें वर्षों तक दबाया गया. दो साल की रिसर्च के बाद उन्होंने इस कहानी को पर्दे पर उतारा. उन्होंने बताया कि डायन प्रथा सिर्फ झारखंड नहीं, बल्कि बिहार, ओडिशा, यूपी और कई राज्यों की हकीकत है. फिल्म के निर्माता नरेंद्र पटेल का कहना है कि ‘बिसाही’ (bisaahee) यह साबित करती है कि जब कहानी सच्ची होती है, दर्शक उसे दिल से अपनाते हैं. 50 दिन से अधिक का यह सफल सफर सच्चे कंटेंट की जीत है. फिल्म अब भी चुनिंदा सिनेमाघरों में चल रही है और इसका प्रभाव लगातार बढ़ रहा है.

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