Rupee vs Dollar: रुपये के कमजोर होने से आम आदमी की जेब पर क्या असर होगा?
Rupee vs Dollar: जब रुपये की तुलना डॉलर के साथ कमजोर होती है, तो इसका अर्थ है कि अब एक डॉलर खरीदने के लिए पहले की तुलना में ज्यादा रुपये खर्च करने पड़ते हैं. इसका सीधा परिणाम यह होता है कि जो वस्तुएं हम विदेश से आयात करते हैं, वे महंगी हो जाती हैं.
Rupee vs Dollar: बुधवार यानि 3 दिसम्बर 2025 को भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले पहली बार 90 का स्तर पार कर गया, जो आर्थिक और राजनीतिक जगत में एक महत्वपूर्ण घटना मानी जा रही है. इस बदलाव का असर केवल विदेशी विनिमय दर तक सीमित नहीं रहता, बल्कि इसका सीधा प्रभाव आम जनता की जेब पर भी पड़ता है. आइए विस्तार से समझते हैं कि रुपये के मूल्यह्रास (डेप्रिसिएशन) से आम आदमी को क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं.
रुपये के कमजोर होने का मतलब क्या है?
जब रुपये की तुलना डॉलर के साथ कमजोर होती है, तो इसका अर्थ है कि अब एक डॉलर खरीदने के लिए पहले की तुलना में ज्यादा रुपये खर्च करने पड़ते हैं. इसका सीधा परिणाम यह होता है कि जो वस्तुएं हम विदेश से आयात करते हैं, वे महंगी हो जाती हैं.
महंगाई में वृद्धि और रोजमर्रा की जिंदगी पर असर
भारत में पेट्रोल, डीजल, इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, रसायन और उर्वरकों जैसे कई महत्वपूर्ण सामानों का आयात काफी मात्रा में होता है. रुपये के कमजोर होने के कारण इन वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं. इससे ईंधन की कीमतें भी बढ़ सकती हैं, जो परिवहन लागत को बढ़ाता है. अंततः, इसका असर सब्जियों, दालों, किराने के सामान और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी के रूप में आम आदमी की जेब पर पड़ता है. इसे एक तरह का डोमिनो प्रभाव कहा जा सकता है, जहा एक चीज की महंगाई धीरे-धीरे कई अन्य वस्तुओं की कीमतों को प्रभावित करती है.
विदेश शिक्षा और यात्रा पर बढ़ता खर्च
रुपया कमजोर होने का एक और बड़ा प्रभाव विदेशी शिक्षा और विदेश यात्रा के खर्च पर पड़ता है. उदाहरण के लिए, अगर किसी छात्र को 10,000 अमेरिकी डॉलर की फीस देनी है, और रुपये का एक्सचेंज रेट 90 हो गया है, तो उसे 9 लाख रुपये खर्च करने होंगे. जबकि अगर रुपये का रेट 80 होता, तो यही फीस 8 लाख रुपये में पूरी हो जाती. इससे छात्र परिवारों पर वित्तीय दबाव बढ़ता है और स्टूडेंट लोन की मांग भी बढ़ सकती है.
शेयर बाजार पर प्रभाव
रुपए के गिरने से स्टॉक मार्केट भी प्रभावित हो सकता है. विदेशी निवेशक (FII) अगर रुपये की कमजोरी देखते हैं, तो वे अपना पैसा वापस निकाल सकते हैं, जिससे बाजार में बिकवाली का दबाव बढ़ता है. उदाहरण के तौर पर, 3 दिसंबर को सेंसेक्स में 200 पॉइंट की गिरावट रुपये के 90 पार जाने के बाद देखी गई थी. हालांकि, यह कहना कठिन है कि रुपए के गिरने का स्टॉक मार्केट पर सीधा और स्थाई प्रभाव क्या होगा, क्योंकि बाजार में उतार-चढ़ाव अनेक अन्य कारणों से भी होते हैं.
रुपये के कमजोर होने के और भी प्रभाव
- विदेशी कर्ज और निवेश: भारत के लिए विदेशी कर्ज़ चुकाने की लागत बढ़ जाती है, जिससे सरकारी खर्च बढ़ सकते हैं.
- निर्माण और निर्यात: हालांकि आयात महंगा होता है, कमजोर रुपये से भारतीय उत्पाद विदेशों में सस्ते हो जाते हैं, जिससे निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है.
- मुद्रा नीति पर दबाव: RBI को मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करना पड़ सकता है, जिससे आर्थिक नीति पर दबाव बढ़ता है.
Also Read : काउंटर से Tatkal टिकट लेना है तो फोन साथ रखना जरूरी, नहीं तो बुकिंग लटक सकती है!
Disclaimer: शेयर बाजार से संबंधित किसी भी खरीद-बिक्री के लिए प्रभात खबर कोई सुझाव नहीं देता. हम बाजार से जुड़े विश्लेषण मार्केट एक्सपर्ट्स और ब्रोकिंग कंपनियों के हवाले से प्रकाशित करते हैं. लेकिन प्रमाणित विशेषज्ञों से परामर्श के बाद ही बाजार से जुड़े निर्णय करें.
