जब कांग्रेस लहर में गूंजा ‘वीर महोबिया क्राम-क्राम, जेने गया धड़ाम-धड़ाम’, 1980 में वीरेंद्र सिंह ने दर्ज की थी ऐतिहासिक जीत

Veer Mahobiya Kram Kram: चुनाव प्रचार भी उनका अनोखा होता था. गांवों में जाते और कहते तू भाइ छह, चाचा छह. वोट नई मिललै त बुझिहा. महोबिया को हाथी पालने का शौक था. उनके नामांकन जुलूस में हाथियों का झुंड होता था. विधायक होते हुए उन्होंने अपनी पुत्री की शादी की. दिल्ली से अनुमति लेकर वायुयान से रात भर विवाह मंडप पर फूलों की वर्षा होती रही.

By Mithilesh Jha | October 29, 2025 10:33 PM

Veer Mahobiya Kram Kram‍| Bihar Election 2025: ‘वीर महोबिया क्राम-क्राम जेने गया धड़ाम-धड़ाम’. यह नारा 1980 के चुनाव में वैशाली में गली-गली गूंजता था. वह समय राजनीति में बाहुबलियों की इंट्री का काल माना जाता है. वैशाली जिले की जंदाहा विधानसभा सीट से वीरेंद्र सिंह महोबिया निर्दलीय उम्मीदवार थे. उनके सामने कई दिग्गज मैदान में डटे थे. कांग्रेस की लहर था. देश और बिहार में कांग्रेस की सरकारें सत्ता में लौट आयी थीं, लेकिन जंदाहा में परिणाम जब आया तो वीरेंद्र सिंह महोबिया को जीत मिली.

जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद मध्यावधि चुनाव

दरअसल, केंद्र और बिहार में जनता पार्टी की सरकार गिर गयी थी. मध्यावधि चुनाव हो रहे थे, जंदाहा में जनता पार्टी के नाम से कई पार्टियां मैदान में थीं. जनता पार्टी जेपी, जनता पार्टी सेकुलर राजनारायण गुट, जनता पार्टी चरण सिंह गुट. इसी तरह कांग्रेस भी दो फाड़ हो चुकी थी. एक कांग्रेस-आइ और दूसरी कांग्रेस-यू. कुल मिला कर सबके अपने-अपने उम्मीदवार थे.

निर्दलीय वीरेंद्र सिंह महोबिया की ऐतिहासिक जीत

इस दौरान चुनाव परिणाम आया तो निर्दलीय वीरेंद्र सिंह उर्फ वीरेंद्र सिंह महोबिया ने 1687 मतों से अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी जनता पार्टी सेकुलर के शिव प्रसाद सिंह को पराजित कर दिया. महोबिया तत्कालीन कांग्रेस के दिग्गज डाॅ जगन्नाथ मिश्र के अत्यंत करीबी थे. वे डाॅ मिश्र की तरह ही अपनी सभी उंगलियों में अंगूठी पहनते थे. एक बार किसी यज्ञ कराने के वास्ते अपनी सभी दसों अंगूठियों को बेच दिया था.

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अनेखा था चुनाव प्रचार का तरीका

चुनाव प्रचार भी उनका अनोखा होता था. गांवों में जाते और कहते तू भाइ छह, चाचा छह. वोट नई मिललै त बुझिहा. महोबिया को हाथी पालने का शौक था. उनके नामांकन जुलूस में हाथियों का झुंड होता था. विधायक होते हुए उन्होंने अपनी पुत्री की शादी की. दिल्ली से अनुमति लेकर वायुयान से रात भर विवाह मंडप पर फूलों की वर्षा होती रही. विधायक बनने के बाद पटना के विधायक आवास पर कीर्तन करवाना उनका शगल था. विधायक आवास में रात भर कीर्तन से जब पड़ोसी विधायक परेशान हो गये तो उन लोगों ने महोबिया से इसे बंद करने को कहा. इस पर महोबिया भड़क गये और सबको डांट कर भगा दिया.

1985 के चुनाव में मिली हार

1985 का जब चुनाव आया तो वीरेंद्र सिंह महोबिया एक बार फिर निर्दलीय उम्मीदवार हुए. महोबिया को उम्मीद थी कि इस बार भी वो दिग्गजों को परास्त करने में सफल होंगे, लेकिन उनके सामने इस बार लोकदल के तुलसी दास मेहता थे. चुनाव परिणाम आया तो तुलसी दास मेहता 3776 मतों से चुनाव जीत गये. इस चुनाव परिणाम के कुछ दिनों बाद ही महोबिया की हत्या हो गयी. (सभार : वरिष्ठ पत्रकार विकास कुमार झा की पुस्तक बिहार में राजनीति का अपराधीकरण)

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