राजरप्पा मंदिर में कार्तिक अमावस्या की रात हर भक्तों की मनोकामना होती है पूरी, दीवाली में दिखता है अद्भभुत नजारा

Rajrappa Temple: झारखंड के रामगढ़ जिले स्थित रजरप्पा मां छिन्नमस्तिके मंदिर में कार्तिक अमावस्या की रात विशेष पूजा और तंत्र साधना का अद्भुत अनुभव होता है. दूर-दूर से तांत्रिक, साधक और श्रद्धालु इस मंदिर में पूरी रात मां की उपासना में लीन रहते हैं. मंदिर का रहस्यमयी वातावरण और मां छिन्नमस्तिके का अद्भुत स्वरूप भक्तों के लिए आत्मबल और आस्था का प्रतीक है.

By Sameer Oraon | October 18, 2025 7:38 PM

Rajrappa Temple, सुरेंद्र कुमार/शंकर पोद्दार, रजरप्पा: झारखंड के रामगढ़ जिले का मां छिन्नमस्तिके मंदिर सिर्फ एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि श्रद्धा, रहस्य और तंत्र-साधना का अद्भुत केंद्र है. दामोदर और भैरवी नदी के संगम पर स्थित यह मंदिर भारत के प्रमुख सिद्धपीठों में गिना जाता है. माना जाता है कि असम के कामाख्या मंदिर के बाद रजरप्पा मंदिर तांत्रिक साधना के लिए सबसे पवित्र स्थान है.

श्रद्धालु पूरी रात मां छिन्नमस्तिके की उपासना में रहते हैं लीन

कार्तिक अमावस्या की रात यहां की आभा कई गुना बढ़ जाती है. इस दिन विशेष पूजा-अर्चना, हवन, जप, पाठ और यज्ञ का आयोजन होता है. दूर-दूर से तांत्रिक, साधक और श्रद्धालु यहां पूरी रात मां छिन्नमस्तिके की उपासना में लीन रहते हैं. मान्यता है कि इस रात मां की पूजा से तांत्रिक सिद्धि प्राप्त होती है और भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है.

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झारखंड समेत कई राज्य राज्यों से पहुंचते हैं श्रद्धालु

मंदिर परिसर में शाम ढलते ही वातावरण रहस्यमय हो उठता है. हवन कुंडों से उठता धुआं, जंगलों से आती कलकल ध्वनि और डमरू की गूंज श्रद्धालुओं के मन में भक्ति और रोमांच दोनों का संचार करती है. झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और दिल्ली समेत कई राज्यों से श्रद्धालु इस खास दिन रजरप्पा पहुंचते हैं. काली पूजा की रात हजारों दीप जलते हैं और मां छिन्नमस्तिके के जयकारों से पूरा क्षेत्र गूंज उठता है. यह केवल पूजा का अवसर नहीं, बल्कि आत्मबल, साहस और आस्था का पर्व है.

मां छिन्नमस्तिके का अद्भुत स्वरूप

मंदिर में विराजमान देवी कमल पुष्प पर खड़ी हैं. नीचे कामदेव और रति क्रिया में लीन हैं. देवी ने स्वयं अपने खड्ग से अपना शीश काट लिया है। उनके हाथ में रक्तरंजित खड्ग और कटा मस्तक है. गर्दन से तीन रक्तधाराएं निकलती हैं, जिनमें एक उनके मुख में और दो योगिनियों के मुख में प्रवाहित होती हैं. यह स्वरूप आत्मबलिदान, शक्ति और सृष्टि-शक्ति के संतुलन का प्रतीक माना जाता है.

दिन की चहल-पहल, रात की रहस्यमयी साधना

इस रात कई तांत्रिक और साधक मंदिर परिसर में एकांतवास में साधना करते हैं. कुछ लोग भैरवी-दामोदर संगम के तट पर, तो कुछ घने जंगलों में हवन और जप द्वारा सिद्धि प्राप्त करने का प्रयास करते हैं. पूरा इलाका रहस्यमयी साधना केंद्र में बदल जाता है. अमावस्या की घोर अंधकार में भी मंदिर दीपों और हवन की लपटों से जगमगा उठता है. भभूत की सुगंध, धुएं का हल्का आवरण और दूर से आती घंटे की ध्वनि वातावरण को अध्यात्म से भर देती है.

अध्यात्म और तंत्र का संगम

मंदिर के वरिष्ठ पुजारी असीम पंडा बताते हैं कि कार्तिक अमावस्या की निशा साधना का महत्व अत्यंत विशेष होता है. यहां की रात अध्यात्म और तंत्र दोनों का अद्भुत मेल है. मां छिन्नमस्तिके देवी, महामाया काली का स्वरूप हैं, इसलिए काली पूजा की रात साधक यहां सिद्धि प्राप्त करते हैं.

तपस्या और आत्मसाक्षात्कार का अवसर

मंदिर न्यास समिति के सचिव शुभाशीष पंडा बताते हैं कि काली पूजा की रात मंदिर रंग-बिरंगे फूलों और विद्युत सज्जा से आकर्षक रूप लेता है. यह रात भक्तों के लिए तपस्या और आत्मसाक्षात्कार का अवसर है. वरिष्ठ पुजारी रितेश पंडा ने बताया कि इस दिन मां का विशेष श्रृंगार किया जाता है. रातभर भव्य पूजा, आरती और भोग अर्पित होता है. पूरे समय भोग और महाप्रसाद का वितरण भी किया जाता है.

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