16वीं सदी में बना ये सूर्य मंदिर, जहां का तालाब आज तक नहीं सूखा! छठ में उमड़ती है लोगों की भीड़

Chhath Puja 2025: रामगढ़ जिले के मारंगमरचा गांव स्थित ऐतिहासिक सूर्य मंदिर की एक अनोखी पहचान है. यहां का तालाब सदियों से कभी नहीं सूखा है. 16वीं शताब्दी में बने इस मंदिर में छठ पूजा के दौरान हजारों श्रद्धालु सूर्य देव की पूजा करने पहुंचते हैं. जानें इस रहस्यमयी स्थल का इतिहास और आस्था से जुड़ी रोचक बातें.

By Sameer Oraon | October 23, 2025 10:13 PM

रामगढ़, सुरेंद्र कुमार/शंकर पोद्दार: रामगढ़ जिला अंतर्गत चितरपुर प्रखंड के मारंगमरचा गांव स्थित ऐतिहासिक सूर्य मंदिर एक बार फिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है. छठ महापर्व की पावन बेला में सैकड़ों वर्षों पुराना यह मंदिर जीवंत हो उठा है. भले ही इसकी दीवारें अब जर्जर हो चुकी हों, लेकिन श्रद्धालुओं की आस्था आज भी उतनी ही मजबूत है, जितनी सदियों पहले थी.

मारंगमरचा का सूर्य मंदिर छठ के दिनों में रहता है गुलजार

छठ पर्व के दौरान सूर्य देव की उपासना का विशेष महत्व होता है. इसी कारण मारंगमरचा का यह सूर्य मंदिर हर वर्ष छठ के दिनों में भक्तों से गुलजार रहता है. नहाय-खाय से लेकर उषा अर्घ्य तक श्रद्धालु यहां दीप जलाकर सूर्यदेव से सुख-समृद्धि और आरोग्य की कामना करते हैं. छठव्रती महिलाओं का कहना है कि यहां पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

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राजा दलेर सिंह के शासनकाल में हुआ था मंदिर का निर्माण

चितरपुर स्थित जरीना खातून संग्रहालय के निदेशक सह पुरातत्व शोधकर्ता फैयाज अहमद के अनुसार, इस सूर्य मंदिर का निर्माण 16वीं शताब्दी में रामगढ़ राजा दलेर सिंह के शासनकाल में कराया गया था. यह मंदिर बंगला शैली में बना है और देखने में अष्टकोणीय प्रतीत होता है. मंदिर के शिखर पर सूर्य की सुंदर आकृति उकेरी गयी है, जो इसकी कलात्मकता को दर्शाती है. निर्माण में लखौरी ईंट और सुर्खी चूना का प्रयोग किया गया था, जो मुगलकालीन स्थापत्य शैली की पहचान है. क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि मंदिर के साथ एक विशाल तालाब भी बनवाया गया था, जो आज तक कभी नहीं सूखा. राजा स्वयं धार्मिक प्रवृत्ति के थे और जब भी इस क्षेत्र का दौरा करते थे, तो इसी तालाब में स्नान कर सूर्यदेव की पूजा करते थे.

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कभी नहीं सूखता तालाब, छिपे हैं कई रहस्य

मंदिर के पास बना यह प्राचीन तालाब आज भी लोगों की आस्था का केंद्र है. बताया जाता है कि यह तालाब तीन खंडों में बना है और इसके चारों ओर पत्थर की सीढ़ियां हैं. प्राकृतिक आपदा हो या भयंकर गर्मी, यह तालाब कभी नहीं सूखता. कुछ वर्ष पहले जब इसकी सफाई की गयी थी, तब इसमें से कई पौराणिक औजार जैसे कुदाल, गैता और मिट्टी काटने के उपकरण मिले थे, जो सैकड़ों वर्षों तक पानी में रहने के बावजूद खराब नहीं हुए.

मंदिर में हुई कई बार चोरी

ग्रामीणों के अनुसार, राजा के समय में मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए कई कीमती बर्तन और धातु की वस्तुएं रखी गयी थीं. समय के साथ ये वस्तुएं चोरी हो गयी. लोगों का कहना है कि चोरी करने वालों के परिवारों पर विपत्ति आयी. अब मंदिर में वे वस्तुएं नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें और आस्था आज भी लोगों के मन में जीवित है.

जर्जर दीवारें, पर अटूट विश्वास

वर्तमान में सूर्य मंदिर की स्थिति काफी जर्जर है. दीवारों में दरारें पड़ चुकी हैं, शिखर से कई जगह ईंटें टूटकर झड़ चुकी हैं और कई स्थानों पर पत्थर खिसक गये हैं. फिर भी छठ के अवसर पर भक्तों की भीड़ उमड़ती है. श्रद्धालु मंदिर में दीप जलाकर सूर्यदेव से परिवार की मंगलकामना करते हैं.

ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण की मांग

मारंगमरचा पंचायत की मुखिया बसंती देवी, पूर्व मुखिया डोमन महतो, सेवानिवृत्त शिक्षक उमेश राम दास, हरिलाल राम और खैंटा प्रजापति सहित गांव के लोगों ने प्रशासन से इस ऐतिहासिक धरोहर की मरम्मत और संरक्षण की मांग की है. उनका कहना है कि यदि सरकार ध्यान दे तो यह स्थल धार्मिक पर्यटन का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन सकता है. सच तो यह है कि छठ महापर्व के इस पावन समय में मारंगमरचा का यह सूर्य मंदिर सिर्फ एक पुरातन धरोहर नहीं, बल्कि आस्था और परंपरा के साथ इतिहास का जीवंत प्रतीक बन गया है. जिसकी जर्जर दीवारों में भी श्रद्धा की रोशनी आज भी जगमगा रही है.

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