जनसेवा में जेब की ताकत! बिहार चुनाव में हर दल ने दिए करोड़पतियों को टिकट, जानिए कौन पार्टी है टॉप पर
Bihar Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में एक बार फिर ‘धनबल’ का बोलबाला नजर आ रहा है. एडीआर रिपोर्ट के अनुसार, अधिकांश राजनीतिक दलों ने करोड़पति उम्मीदवारों को टिकट दिया है. चिराग पासवान की लोजपा 100% करोड़पति प्रत्याशियों के साथ शीर्ष पर बनी हुई है.
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Bihar Chunav 2025, केशव सुमन सिंह: बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार भी ‘धनबल’ का जलवा कायम है. हर पार्टी ने टिकट ऐसे-ऐसे उम्मीदवारों को दिया है, जिनकी संपत्ति करोड़ों में है. यानी साफ है, जनता की आवाज बनने के लिए अब जेब भी भारी होनी जरूरी है. ADR की ओर से दूसरे फेज के चुनाव की रिपोर्ट जारी कर दी गई है. दूसरे चरण में 122 विधानसभा सीटों पर मतदान होने हैं.
पहले नंबर पर ‘मोदी के हनुमान’
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट के अनुसार बिहार के चुनावी मैदान में अमीर उम्मीदवारों की भरमार है. जिसमें मोदी के हनुमान यानी चिराग पासवान की पार्टी पहले नंबर पर है. ‘मोदी के हनुमान’ की लोजपा के 100 फीसद प्रत्याशी करोड़पति हैं. दूसरे चरण के 122 सीटों में से चिराग पासवान की पार्टी के 15 उम्मीदवार मैदान में हैं.
जद(यू) और सीपीएम का मुकाबला भी टफ
अब दूसरे नंबर पर कंपटीशन बेहद कड़ा होता नजर आ रहा है. दूसरे नंबर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जद(यू) के 44 में से 40 उम्मीदवार यानी 91 फीसद प्रत्याशी करोड़पति हैं. वहीं, हक- हुकूक और अधिकारों की बात करने वाली पार्टी भाकपा (मार्क्सवादी) ने एक उम्मीदवार उतारा है. वह भी करोड़पति. भाकपा कैंडिडेट की ओर से संपत्ति घोषित संपत्ति करोड़ों की बताई गई है. इसलिए उसका प्रतिशत भी 100 ही है. हां, ये अलग बात है कि इस पार्टी का सैंपल साइज छोटा है. इस कारण उन्हें संयुक्त स्थान पर रखा गया है.
तीसरे नंबर पर करोड़पतियों का मुकाबला और टफ
अब बात करते हैं तीसरे नंबर की. तीसरे नंबर पर तो मुकाबला और भी कड़ा हो जाता है. इस स्थान पर कब्जा जमाने में तीन पार्टियों की लगभग समान दावेदारी दिखाई देती है. राजद, कांग्रेस और भाजपा तीनों कमोवेश एक ही स्थान पर हैं. तीनों बड़ी पार्टियों में करोड़पति उम्मीदवारों का फीसद लगभग बराबर ही है.
राजद के 70 में से 59 उम्मीदवार करोड़पति हैं. जो 84 फीसद का आंकड़ा बनता है. वहीं, कांग्रेस के भी 37 में से 31 उम्मीदवार करोड़पति हैं. इनका फीसद भी 84 ही है. इधर, भाजपा ने दूसरे चरण में 53 प्रत्याशी मैदान में उतारे. उनके खेमे में भी 44 उम्मीदवार करोड़पति हैं. जो 83 फीसद बैठता है.
प्रशांत किशोर के 74 फीसद उम्मीदवार करोड़पति
अब बात करते हैं उस पार्टी की, जो बिहार को बदल देने का दावा करती है. जी हां, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने दूसरे चरण की 122 में से 117 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. इनमें से 86 उम्मीदवार यानी 74 फीसद करोड़पति हैं. अब ये सोचने वाली बात है कि नई पार्टी होते हुए भी प्रशांत किशोर के पास आर्थिक रूप से मजबूत उम्मीदवारों की कोई कमी नहीं है.
पांचवे और छठे स्थान पर ये पार्टियां
पांचवे और छठे नंबर पर भाकपा माले, भाकपा, बसपा और आप जैसी पार्टियां हैं. भाकपा (माले) के 6 में से 3 उम्मीदवार यानी 50 फीसद उम्मीदवार करोड़पति हैं. भाकपा के भी 4 में से 2 उम्मीदवार करोड़पति हैं. इनका आंकड़ा 50 फीदस का बनता है. छठे स्थान पर बसपा और आम आदमी पार्टी है. बसपा के 91 में से 30 उम्मीदवार यानी 33 फीदस करोड़पति हैं.
आप ने अपने 39 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. इनमे से 13 करोड़पति हैं. यह आंकड़ा भी 33 फीदस होता है. भाकपा माले ने 6 उम्मीदवार मैदान में उतारे. इनमें से 3 करोड़पति, भाकपा ने 4 प्रत्याशी उतारे इनमें से 2 करोड़पति यानी दोनों के 50 फीसद प्रत्याशी करोड़पति पाया गया. माकपा (मार्क्सवादी) ने अपना एक ही प्रत्याशी उतारा वह भी करोड़पति.
एडीआर के आंकड़े के मुताबिक पूरी लिस्ट
जन सुराज पार्टी के 117 में से 86 उम्मीदवार 74 फीसद करोड़पति हैं.
जन सुराज पार्टी के 117 में से 86 उम्मीदवार 4 फीसद करोड़पति.
राजद के 70 में से 59 उम्मीदवार 84 फीसद करोड़पति.
भाजपा के 53 में से 44 उम्मीदवार 83 फीसद ने करोड़ों की संपत्ति घोषित की.
जद (यू) के 44 में से 40 उम्मीदवार 91 फीसद करोड़पति.
कांग्रेस के 37 में से 31 उम्मीदवार 84 फीसद करोड़पति निकले.
लोजपा (राम विलास) के सभी 15 उम्मीदवार 100 फीसद करोड़पति हैं.
बसपा के 91 में से 30 उम्मीदवार 33 फीसद, आप के 39 में से 13 उम्मीदवार 33 फीसद.
भाकपा (माले) के 6 में से 3 50 फीसद, भाकपा के 4 में से 2 यानी 50 फीसद.
भाकपा (मार्क्सवादी) का एकमात्र उम्मीदवार भी करोड़पति 100 फीसद है.
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राजनीति में ‘पैसे की ताकत’ फिर हावी
कहते हैं आंकड़े गलत नहीं बोलते. ऐसे में एडीआर की रिपोर्ट में आंकड़े ये साफ दिखाते हैं कि राजनीति अब आम आदमी के लिए नहीं है. टिकट बंटवारें में पैसा सबसे बड़ा फैक्टर बन चुका है. ये अलग बात है कि टिकट बंटवारे में पैसे के खेल के आरोप राजनीतिक पार्टियों पर लगते रहे हैं. जिन्हें वो सिरे नकारती रहीं हैं. लेकिन आंकड़ों को देखकर तो उनके इनकार पर सवाल खड़ा होना लाजमी है.
दिलचस्प यह है कि समाजवाद और समानता की बात करने वाली पार्टियों के उम्मीदवार भी संपत्ति के मामले में पीछे से पीछे नहीं हैं. जनता भले वोट ईमानदारी पर दे, लेकिन टिकट अब शायद ‘बैंक बैलेंस’ देखकर ही तय हो रहा है. बिहार की सियासत में यह तस्वीर बताती है कि अब चुनाव मैदान में उतरने से पहले जेब में करोड़ों का वजन होना जरूरी है.
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