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बाढ़ प्रबंधन : पानी निकलने की व्यवस्था बना दी जाये

सरकारी खजाने पर भी बढ़ता है दबाव दिनेश मिश्र संयोजक, बाढ़ मुक्ति अभियान बिहार की भौगोलिक परिस्थिति ऐसी है कि यहां बाढ़ के पानी का आना स्वाभाविक है. बाढ़ के पानी की हिस्सेदारी देखें, तो उत्तर बिहार में 19 प्रतिशत पानी बरसात का होता है, जबकि 81 प्रतिशत पानी बाहर से आता है, जिसमें कुछ […]

सरकारी खजाने पर भी बढ़ता है दबाव

दिनेश मिश्र

संयोजक, बाढ़ मुक्ति अभियान

बिहार की भौगोलिक परिस्थिति ऐसी है कि यहां बाढ़ के पानी का आना स्वाभाविक है. बाढ़ के पानी की हिस्सेदारी देखें, तो उत्तर बिहार में 19 प्रतिशत पानी बरसात का होता है, जबकि 81 प्रतिशत पानी बाहर से आता है, जिसमें कुछ दूसरे राज्यों से, कुछ हिमालय से और कुछ नेपाल से आता है. यही वजह है कि बिहार में बाढ़ की समस्या ज्यादा बड़ी हो जाती है.

हालांकि, बाढ़ को देखने के दो नजरिये हैं, एक ग्रामीण और दूसरा शहरी. ग्रामीण नजरिये से बाढ़ के पानी की सबको जरूरत होती है, उनकी खेती के लिए और जीवन के लिए. भूमिगत जल और ताल-तलैया भर जाते हैं. लेकिन, वहीं शहरी नजरिये से यह पानी नुकसानदायक होता है. दरअसल, इसलिए नुकसानदायक है, क्योंकि इसका प्रबंधन ठीक से नहीं हो पाता है. हम बाढ़ के पानी से बचने के लिए सड़कें ऊंची करते हैं, दीवारें ऊंची करते हैं.

लेकिन, इसके पानी को निकलने का कोई अच्छा रास्ता नहीं बनाते और न ही इसके संग्रहण की कोई व्यवस्था करते हैं, जिसका नतीजा यह होता है कि घरों में पानी घुस जाता है और जान-माल का काफी नुकसान होता है.

गांव के लोग बाढ़ का पानी देखकर खुश होते हैं, हालांकि कुछ दिन के लिए अव्यवस्था हो जाती है. लेकिन, शहरी लोगों ने इस अव्यवस्था को और बाढ़ की विभीषिका को

बेचा है. और सरकारों ने तमाम सड़कें ऊंची करने की योजना बना दी और बाढ़ के पानी के निकलने के रास्तों को बाढ़ नियंत्रण के नाम पर बंद कर दिया. जैसे-जैसे पानी के निकलने के रास्ते बंद होते जाते हैं, वैसे-वैसे यह विभीषिका का रूप लेती जाती है. पुल को तोड़कर पानी यह इशारा करता है कि उसके निकलने के लिए वह नाकाफी है. इसी इशारे को हम नहीं समझ पाते और पुल पर पुल बनाते जाते हैं.

यही वजह है कि शहरों में बाढ़ क्या, जरा सा पानी भी बाढ़ की तरह लगने लगता है. आज आलम यह है कि देश के हर छोटे-बड़े शहर में जरा सा पानी भी विभीषिका का रूप ले लेता है, क्योंकि शहरों की बनावट में बारिश के पानी को आसानी से निकलने का रास्ता ही नहीं है. पानी का रुकना ही विभीषिका पैदा करना है, क्योंकि पानी जहां रुकेगा, तो वह निकलने के लिए दूसरा रास्ता तलाशेगा. वह दूसरा रास्ता ही अव्यवस्था फैलाता है. पानी की निकासी के सारे रास्तों को बंद करने का सरकारी प्रयास होता रहा है इस देश में. और विडंबना यह है कि यह बाढ़ नियंत्रण के नाम पर होता है.

पानी निकलने की व्यवस्था अगर बना दी जाये, तो बाढ़ का ज्यादा से ज्यादा पानी भी कुछ ही दिन में सरक जायेगा. बाढ़ के कारण राजस्व घाटे से बचने के लिए जरूरी है कि जल निकासी प्रबंधन की व्यवस्था की जाये. इसमें सबसे अच्छी बात यह होगी कि खेती को उतना नुकसान नहीं होगा. सिर्फ एक फसल के नुकसान से ही ग्रामीण जन-जीवन का काफी नुकसान होता है.

ज्यादा दिन तक पानी रुकने से घरों की दीवारों पर असर पड़ता है, घर टूट जाते हैं. पानी के ठहराव से बीमारियां फैलने लगती हैं, क्योंकि उसमें चीजें सड़ने लगती हैं और वह बीमारियों को जन्म देती हैं. सरकार पर अतिरिक्त दबाव बनता है और सरकारी खजाने से राहत पैकेजों की व्यवस्था करनी पड़ती है. यह स्थिति भ्रष्टाचार को भी जन्म देती है, जिससे राजस्व के साथ-साथ राजनीतिक नैतिकता का भी क्षय होता है.

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