T-Mobile ने IIM के गोपालन को CEO बनाया, जानें क्यों विदेशी कंपनियों में भारतीय की बढ़ती संख्या अमेरिका में मचाई हलचल!

T-Mobile Indian CEO: अमेरिका में भारतीय सीईओ की बढ़ती संख्या टी-मोबाइल, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल जैसी कंपनियां भारतीय मूल के नेताओं को क्यों चुन रही हैं? श्रीनिवास गोपालन और राहुल गोयल की सफलता के पीछे क्या है - काबिलियत, वैश्विक अनुभव या बोर्ड की सुरक्षा की रणनीति? जानें पूरी कहानी के बारे में.

By Govind Jee | September 23, 2025 4:00 PM

T-Mobile Indian CEO: अभी जब ट्रम्प प्रशासन भारतीय छात्रों और प्रोफेशनल्स की अमेरिका आने-जाने की राह पर MAGA हार्डलाइंस के दबाव में रोक लगा रहा है, उसी समय अमेरिकी कंपनियां भारतीय CEOs को चुनने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं. यह विरोधाभास है, या फिर नया ट्रेंड? आइए समझते हैं. T-Mobile ने सोमवार को स्रीनिवास गोपालन को CEO के रूप में चुनकर सबको चौंका दिया. गोपालन, 55 साल, IIM अहमदाबाद के अलुमनस हैं और वर्तमान में कंपनी के COO हैं. वह 1 नवंबर से CEO की कमान संभालेंगे, जबकि माइकल सिवर्ट, जिन्होंने 2020 से T-Mobile का नेतृत्व किया, को वाइस-चेयरमैन बनाया जा रहा है.

गोपालन की करियर यात्रा भी काफी रोचक है. उन्होंने हिंदुस्तान यूनिलीवर से मैनेजमेंट करियर की शुरुआत की, और फिर भारती एयरटेल, वोडाफोन और डॉयच टेलिकॉम में काम किया. दिल्ली पब्लिक स्कूल और सेंट स्टीफंस से पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने ग्लोबल टेलीकॉम इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाई.

Molson Coors में राहुल गोयल की तरक्की

सिर्फ T-Mobile ही नहीं. Molson Coors, दुनिया की चौथी सबसे बड़ी बीयर कंपनी, ने भी अपने लंबे समय के इंसाइडर राहुल गोयल को CEO बनाया. गोयल, 49 साल, 24 साल से कंपनी के साथ हैं. उन्होंने मैसूर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और अमेरिका में बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में आगे बढ़े. वह अक्टूबर 1 से कंपनी के नए प्रमुख होंगे.

T-Mobile Indian CEO: भारतीय CEOs की बढ़ती उपस्थिति और MAGA की चिंता

Microsoft, Google, IBM, FedEx और दर्जनों Fortune 500 कंपनियों में भारतीय CEOs की संख्या लगातार बढ़ रही है. MAGA हार्डलाइंस इसे पसंद नहीं कर रहे. उनका तर्क है कि “अमेरिकी नौकरियों पर विदेशी कब्जा कर रहे हैं.” गोपालन ने LinkedIn पर लिखा कि वह इस नई भूमिका के लिए “गहरे सम्मानित” हैं और कंपनी की “America’s best network और AI capabilities” को आगे बढ़ाने का वादा किया.

T-Mobile फिलहाल अमेरिका की चौथी सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी है जो वेरिजोन, कॉमकास्ट और AT&T के पीछे. लेकिन गोपालन का ग्लोबल एक्सपीरियंस है एशिया, यूरोप और अमेरिका में काम करना तो इसलीए बोर्ड की उम्मीदें बढ़ा देता है कि वह $81 बिलियन की वर्तमान आमदनी को बड़े खिलाड़ियों के बराबर या उनसे आगे ले जा सकते हैं. गोपालन ने अपनी टीम Team Magenta को भी मोटिवेट किया, कहा, “हम खास हैं क्योंकि हम कितने स्किल्ड, डिटरमाइंड और thoughtful हैं. मैं इस टीम के साथ मिलकर T-Mobile और लाखों अमेरिकियों के लिए एक उज्जवल भविष्य बनाना चाहता हूं.”

Rise Of Indian CEOs US Companies: Aravind का नजरिया – भारतीय CEOs क्यों पसंद किए जा रहे हैं

Aravind ने अपने X अकाउंट पर लिखा कि भारतीय CEOs सिर्फ काबिल नहीं, बल्कि भरोसेमंद और अनुशासित भी होते हैं. उनका कहना है कि अमेरिकी, चीनी या इजराइली CEOs कभी-कभी अपने समुदाय या देश के हित को प्राथमिकता दे सकते हैं. उदाहरण के तौर पर, H1B वीजा फीस बढ़ोतरी के मामले में कई व्हाइट, यहूदी और चीनी अमेरिकी CEOs openly विरोध कर रहे थे और भारतीय आप्रवासियों का समर्थन कर रहे थे. लेकिन भारत जन्मे भारतीय CEOs सुरक्षित खेलते हैं. नस्लीय टारगेटिंग या H1B नीतियों के खिलाफ उन्होंने कभी खुलकर आवाज नहीं उठाई. ये सिर्फ अपनी कंपनी और बोर्ड के हित में काम करते हैं.

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जन्मस्थान का फर्क

दिलचस्प बात ये है कि अमेरिका में जन्मे भारतीय अमेरिकियों को इतना मौका नहीं मिलता. क्यों? क्योंकि वे थोड़े इंडिपेंडेंट होते हैं और विनम्र नहीं. इसीलिए, भारतीय कंपनियां और बोर्ड उन्हें “safe bet” मानते हैं. माइक्रोसॉफ्ट में सत्या नडेला, गूगल में सुंदर पिचाई, टी-मोबाइल में श्रीनिवास गोपालन, ये सभी ऐसे लोग हैं जो न केवल प्रतिभाशाली हैं बल्कि बोर्ड की नजर में सुरक्षित और भरोसेमंद भी हैं।

तो सवाल यही बचता है कि क्या यह सिर्फ काबिलियत का मामला है, या फिर अमेरिकी बोर्ड की मनोविज्ञान में “नियमित और आज्ञाकारी सीईओ” का फॉर्मूला भी काम करता है? कुल मिलाकर, भारतीय CEOs की यह लहर सिर्फ ग्लोबल टैलेंट की जीत नहीं, बल्कि विश्वसनीयता और जोखिम कम करने की चाल भी साबित हो रही है.

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