इंडियन अमेरिकन ने दिया जवाब, ट्रंप, टैरिफ और इंडिया पर प्रवासी भारतीयों की चुप्पी पर शशि थरूर ने उठाए थे सवाल
Suhag Shukla on Shashi Tharoor comment Indian American: भारत पर अमेरिकी प्रशासन द्वारा टैरिफ और वीजा संबंधी कई तरह के प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं. इन समस्याओं के लिए भारत सरकार पूरी प्रतिबद्धता के साथ काम कर रही है. हालांकि इस पर इंडियन अमेरिकन ज्यादा मुखर होकर भारत की बात नहीं रख रहे, शशि थरूर ने इसी आशय का एक कमेंट किया और एक लेख भी लिखा. अब इस पर प्रवासी भारतीय सुहाग शुक्ला की ओर से जवाब आया है क्यों इंडियन अमेरिकन खुल कर इस पर नहीं आ रहे.
Suhag Shukla on Shashi Tharoor comment Indian American: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंंप ने भारत के ऊपर एक तरह का टैरिफ वॉर छेड़ रखा है. उन्होंने न केवल टैरिफ लगाया बल्कि भारतीय लोगों में प्रचलित H1B वीजा पर भी एक तरह का नियंत्रण लगाने की कोशिश की. भारत सरकार इन मुद्दों का हल निकालने का प्रयास कर रही है. इसी बीच कांग्रेस के सांसद और युनाइटेड नेशंन में भारत के पूर्व राजदूत शशि थरूर ने इंडियन अमेरिकन डायस्पोरा की इन मुद्दों पर चुप्पी पर सवाल उठा दिया. उन्होंने अपने बयान में कहा था कि अगर आपको अपनी मातृभूमि के साथ अपने रिश्ते की परवाह है, तो आपको उसके लिए लड़ना भी होगा. इस पर भारतीय अमेरिकी रिश्तों के लिए मुखर रहीं सुहाग शुक्ला ने जवाब दिया है. उन्होंने थरूर के बयान को प्रवासी भारतीय की छवि को कमजोर करने वाला और उनकी मेहनत और उपलब्धियों को कमतर आंकने वाला बताया.
थरूर के बयान पर पहले उन्होंने ट्विटर (एक्स) पर जवाब दिया था. उन्होंने कहा था कि भारत सरकार अपनी तेल नीति या आयात शुल्क के लिए हमारी मंजूरी नहीं मांगती, इसलिए शशि थरूर और भारत सरकार को भी हमसे यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि हम अमेरिकी सरकार के सामने उनकी संप्रभु नीतिगत निर्णयों का समर्थन करें. इसके लिए वे लॉबिस्ट (लॉबी करने वाले पेशेवर) रख सकते हैं.
उन्होंने आगे कहा कि हम इसलिए परवाह करते हैं क्योंकि हम चाहते हैं कि दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े लोकतंत्र यानी अमेरिका और भारत के बीच अच्छे संबंध बने रहें. चाहे वह अमेरिका-भारत असैन्य परमाणु समझौता हो या कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की निंदा करना या उन प्रस्तावों को रोकना जो केवल कश्मीर को लेकर भारत की आलोचना करते हैं, लेकिन कश्मीरी हिंदुओं के अपने घर वापस पाने के अधिकार को नजरअंदाज करते हैं या फिर भारतीय उपमहाद्वीप में मानवाधिकारों की रक्षा की दिशा में प्रयास करना या अमेरिका में अलगाववादी और देशविरोधी तत्वों के बारे में लोगों को शिक्षित करना हम अपनी क्षमता से कहीं अधिक प्रभाव डालते हैं.
इस पोस्ट में उन्होंने आगे लिखा था कि क्योंकि उन्हें पता है कि हम प्रभावशाली हैं, इसलिए श्वेत वर्चस्ववादी (व्हाइट नेशनलिस्ट), हिंदू-विरोधी अकादमिक, खालिस्तानी और कुछ मीडिया मंचों पर लिखने वाले वामपंथी भारतीय लेखक हमें लगभग हर हफ्ते झूठे आरोपों से निशाना बनाते हैं. कभी एफबीआई से हमारी जांच कराने की मांग करते हैं, कभी हमें देश से निकालने (deport) की बात करते हैं, या इससे भी बुरा कुछ. फिर भी, हम जो कुछ करते हैं, वह गहरी निष्ठा और विश्वास से करते हैं, इसलिए शशि थरूर आप हमारी आलोचना करने से पहले एक बार हमारी जगह खुद को रखकर देखिए.
लेख के माध्यम से दिया विस्तृत जवाब
शशि थरूर ने अपनी बात को ताईद करते हुए इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख भी लिखा था. इस पोस्ट के बाद अमेरिका में हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन चलाने वाली सुहाग शुक्ला ने द प्रिंट के लिए एक लेख लिखा, जिसमें उन्होंने विस्तार से चर्चा की. उन्होंने लिखा, अमेरिकी कांग्रेस में 535 सदस्य हैं 100 सीनेटर और 435 प्रतिनिधि. लेकिन शशि थरूर ने पूरे भारतीय-अमेरिकी प्रवासी समुदाय पर टिप्पणी केवल एक सदस्य के बयान के आधार पर कर दी. यदि उन्होंने उन लोगों से बात की होती जो दशकों से भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत करने की दिशा में काम कर रहे हैं, तो उन्हें एक अलग और सशक्त आवाज सुनाई देती.
भारत की तरह ही, अमेरिका और उसके नागरिकों, जिनमें भारतीय मूल के अमेरिकी भी शामिल हैं. उनका कर्तव्य है कि वे अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करें. यह हमारे भारतीय मूल से विश्वासघात नहीं, बल्कि नागरिकता और भारतीय सभ्यता की उस भावना का हिस्सा है जो हमें विविधताओं के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, कानूनों के पालन और समाज में सकारात्मक योगदान के लिए प्रेरित करती है.
भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक चाहे भारत में जन्मे हों या अमेरिका में एक अनोखी स्थिति में हैं. हम अमेरिकी जनता और नेताओं को भारत की वास्तविकता समझाने और गलत सूचनाओं को दूर करने में मदद कर सकते हैं. हम किसी सरकार या राजनीतिक दल के प्रवक्ता नहीं, बल्कि ऐसे अमेरिकी हैं जो दोनों संस्कृतियों को जोड़ते हैं.
यह कार्य कई लोग लगातार करते हैं एडवोकेसी समूहों, व्यापार संगठनों, शिक्षाविदों और व्यक्तिगत स्तर पर. इन्हीं प्रयासों के कारण भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता हुआ, भारत के खिलाफ अनुच्छेद 370 पर प्रस्ताव असफल हुए, और पाकिस्तान को आतंकवाद प्रायोजक देश मानने की नीति बनी. लेकिन यह सब अमेरिकी कानूनों की सीमाओं में रहते हुए किया गया. यह दावा करना कि हम भारत की नीतियों को प्रभावित करते हैं, भ्रामक और खतरनाक है.
सुहाग ने कहा कि प्रवासी भारतीयों की दोहरी पहचान कोई विरोधाभास नहीं, बल्कि स्वाभाविक है. अमेरिका के नागरिक होने का मतलब भारत से सांस्कृतिक जुड़ाव तोड़ना नहीं है. जैसे भारत के लोगों का कर्तव्य अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना है, वैसे ही भारतीय-अमेरिकियों का भी दायित्व है कि वे अमेरिकी हितों को आगे बढ़ाएं यह नागरिकता का सामान्य तथ्य है, न कि विरासत से विश्वासघात. शुक्ला ने प्रवासी समुदाय पर बढ़ते बाहरी दबावों का जिक्र किया, जैसे कैलिफोर्निया का विवादित एसबी509 विधेयक और इमीग्रेशन से जुड़े प्रस्ताव. उन्होंने कहा कि थरूर जैसे बयान प्रवासी भारतीयों की गलत छवि बनाते हैं और उन ताकतों को बढ़ावा देते हैं जो उन्हें असली अमेरिकी नहीं मानतीं.
उन्होंने लिखा कि भारत को वैश्विक मंच पर मजबूत आवाज मिलनी चाहिए, लेकिन भारतीय-अमेरिकियों से लगातार हमलों के बीच कीमत चुकाने की उम्मीद करना अनुचित है. थरूर जैसे वरिष्ठ नेता को अपने शब्दों की गंभीरता समझनी चाहिए. अंत में उन्होंने कहा कि भारतीय-अमेरिकी भारत सरकार के प्रतिनिधि नहीं, बल्कि अमेरिकी नागरिक हैं अपने अधिकारों, कर्तव्यों और निष्ठाओं के प्रति जवाबदेह.
उन्होंने भारत के विरोधी तत्त्वों की ओर भी ध्यान दिलाया कि दूसरी ओर, कुछ प्रवासी समूह अपने वैचारिक कारणों से भारत विरोधी माहौल बनाते हैं. वे विदेशी फंडिंग से प्रेरित होकर भारत की छवि को नुकसान पहुंचाते हैं. शुक्ला ने कहा कि भारत के पड़ोसी देश खासकर पाकिस्तान वॉशिंगटन में लॉबिंग पर हर साल करोड़ों (6 लाख डॉलर प्रतिमाह) खर्च करते हैं. इसके विपरीत, भारत सरकार का खर्च लगभग 2.75 लाख डॉलर प्रतिमाह है. यहां तक कि अमेरिकी विश्वविद्यालयों में भारतीय फंड से चलने वाले ‘इंडिया स्टडी सेंटर’ भी कई बार तथ्यों को तोड़-मरोड़कर भारत और भारतीय-अमेरिकियों की आलोचना करते हैं.
थरूर ने किया सुहाग के लेख का स्वागत
वहीं थरूर ने भी इस मुद्दे पर उनकी कही बातों पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि मैं सुहाग ए. शुक्ला की प्रतिक्रिया का स्वागत करता हूँ. अगर प्रवासी भारतीयों की चुप्पी पर मेरे सवालों ने भारतीय-अमेरिकियों को सोचने पर मजबूर किया है, तो मुझे खुशी है. उनकी चुनौतियाँ वाकई यहूदी-अमेरिकियों और क्यूबाई-अमेरिकियों से अलग हैं, जिनका मैंने अपने लेख में उल्लेख किया था. लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि अमेरिकी लोकतंत्र के नियमों के भीतर रहते हुए वे अपनी आवाज बुलंद नहीं कर सकते, जैसा कि इन अन्य समुदायों ने बहुत प्रभावशाली ढंग से किया है.
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