खुद की मौत नहीं मांग सकते, इस देश की जनता ने खारिज की इच्छामृत्यु, रेफरेंडम में हुई ‘करुणा की जीत’
Slovenia rejects Euthanasia in referendum: इच्छामृत्यु यानी खुद की मौत मांगना. लाचार लोगों के लिए स्लोवेनिया सरकार ने पिछले साल जनमत संग्रह के आधार पर एक कानून पास किया था, जिसके तहत लाइलाज लोगों को इच्छामृत्यु का अधिकार दिया था. लेकिन इस साल हुए रेफरेंडम में जनता ने इस फैसले को पलट दिया.
Slovenia rejects Euthanasia in referendum: खुद को समाप्त करने की इच्छा आदमी के अंदर तब आती है, जब उसके सामने कोई रास्ता नजर नहीं आता. लेकिन सरकार हो या अधिकतम जनता किसी को खुद की जान लेने की आजादी देने के लिए तैयार नहीं है. स्लोवेनिया के नागरिकों ने रविवार को हुए जनमत संग्रह में उस विवादित कानून को खारिज कर दिया, जो लाइलाज बीमारी से जूझ रहे लोगों को इच्छामृत्यु यानी अपनी जीवन-लीला स्वयं समाप्त करने का कानूनी अधिकार देता था. चुनाव प्राधिकारियों द्वारा जारी प्रारंभिक परिणामों के अनुसार, लगभग पूरी हो चुकी मतगणना में करीब 53 प्रतिशत मतदाताओं ने इस कानून के खिलाफ मतदान किया, जबकि 46 प्रतिशत लोगों ने इसके पक्ष में वोट दिया. कुल मतदान लगभग 50 प्रतिशत दर्ज किया गया, जो इस मुद्दे पर समाज में गहरी रुचि और विभाजन को दर्शाता है.
इस कानून के विरोध का नेतृत्व रूढ़िवादी समूहों ने किया, जिनके प्रमुख कार्यकर्ता एलेस प्रिम्क ने जनमत संग्रह के नतीजों को करुणा की जीत करार दिया. प्रिम्क के अनुसार, स्लोवेनियाई जनता ने जहर देकर मौत देने की नीति पर आधारित सरकार के व्यापक स्वास्थ्य, पेंशन और सामाजिक सुधारों को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया है. उनके नेतृत्व में विरोधियों ने 40,000 से अधिक हस्ताक्षर एकत्रित कर जनमत संग्रह की मांग की, जिसके बाद सरकार को पुनः मतदान कराने के लिए बाध्य होना पड़ा.
पिछले साल रेफरेंडम के बाद सरकार ने बनाया था कानून
इसी कानून का समर्थन पिछले वर्ष कराए गए एक गैर-बाध्यकारी जनमत संग्रह में मिला था, जिसके बाद स्लोवेनिया की संसद ने जुलाई में इसे पारित किया था. कानून का उद्देश्य उन मानसिक रूप से सक्षम मरीजों को इच्छामृत्यु का अधिकार देना था, जिनके ठीक होने की कोई संभावना न हो या जो असहनीय दर्द झेल रहे हों. प्रस्तावित प्रावधानों के तहत, दो चिकित्सकों की मंजूरी मिलने के बाद मरीज स्वयं घातक दवा का सेवन कर अपनी पीड़ा समाप्त कर सकते थे. हालांकि, यह कानून मानसिक बीमारियों से पीड़ित मरीजों पर लागू नहीं होता था.
पीएम ने किया था कानून का समर्थन
कानून का समर्थन प्रधानमंत्री रॉबर्ट गोलोब की उदारवादी सरकार, मानवाधिकार समूहों और कई सामाजिक संगठनों द्वारा किया गया. उनका तर्क था कि यह कानून मरीजों को सम्मानजनक मृत्यु का अधिकार देता है और उन्हें यह फैसला करने की आजादी मिलनी चाहिए कि वे अपनी पीड़ा कब और कैसे समाप्त करना चाहते हैं. समर्थकों का मानना था कि ऐसा कदम चिकित्सा स्वायत्तता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को और मजबूत करता.
रूढ़िवादी लोगों और चर्च ने किया था विरोध
वहीं दूसरी ओर, विरोध करने वालों में रूढ़िवादी संगठन, कैथोलिक चर्च और कई डॉक्टर संघ शामिल थे. उनका कहना था कि इच्छामृत्यु स्लोवेनिया के संविधान की मूल भावना के खिलाफ है और सरकार को इसके बजाय दर्द कम करने वाली बेहतर चिकित्सा सुविधाओं पर काम करना चाहिए. उनका यह भी कहना था कि इस कानून से कमजोर और बुजुर्ग मरीजों पर अनैच्छिक दबाव बढ़ सकता है. यूरोपीय संघ के कई देशों, जैसे- ऑस्ट्रिया, बेल्जियम और नीदरलैंड में इच्छामृत्यु पहले से कानूनी है, लेकिन स्लोवेनिया में इस मुद्दे पर समाज गहरे मतभेदों में बंटा हुआ दिखाई देता है. जनमत संग्रह का ताजा परिणाम यह संकेत देता है कि देश अभी इस तरह के बड़े बदलाव के लिए तैयार नहीं है.
क्या होती है इच्छामृत्यु?
इच्छामृत्यु, जिसे दया-मृत्यु भी कहा जाता है, उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें किसी गंभीर, लाइलाज या असहनीय बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को उसके कष्टों से मुक्ति दिलाने के लिए जानबूझकर उसकी जीवन-यात्रा समाप्त की जाती है. इच्छामृत्यु दो प्रकार की होती है; सक्रिय और निष्क्रिय. सक्रिय इच्छामृत्यु में डॉक्टर या कोई अन्य व्यक्ति सीधे तौर पर ऐसा कदम उठाता है जिससे व्यक्ति की मौत हो जाए. इसमें स्वैच्छिक, गैर-स्वैच्छिक और अनैच्छिक तीन स्थितियां शामिल होती हैं. वहीं निष्क्रिय इच्छामृत्यु में इलाज या जीवन-रक्षक उपकरण हटा लिए जाते हैं, जिससे रोगी की स्वाभाविक मृत्यु हो जाती है.
क्या भारत में है इच्छामृत्यु का अधिकार?
भारत में सक्रिय इच्छामृत्यु अब भी कानूनन अपराध है और इसे भारतीय न्याय संहिता के तहत हत्या या इरादतन हत्या की श्रेणी में रखा गया है. लेकिन उच्चतम न्यायालय ने 2011 के अरुणा शानबॉग मामले और 2018 के कॉमन कॉज़ फैसले में निष्क्रिय इच्छामृत्यु को कानूनी मान्यता दी है. कोर्ट ने कहा कि सम्मानपूर्वक मृत्यु का अधिकार भी व्यक्ति के जीवन के अधिकार का हिस्सा है. इसके साथ ही “लिविंग विल” या अग्रिम निर्देशों को भी वैध ठहराया गया, जिनमें व्यक्ति पहले से यह तय कर सकता है कि भविष्य में किन परिस्थितियों में उसका इलाज रोका जाए.
अगर भारत में इच्छामृत्यु लेनी हो तो क्या करना होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में इच्छामृत्यु से जुड़े नियमों को और सरल बनाया. इसके अनुसार, कोई भी मानसिक रूप से सक्षम वयस्क व्यक्ति दो गवाहों की मौजूदगी में लिविंग विल बना सकता है, जिसे नोटरी या राजपत्रित अधिकारी द्वारा प्रमाणित करना होता है. किसी रोगी की निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति देने से पहले अस्पताल को दो अलग-अलग मेडिकल बोर्ड बनाने होते हैं, जो 48 घंटे के भीतर अपनी राय देते हैं. यदि मेडिकल बोर्ड अनुमति न दें, तो परिवार उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है.
किन देशों है निष्क्रिय इच्छामृत्यु का अधिकार
दुनिया के कई देशों में निष्क्रिय इच्छामृत्यु को स्वीकार किया गया है, जबकि नीदरलैंड और बेल्जियम जैसे देशों ने सख्त शर्तों के तहत सक्रिय इच्छामृत्यु को भी वैध कर दिया है. इच्छामृत्यु और सहायक आत्महत्या में अंतर भी महत्वपूर्ण है. इच्छामृत्यु में डॉक्टर सीधे रोगी की मृत्यु का कारण बनता है, जबकि सहायक आत्महत्या में व्यक्ति को केवल ऐसा साधन या जानकारी दी जाती है जिससे वह स्वयं अपनी जान ले सके. स्विट्जरलैंड वह देश है जहाँ इच्छामृत्यु पर्यटन सबसे अधिक देखने को मिलता है, और यूरोप के कई देशों के मरीज वहाँ सहायता प्राप्त करने जाते हैं.
भाषा के इनपुट के साथ.
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